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हरियाली सीज पर विशेष : सिर्फ यादों में पेंग भरते सावन के ये झूले, अतीत बनी परंपरा

सावन के महीने में झूले डाले जाते थे और महिलाएं सामूहिक रूप से गीत गाती थीं। हरियाली तीज पर झूला झुलने की प्राचीन काल से ही परंपरा रही है। विवाहित बेटियों को ससुराल से बुलाया जाता था। 

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Mukesh Pandit
Sawan ke Jhule
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बदलती जीवनशैली और समय की कमी से पारंपरिक त्यौहार भी अछूते नहीं रहे हैं। सावन के महीने में विशेष रूप से की जाने वाली भगवान शिव की पूजा से जुड़ी परंपराओं पर भी इसका असर पड़ा है। शहर की कई कामकाजी महिलाओं का मानना है कि व्यस्त जीवनशैली के कारण अब वह समय नहीं रहा जब कॉलोनियों में सावन के महीने में झूले डाले जाते थे और महिलाएं सामूहिक रूप से गीत गाती थीं। हरियाली तीज पर झूला झुलने की प्राचीन काल से ही परंपरा रही है। विवाहित बेटियों को ससुराल से बुलाया जाता था। वे मेहंदी लगाकर सावन के इस मौसम में सखियों के संग झूला झूलने का आनंद लिया करती थी और वहीं, बरसती बूंदें मौसम का मजा और दोगुना कर देती थी, लेकिन अब ये परंपरा खत्म होती जा रही है। अब न तो झूले पड़ते हैं और न ही गीत सुनाई देते हैं।

प्राचीन परंपराएं अब अतीत की यादें बनी

महिलाओं को इस बात की टीस रहती है कि अब न तो मोहल्लों में पेड़ों पर झूले दिखाई देते हैं और न ही पारंपरिक लोकगीतों की गूंज सुनाई देती है। हालांकि उनका कहना था कि धार्मिक भावना आज भी उतनी ही मजबूत है, लेकिन अभिव्यक्ति के तौर-तरीकों में बदलाव आ गया है। सावन की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन अब पेड़ों पर ना तो सावन के झूले पड़ते हैं और ना ही बाग-बगीचों में सखियों की रौनक होती है, जबकि एक जमाने में सावन लगते ही बाग-बगीचों में झूलों का आनंद लिया जाता था। 

पार्कों में नहीं सुनाई देते सम्मधुर सावन की गीत

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जसोदा हरि पलने झुलावे...झूला झुलत नंदलाल बिरज में...जैसे भजन सुनते हैं तो आंखों में अतीत की यादें ताजी हो उठती है, जब पार्कों, गली-मोहल्ले में पींग भरते झूलों पर युवतियां-महिलाएं गीत गुनगुनाती थीं। शहरीकरण और महानगरों की व्यस्त जिंदगी की वजह से आज प्राचीन पंरपराएं अतीत की बातें बन चुकी हैं। बालीवुड ने फिल्मों की जरिए इस संस्कृति को काफी अर्से तक जीवित रखा, लेकिन अब फिल्मों के प्लॉट बदल रहे हैं, महिलाओं का दूसरी ही रूप और जिंदगी के आयाम पेश किए जा रहे हैं। 

अब सावन के झूले पर पींगे भरने का समय कहां...

दक्षिण दिल्ली में पार्लर चला रहीं दो बच्चों की मां पूनम ने  आईएएनएस को बताया,‘धार्मिक रीति-रिवाज हमारी सांस्कृतिक पहचान से जुड़े हैं लेकिन समय की कमी के चलते मैं उतने विधि-विधान से पूजा नहीं कर पाती हैं, जैसा कि मेरी मां और दादी-नानी किया करती थीं।’ देशभर में शिव मंदिरों में सावन की तैयारियां जोरों पर हैं। सावन सोमवार पर श्रद्धालुओं की संख्या अधिक होने की संभावना को देखते हुए मंदिरों में व्यापक व्यवस्था की जा रही है। राजधानी में जहां एक ओर कामकाजी महिलाएं डिजिटल माध्यम से कथा और भजन सुनकर व्रत की परंपरा निभाती हैं, वहीं गृहिणियां सुबह से ही मंदिरों में जाकर शिवलिंग का अभिषेक करने की तैयारी करती हैं।

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रीति-रिवाजों को सहेजना थोड़ा मुश्किल 

नोएडा की एक कंपनी में कार्यरत पूजा कहतीं हैं  "भागदौड़ वाली व्यस्त जिंदगी में धार्मिक रीति-रिवाजों को सहेजना थोड़ा मुश्किल होता है । इसलिए केवल घर पर ही शिवलिंग की पूजा कर सावन का पर्व मनाती हूं।" हालांकि महानगरों को छोड़ दें तो छोटे शहरों में महिलाएं अभी भी धामिर्क मान्याताओं और रीति-रिवाजों का पालन करती हैं। 

सावन में विधिवत पूजा करती हूं

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हापुड़  की ‘आशा’कार्यकर्ता रेखा शर्मा ने कहा, ‘परिवार का पेट-पालने के लिए जितना दो पैसे कमाना जरुरी है, उतना ही रीति-रिवाज, तीज त्यौहार मनाना भी जरूरी है। मैं सावन का पर्व भी पूरे नियम के अनुसार मनाती हूं। व्रत करती हूं, कथा पढ़ती हूं और घर में शिवलिंग की पूजा के साथ मंदिर भी जाती हूं।" 

सावन के झूले और गीत तो अब बहुत कम हुए

एक कार्पोरेट कंपनी में काम करने वाली पूर्वी दिल्ली की संगीता मेहरा ने कहा,‘‘ सावन के झूले और गीत तो अब बहुत कम हो गए हैं लेकिन मैं हर साल व्रत रखती हूं, ऑफिस से लौटकर पूजा करती हूं और मोबाइल पर कथा सुनती हूं।’ रिठाला में रहने वाली गृहिणी लक्ष्मी तिवारी ने कहा, "मेहंदी लगाना और चूड़ियां पहनना मेरे लिए सावन की पहचान है। मैं सावन के हर सोमवार को व्रत करती हूं।" 

दिल्ली में गांव की मिट्टी की महक कहां...

मयूर विहार फेज-1 में रहने वाली सुनीता भारद्वाज ने कहा, “दिल्ली में बारिश आती है लेकिन गांव की तरह मिट्टी नहीं महकती। वहां सावन का मतलब होता था झूले, मेंहदी और गीत। अब बच्चों को वो सब नहीं दिखा पाते। हम तो कोशिश करते हैं घर में थोड़ी बहुत पूजा-पाठ कर उस माहौल को बनाए रखें ताकि बच्चे जानें तो सही कि सावन का त्यौहार क्या होता है और पारंपरिक तौर पर कैसे मनाया जाता है।” 

सावन मास में भगवान शिव की अराधना का महत्व

गाजियाबाद के श्रीमद्भागवत प्रवचनकर्ता आचार्य ऋतुपर्ण शर्मा ने बताया कि सावन मास में भगवान शिव की अराधना की जाती है। उन्होंने कहा कि पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय निकले विष को शिवजी ने ग्रहण किया था, जिसके बाद देवताओं ने सावन के सोमवार को उनकी विशेष आराधना आरंभ की। सावन के सोमवार के व्रतों को सौभाग्य और मनोकामना पूर्ति के लिए किया जाता है। सावन के महीने में शिव मंदिरों में जाकर श्रद्धालु शिवलिंग पर जल, दूध और बेलपत्र चढ़ाते हैं। मंदिरों में हर सोमवार सुबह से ही भक्तों की कतारें लग जाती हैं। कई श्रद्धालु व्रत रखकर पूरे दिन भगवान शिव की आराधना करते हैं और शाम को आरती में भाग लेते हैं।


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