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जिसने भी दूसरे महायुद्ध के दौरान नाजियों के दिल दहला देने वाली अत्याचारों की कहानी पढ़ी अथवा सुनी हैं, वह जर्मनी के लेफ़्टिनेंट कर्नल एडोल्फ़ आइशमन के अत्याचारों से जरूर वाकिफ होंगे। इंसान की शक्ल में वह एक दरिंदा था, जो तानाशाह हिटलर की क्रूरताओं को अमल में लाता था। आइशमन अपनी गैस की भट्ठियों में हर 15 मिनट में 200 आदमियों को भून डालता था। इसी ने विश्व के सबसे भयंकर यातना शिविरों का निर्माण किया। आरोप है कि उसने 60 लाख यहूदियों को गैस भट्ठियों में जलाकर मार डाला था। इसरायल के 1948 में अस्तित्व में आने के बाद अपने प्रमुख जासूस फ्रीदमैन को उसे ढूंढने का जिम्मा सौंपा। आखिर अथक प्रयासों के बाद आइशमन को खोज निकाला और 31 मई 1961 को उसे फांसी पर चढ़ा दिया गया। आइए जानते हैं एडोल्फ आइशमनन के पकड़े जाने और फांसी के फंदे तक की बेहद रोचक कहानी। इसी की थीम पर अक्षय कुमार की फिल्म 'बेबी' बनी है।
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प्रमुख जासूस फ्रीदमन को सौंपा था दायित्व
वर्ष 1948 में दुनिया के नक्शे पर इसरायल के उभरने के कुछ समय बाद जासूसी विभाग की यूरोप शाखा के प्रमुख एशरवेन नाशानने अपने सहायक फ्रीदमन को आदेश दिया कि 'आप दुनिया के किसी भी कोने में छिपे एडोल्फ आइशमन को जिंदा या मुर्दा ढूंढ निकालें।' तलाश के दौरान वर्ष 1957 में इसराइल की ख़ुफिया एजेंसी मोसाद को अपने जर्मन सूत्रों से खबर लगी कि आइशमन पिछले कई वर्षों से अर्जेंटीना में नाम बदल कर रह रहा है। तमाम सबूतों की पुष्टि के बाद मोसाद के निदेशक इसेर हैरल ने प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियो के निवास स्थान पर जाकर उन्हें बताया कि लेफ़्टिनेंट कर्नल आइशमन को अर्जेंटीना में खोज लिया है। गुरियों का जवाब था, "हमें वो जिंदा या मुर्दा चाहिए।" फिर उन्होंने एक क्षण सोचने के बाद कहा, "बेहतर ये होगा कि तुम उसे ज़िंदा ही पकड़ो। हमारे युवाओं के लिए ये बहुत ज़रूरी है।"
मोसाद के जासूसों की टीम अर्जेंटीना पहुंची
अप्रैल 1960 के अंत तक मोसाद के चार जासूसों की एडवांस टीम ने अलग-अलग दिशाओं से अर्जेंटीना में प्रवेश किया। उन्होंने ब्यूनस आयर्स में एक घर किराए पर लिया जिसे कोडनेम 'कासिल' दिया गया। इस बीच पता चला कि 20 मई को अर्जेंटीना अपनी आज़ादी की 150 वीं वर्षगांठ मना रहा है। तय हुआ कि इसराइल भी शिक्षा मंत्री अब्बा इबान के नेतृत्व में अपना एक डेलिगेशन अर्जेंटीना भेजेगा। इसे ले जाने के लिए इसरायली एयरलाइंस एलाई ने एक ख़ास विमान 'विस्परिंग जायंट' उपलब्ध कराया। इबान को इसकी हवा भी नहीं लगने दी गई कि इस दरियादिली का मुख्य उद्देश्य ऑपरेशन आइशमन है। तय हुआ कि 11 मई को एलाई की फ़्लाइट नंबर 601 अर्जेंटीना के लिए उड़ान भरेगी।
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कैसे बना आइशमन को पकड़ने का अभियान
विमान के चालक दल को बहुत सावधानीपूर्वक चुना गया। पायलट ज़्वी तोहार से कहा गया कि वो अपने साथ एक मैकेनिक भी ले जाएं ताकि अगर उन्हें अर्जेंटीना के लैंड क्रू की मदद के बगैर अचानक उड़ान भरनी पड़े तो उनके सामने कोई मुश्किल न आए। आइशमन को पकड़ने के मिशन को एक दिन के लिए आगे बढ़ाया गया। योजना बनी कि 10 मई को आइशमन को उनके घर के पास से उठा लिया जाएगा। 11 मई को इसरायली विमान वहां पहुंचेगा और 12 मई को वो लोग वापस इसराइल के लिए चल देंगे, लेकिन आख़िरी समय पर ये योजना खटाई में पड़ गई।
चुपचाप घर से उठाने की योजना बनी
हुआ ये कि अर्जेंटीना के स्वतंत्रता दिवस समारोह में मेहमानों की बढ़ती संख्या को देखते हुए अर्जेंटीना के विदेश मंत्रालय के प्रॉटोकोल विभाग ने इसरायली डेलिगेशन को सूचित किया कि उन्हें अपना आना 19 मई तक टालना होगा। मोसाद के कारनामों पर अपनी किताब 'द ग्रेटेस्ट मिशन ऑफ़ द इसरायली सीक्रेट सर्विस मोसाद' में माइकल बार ज़ोहार और निसिम मिशाल लिखते हैं, "इसेर हैरल के लिए इसका मतलब था कि या तो आइशमन के अपहरण को 19 मई तक टाला जाए और या फिर पहले से तय योजना के अनुसार उसको 10 मई को ही उठा लिया जाए और उन्हें नौ या दस दिनों तक कहीं छिपा कर रखा जाए." "ये बहुत बड़ा जोखिम था और इस बात का डर था कि कहीं आइशमन के परिवार की मांग पर उनकी तलाश न शुरू कर दी जाए, लेकिन इसके बावजूद इसेर ने पहले से तय योजना के अनुसार ही बढ़ना तय किया। अभियान को सिर्फ़ एक दिन के लिए आगे बढ़ाया गया. तय हुआ कि आइशमन को 11 मई को शाम सात बजकर 40 मिनट पर उसके घर के पास से उठा लिया जाएगा।"
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जब बस नंबर 203 से आइशमन नहीं उतरे
इसरायली जासूसों ने आइशमन की निगरानी शुरू की, इस दौरान पता चला कि आइशमन हर शाम 7 बज कर 40 मिनट पर बस नंबर 203 से घर लौटते थे और थोड़ी दूर पैदल चल कर अपने घर पहुंचते थे। योजना बनी कि इस ऑपरेशन में दो कारें भाग लेंगी। एक कार में आइशमन को उठाने वाले एजेंट मौजूद रहेंगे। दूसरी कार उनकी सुरक्षा के लिए होगी। 11 मई की शाम 7 बज कर 35 मिनट पर दो कारें बस स्टॉप के आसपास पार्क कर दी गईं। पहली कार काले रंग की शेवरले थी। दो एजेंट बाहर निकल कर ये दिखाने लगे जैसे उनकी कार ख़राब हो गई हो। दो एजेंट कार के बाहर खड़े थे। तीसरा व्यक्ति ड्राइवर सीट पर था। उसका काम था जैसे ही आइशमन आते दिखाई दें, वो कार की हेडलाइट जला कर उसकी आंखों को चौंधिया दे। माइकल बार ज़ोहार और निसिम मिशाल लिखते हैं, "सात बज कर 40 मिनट पर बस नंबर 203 रुकी तो लेकिन उसमें से आइशमन नहीं निकले। 7 बज कर 50 मिनट तक एक के बाद एक दो बसें और आईं लेकिन आइशमन का कहीं पता नहीं था"
जब एजेंटों की धड़कने बढ़ने लगीं
ऐसे में "एजेंटों की धड़कने बढ़ती ही जा रही थी। क्या आइशमन ने अचानक अपनी आदतें बदल ली थीं? या उनको इस योजना की भनक लग गई थी? इसेर ने टीम को पहले ही ब्रीफ़ कर दिया था कि अगर आइशमन 8 बजे तक नहीं पहुंचता है तो मिशन को वहीं छोड़ दिया जाए और वो लोग वापस आ जाएं, लेकिन रफ़ी ऐतान ने तय किया कि वो साढ़े आठ बजे तक इंतज़ार करेंगे।"
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आइशमन को ज़बरदस्ती कार में बैठाया गया
8.05 मिनट पर एक और बस आ कर रुकी। पहले तो उन्हें बस से कोई भी उतरता नहीं दिखाई दिया, लेकिन दूसरी कार पर बैठे अवरूम शालोम को एक परछाई सी आती दिखाई दी। उन्होंने तुरंत अपनी कार की हेडलाइट ऑन कर आते हुए व्यक्ति को लगभग अंधा कर दिया। तभी शेवरले कार पर सवार एक एजेंट ज़्वी मालकिन ने चिल्ला कर स्पैनिश में कहा 'मोमेंतितो सेन्योर' (एक मिनट महाशय). आइशमन ने अपनी जेब में हाथ डालकर फ़्लैशलाइट खोजने की कोशिश की। मोसाद पर एक किताब 'राइज़ एंड किल फ़र्स्ट' के लेखक रोनेन बर्गमैन लिखते हैं, "ज़्वी मालकिन को लगा कि आइशमन शायद अपनी पिस्टल निकाल रहा है। इसलिए उसे पीछे से पकड़ने और कार तक लाने के बजाए मालकिन ने उसे एक गड्ढे में धक्का दे दिया और उसके ऊपर चढ़ बैठे। आइशमन चिल्लाया लेकिन वहाँ उसकी आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं था।"
अपेंडिक्स ऑपरेशन के निशान से हुई पहचान
इस बीच ऐतान उन निशानों को खोजने लगे जिससे कोई शक न रहे कि उन्होंने जिस शख़्स को पकड़ा है वो और कोई नहीं बल्कि आइशमन ही हैं। उनकी बाँह के नीचे गुदे एसएस के टैटू को तुरंत पहचान लिया गया।" "अब उनके सामने समस्या थी उसके पेट में अपेन्डिक्स के ऑपरेशन के निशान को खोजने की जिसका कि एसएस की फ़ाइलों में वर्णन किया गया था। ये देखने के लिए ऐतान ने आइशमन की बेल्ट खोली और उसकी पैंट में अपना हाथ घुसा दिया।" "जैसे ही उन्हें वो निशान दिखाई दिया वो हेब्रू में चिल्लाए 'ज़ेह हू ज़ेह हू' जिसका मतलब था- ये वही है, ये वही है...।"
आइशमन ने अपना सही नाम उगला
आठ बज कर 55 मिनट पर दो कारें मोसाद के जासूसों के ठिकाने के ड्राइव वे पर रुकीं। आइशमन को घर के अंदर लाया गया। जब एजेंटों ने उसके कपड़े उतारने शुरू किए तो उसने कोई विरोध नहीं किया। उन्होंने जर्मन में आइशमन से अपना मुंह खोलने के लिए कहा। आइशमन ने वैसा ही किया। वो देखना चाहते थे कि कहीं आइशमन ने अपने मुंह में ज़हरीला कैप्सूल तो नहीं छिपा रखा है। तभी जर्मन में एक आवाज़ गूँजी, "तुम्हारे जूते और टोपी की साइज़? जन्मतिथि? पिता का नाम, मां का नाम?" आइशमन ने रोबोट की तरह सभी सवालों के जवाब दिए। फिर उन्होंने पूछा तुम्हारे नात्ज़ी पार्टी के कार्ड का क्या नंबर है? और एसएस का नंबर भी बताओ। आइशमन ने जवाब दिया 45326 और 63752। उनका आख़िरी सवाल था तुम्हारा नाम? आइशमन का जवाब था रिकार्डो क्लेमेंट। मोसाद के एजेंट ने फिर पूछा तुम्हारा नाम? आइशमन ने कांपते हुए जवाब दिया, ओटो हेंनिंगर। एजेंट ने तीसरी बार फिर पूछा तुम्हारा नाम? इस बार उनका जवाब था एडोल्फ़ आइशमन।
इसरायली विमान ब्यूनसआयर्स पहुंचा
इसरायली आइशमन को रेज़र नहीं दे सकते थे। इसलिए उन्होंने खुद उसकी हज़ामत बनाई। वो उनको एक सेकेंड के लिए भी अकेला नहीं छोड़ सकते थे. जब वो टॉयलेट भी जाते थे तो मोसाद का एक एजेंट उनके साथ होता था। टीम की एक सदस्य येहूदिथ निसीयाहू ने आइशमन के लिए खाना बनाया लेकिन उसके जूठे बर्तनों को धोने से इनकार कर दिया। अगले दस दिन इसरायली जासूसों की ज़िंदगी के सबसे लंबे दस दिन थे। वो विदेश में अपने कैदी के साथ छिपे हुए थे। उनकी एक ग़लती से पुलिस का छापा पड़ सकता था और एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय बखेड़ा खड़ा हो सकता था। 18 मई, 1960 को दिन के 11 बजे तेल अवीव के लोद अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से एक इसराइली विमान ने उड़ान भरी। अगले दिन यानी 19 मई को दोपहर बाद विमान ने ब्यूनसआयर्स हवाई अड्डे पर लैंड किया। दो घंटे बाद इसेर ने पायलट ज़्वी तोहार से बात कर 20 मई की आधी रात को विमान के टेक ऑफ़ करने का समय तय किया।
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आइशमन को इंजेक्शन लगा कर विमान पर चढ़ाया
20 मई की रात 9 बजे आइशमन को नहला धुला कर इसरायली एयरलाइंस एलाई की वर्दी पहनाई गई। उनकी जेब में ज़ीव ज़िकरोनी के नाम से एक झूठा परिचय पत्र रखा गया। माइकल बार ज़ोहार और निसिम मिशाल लिखते हैं, "डॉक्टर ने आइशमन को ऐसा इंजेक्शन लगाया जिससे उसे नींद तो नहीं आई लेकिन उसे धुँधला दिखाई देने लगा। वो सुन, देख और यहाँ तक कि चल सकता था लेकिन बातचीत नहीं कर सकता था।" "आइशमन को कार की पिछली सीट पर बिठाया गया। उसी समय ब्यूनसआयर्स के एक मशहूर होटल से दो और कारें रवाना हुईं जिसमें इसरायली एयरलाइंस के असली विमानकर्मी बैठे हुए थे। रात 11 बजे सभी कारों ने एक साथ हवाई अड्डे में प्रवेश किया." "जैसे ही कार बैरियर पर पहुंची विमान दल के एक सदस्य ने चिल्ला कर कहा 'हाए एलाई।' गार्ड्स उसे पहचानते थे। उन्होंने कार के अंदर देखा। सभी इसरायली एयरलाइंस की यूनिफ़ॉर्म पहने हुए थे।"
डेविड बेन गुरियों का क्नेसेट में ऐलान
22 मई, 1960 की सुबह विमान ने तेल अवीव के लोद हवाई अड्डे पर लैंड किया। 9.50 मिनट पर मोसाद के निदेशक इसेर हैरल यरूशलम में प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियों के दफ़्तर पहुंचे। उनके सचिव इतज़ाक निवोन उन्हें सीधे प्रधानमंत्री के कमरे में ले गए आश्चर्यचकित बेन गुरियों ने उनसे पूछा 'तुम कब पहुंचे?' इसेर ने जवाब दिया, '2 घंटे पहले। आइशमन हमारी गिरफ़्त में है।' गुरियों ने पूछा कहां है वो? इसेर का जवाब था, 'यहाँ इसराइल में ही। अगर आप इजाज़त दें तो उसे तुरंत पुलिस के हवाले कर दिया जाए।' Israel News | Israeli | Israel | Israel style action demand
पहली औरआखिर फांसी की सजा
शाम 4 बजे इसरायली संसद नेसेट में डेविड बेन गुरियो ने एक संक्षिप्त वक्तव्य दिया, "मुझे नेसेट को बताना है कि इसराइल के सुरक्षा बलों ने सबसे बड़े नाज़ी अपराधियों में से एक साठ लाख यूरोपीय यहूदियों की मौत के जिम्मेदार एडोल्फ़ आइशमन को पकड़ लिया है। वो इस समय इसराइल में एक जेल में हैं। जल्दी ही उन पर इसराइली क़ानून के अनुसार मुक़दमा चलाया जाएगा।" जैसे ही डेविड बेन गुरियों ने ये शब्द कहे इसराइली संसद ताली की गड़गड़ाहट से गूँज उठी। 15 दिसंबर 1961 को आइशमन को फाँसी की सज़ा सुनाई गई और 31 मई , 1962 को उसे फांसी पर चढ़ा दिया गया। आइशमन के आखिरी शब्द थे, "हम दोबारा मिलेंगे। मैं ईश्वर में विश्वास करते हुए जिया। मैंने युद्ध के क़ानूनों का पालन किया और अपने झंडे के प्रति हमेशा वफ़ादार रहा." इसरायल के इतिहास में ये पहली और आखिरी फांसी थी।