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अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस की शुरुआत वर्ष 2002 में भारतीय नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के प्रयासों से हुई थी। इसे मनाने के लिए एक लंबा सफर तय करना पड़ा है। श्री सत्यार्थी ने इस मुद्दे को लेकर विभिन्न देशों में एक सशक्त अभियान चलाया और आम जनता से लेकर राष्ट्राध्यक्ष राष्ट्रप्रमुखों, राजा –रानियों और महाराजा- महारानियों का समर्थन प्राप्त किया। करोड़ों बच्चों के शोषण के खिलाफ और उनके अधिकारों को लेकर आवाज उठाने के लिए वर्ष 2014 में प्रतिष्ठित नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
‘ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर’
श्री सत्यार्थी ने बाल श्रम के बारे में दुनिया को जागरूक करने और उसे एक गंभीर अपराध के तौर पर स्वीकार करने को लेकर वर्ष 1998 में ‘ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर’ यानी वैश्विक जन जागरूकता यात्रा की शुरुआत की थी। यह यात्रा 17 जनवरी, 1998 को फिलीपींस के मनीला से शुरू हुई और छह जून, 1998 को जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में समाप्त हुई। करीब पांच महीने तक चली इस यात्रा में श्री सत्यार्थी के साथ 36 बच्चे भी थे ,जिन्होंने कभी बाल मजदूर के रूप में काम किया था। इस यात्रा को करीब डेढ़ करोड़ लोगों का व्यापक समर्थन भी प्राप्त हुआ।
वर्ष 2002 में इसकी घोषणा की गई
वैश्विक जन जागरूकता यात्रा के एक साल बाद यानी 17 जून, 1999 को बाल श्रम उन्मूलन के लिए आईएलओ समझौता- 182 पारित किया गया। इसपर बहुत ही कम समय में संयुक्त राष्ट्र के सभी 187 देशों ने अपने हस्ताक्षर कर दिए। इसके साथ ही बाल श्रम निषेध को लेकर एक विशेष दिन घोषित किए जाने की मांग को भी मान लिया गया। वर्ष 2002 में इसकी घोषणा की गई कि अब से हर साल 12 जून को अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाएगा। आईएलओ ने अपनी परंपरा को तोड़ते हुए इतिहास में पहली बार एक सामाजिक कार्यकर्ता श्री सत्यार्थी और दो बच्चों को बाल श्रम, बाल दासता, बाल वेश्यावृत्ति और तस्करी के बारे में अपनी बात रखने का अवसर दिया।
भारत में बाल श्रम रोकने के लिए कानून
भारत में बाल श्रम को रोकने के लिए संवैधानिक और कानूनी ढांचा काफी मजबूत है, जो बच्चों के अधिकारों की रक्षा और उनके शोषण को रोकने पर केंद्रित है।
भारतीय संविधान और बाल अधिकार
अनुच्छेद 23: खतरनाक उद्योगों में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है।
अनुच्छेद 24: 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कारखानों, खदानों, या अन्य खतरनाक कार्यों में नियोजित करने पर रोक लगाता है।
अनुच्छेद 21A: 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान करता है।
अनुच्छेद 39(e): बच्चों को उनकी उम्र और शक्ति के प्रतिकूल कार्यों में नियोजित करने से रोकता है।
बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986:
यह कानून 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओं में नियोजित करने पर रोक लगाता है। इसमें 57 प्रक्रियाएं और व्यवसाय शामिल हैं, जो बच्चों के स्वास्थ्य और जीवन के लिए हानिकारक माने गए हैं।
1987 में, राष्ट्रीय बाल श्रम नीति बनाई गई, जिसने जोखिम भरे कार्यों में लगे बच्चों के पुनर्वास पर जोर दिया।
बाल श्रम (निषेध और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2016:
इस संशोधन ने 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी व्यवसाय में नियोजित करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया, सिवाय पारिवारिक व्यवसायों या मनोरंजन उद्योग (जैसे फिल्में, टीवी) के। 14 से 18 वर्ष के किशोरों को "किशोर" के रूप में परिभाषित किया गया और उनके लिए खतरनाक कार्यों की सूची को संशोधित किया गया। यह कानून बच्चों को स्कूल के बाद केवल तीन घंटे पारिवारिक उद्यमों में काम करने की अनुमति देता है।
फैक्टरी अधिनियम, 1948: 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के कारखानों में नियोजन पर रोक लगाता है और 15-18 वर्ष के किशोरों के लिए फिटनेस प्रमाणपत्र अनिवार्य करता है।
निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009: 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा सुनिश्चित करता है।
किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015: बच्चों के पुनर्वास और संरक्षण को बढ़ावा देता है।
राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (2007): बच्चों के अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों को सुलझाने में मदद करता है।
भारत में बाल श्रमिकों की संख्या
वर्ष 2011 की राष्ट्रीय जनगणना के अनुसार, भारत में 5-14 वर्ष की आयु के लगभग 1.01 करोड़ बच्चे बाल श्रम में लगे हुए थे, जो कुल बाल जनसंख्या (26 करोड़) का लगभग 4% है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुमान के अनुसार, यह संख्या लगभग 2 से 5 करोड़ तक हो सकती है। इनमें से लगभग 80% बच्चे ग्रामीण और असंगठित क्षेत्रों, विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में कार्यरत हैं, जबकि 19% घरेलू नौकर के रूप में काम करते हैं। शेष बच्चे खतरनाक उद्योगों जैसे बीड़ी, पटाखा, कांच, और खनन में कार्य करते हैं।
हाल के वर्षों में, बाल श्रम में कमी आई है, विशेष रूप से बाल श्रम (निषेध और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2016 के लागू होने के बाद। हालांकि, गरीबी, अशिक्षा, और सामाजिक-आर्थिक असमानताएं अभी भी इस समस्या को बढ़ावा दे रही हैं। ILO की एक रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 16 करोड़ बच्चे बाल श्रम में लगे हैं, जिनमें से एक बड़ा हिस्सा भारत जैसे विकासशील देशों में है। Global child labour abolition | World Day Against Child Labour founder | Child Labour Day