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Justice Abhay Oka, मीडियाकर्मियों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना न्यायालय का कर्तव्य

यूक्रेन के राजदूत ओलेक्सांद्र पोलिशचुक ने कहा कि पत्रकारिता को इतिहास का पहला मसौदा माना जाता है तथा युद्ध के समय में यह और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। 

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Mukesh Pandit
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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।

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सुप्रीम कोर्ट  के न्यायाधीश अभय ओका ने  कहा कि पूरी तरह स्वतंत्र पत्रकारिता समय की मांग है और मीडियाकर्मियों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना न्यायालय का कर्तव्य है। न्यायमूर्ति ओका ने यह टिप्पणी यूक्रेन में युद्ध की कवरेज के लिए 'द वीक' के भानु प्रकाश चंद्रा को पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए 'इंटरनेशनल प्रेस इंस्टिट्यूट-इंडिया' पुरस्कार प्रदान करने के अवसर पर आयोजित एक समारोह में की। यूक्रेन के राजदूत ओलेक्सांद्र पोलिशचुक ने कहा कि पत्रकारिता को इतिहास का पहला मसौदा माना जाता है तथा युद्ध के समय में यह और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। 

‘मेरा मानना ​​है कि पत्रकारों की स्वतंत्रता की हर कीमत पर रक्षा की जानी चाहिए।स्वतंत्र भारत में, पूरी तरह स्वतंत्र पत्रकारिता समय की मांग है। एक तरह से स्वतंत्र रहना पत्रकार की जिम्मेदारी भी है।’न्यायमूर्ति ओका

स्वतंत्र रहना पत्रकार की जिम्मेदारी भी है

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उन्होंने कहा कि वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के इस मौलिक अधिकार को बनाए रखना न्यायपालिका का सदैव दायित्व रहा है। न्यायमूर्ति ओका ने कहा, ‘स्वतंत्र भारत में, पूरी तरह स्वतंत्र पत्रकारिता समय की मांग है। एक तरह से स्वतंत्र रहना पत्रकार की जिम्मेदारी भी है।’उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना ​​है कि पत्रकारों की स्वतंत्रता की हर कीमत पर रक्षा की जानी चाहिए।’

न्यायमूर्ति ओका ने कहा, ‘सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकारों में से एक वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। मेरा हमेशा से मानना ​​रहा है कि भारत में लोकतंत्र तभी जीवित रह सकता है जब यह मौलिक अधिकार बरकरार रहे।’ उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर ने कहा कि मीडिया को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षा, वित्तीय, अपराध और प्रौद्योगिकी से संबंधित कानूनों का दुरुपयोग किए जाने के कई उदाहरण हैं। 

असहमति को दंडनीय बना दिया

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उन्होंने कहा कि पत्रकारों को भी आतंकवाद रोधी कानूनों के तहत गिरफ्तार किया गया है और समाचारों एवं विचारों के प्रसार को रोकने के लिए कुछ क्षेत्रों में इंटरनेट भी बंद किया जाता रहा है। न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा कि जब आवाजों को दबा दिया जाता है और असहमति को दंडनीय बना दिया जाता है, तो लोकतंत्र ध्वस्त हो जाता है। न्यायमूर्ति लोकुर पुरस्कार से संबंधित निर्णायक मंडल के अध्यक्ष थे। 

निर्णायक मंडल के अन्य सदस्यों में आईपीआई-इंडिया के अध्यक्ष तथा मलयाला मनोरमा के चीफ एसोसिएट एडिटर एवं निदेशक रियाद मैथ्यू, प्रख्यात स्तंभकार शोभा डे तथा प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के प्रधान संपादक विजय जोशी शामिल थे। 'द हिंदू' से विजेता सिंह, 'इंडिया टुडे' के आशुतोष मिश्रा, 'द कारवां' से ग्रीष्मा कुठार, स्क्रॉल.इन के अरुणाभ सैकिया और तोरा अग्रवाल तथा 'द प्रिंट' के पत्रकारों को मणिपुर में जातीय हिंसा पर उनकी रिपोर्टिंग के लिए निर्णायक मंडल से विशेष सराहना मिली। 

पत्रकारिता को इतिहास का पहला मसौदा 

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यूक्रेन के राजदूत ओलेक्सांद्र पोलिशचुक ने कहा कि पत्रकारिता को इतिहास का पहला मसौदा माना जाता है तथा युद्ध के समय में यह और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन में युद्ध में आठ विदेशी नागरिकों सहित 57 पत्रकार मारे गए हैं, और 45 अन्य गंभीर रूप से घायल हुए हैं। पूर्व केन्द्रीय गृह सचिव जी के पिल्लै ने कहा कि मणिपुर में संकट केंद्र और राज्य सरकार की विफलता का परिणाम है। 

'मणिपुर के नागरिकों के मौलिक अधिकार समाप्त'

पिल्लै ने कहा, ‘मणिपुर के नागरिकों के मौलिक अधिकार, आवागमन का अधिकार, जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार तथा शिक्षा का अधिकार पूरी तरह से समाप्त हो गए। सभी संवैधानिक प्राधिकारी - राज्य सरकार, वैधानिक प्राधिकारी, उच्च न्यायालय और यहां तक ​​कि उच्चतम न्यायालय भी - सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए कुछ भी करने में असमर्थ रहे। पूर्व केन्द्रीय गृह सचिव ने कहा कि घाव भरने की प्रक्रिया अभी शुरू हुई है और राज्यपाल ने पहला कदम उठाया है। पिल्लै ने कहा, ‘सामाजिक ताने-बाने को भारी नुकसान पहुंचा है। इसे सुदृढ़ करना आसान नहीं होगा। हमें बातचीत के जरिए आगे बढ़ना होगा ताकि समाधान निकाला जा सके जो हमारे लोकतंत्र में संभव है।’ 

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