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Kargil Vijay Diwas 2025 : जब भारतीय सेना के साहस, पराक्रम ने पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर किया

कारगिल युद्ध, जिसे ऑपरेशन विजय के नाम से जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में लड़ा गया एक महत्वपूर्ण सैन्य संघर्ष था। यह युद्ध जम्मू-कश्मीर के कारगिल जिले में लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) के पास हुआ।

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Mukesh Pandit
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कारगिल की बर्फीली चोटियों पर लगभग दो महीने तक चली लड़ाई के बाद, जिसमें तोलोलिंग और टाइगर हिल जैसे अत्यधिक ऊंचाई वाले स्थान भी शामिल थे, भारतीय सेना ने विजय की घोषणा की। हर साल 26 जुलाई को भारत में कारगिल विजय दिवस उन सैनिकों के सम्मान में मनाया जाता है, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी थी। कैप्टन मनोज कुमार पांडे, कैप्टन विक्रम बत्रा, कैप्टन अमोल कालिया, लेफ्टिनेंट बलवान सिंह से लेकर ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव और नायक दिगेंद्र कुमार समेत कई वीर कारगिल के ऐसे 'हीरो' थे, जिन्हें देश भूल नहीं सकता है।  बोफोर्स तोपों का उपयोग विशेष रूप से प्रभावी रहा, जिसने दुश्मन के बंकरों को नष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

 भारतीय सेना की रणनीतिक और सामरिक श्रेष्ठता

कारगिल युद्ध, जिसे ऑपरेशन विजय के नाम से जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में लड़ा गया एक महत्वपूर्ण सैन्य संघर्ष था। यह युद्ध जम्मू-कश्मीर के कारगिल जिले में लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) के पास हुआ, जो दोनों देशों के बीच सीमा को चिह्नित करती है। इस युद्ध का एक महत्वपूर्ण पहलू भारतीय सेना की रणनीतिक और सामरिक श्रेष्ठता थी, जिसने अत्यंत चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में विजय प्राप्त की। यह लेख इस पहलू को विस्तार से उजागर करता है।

बटालिक मुख्य युद्ध क्षेत्रों में से एक

यह युद्ध मई से जुलाई 1999 तक चला था। 10 हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित, बटालिक, कारगिल, लेह और बाल्टिस्तान के बीच अपनी रणनीतिक स्थिति के कारण कारगिल युद्ध का केंद्र बिंदु था। कारगिल युद्ध के दौरान बटालिक मुख्य युद्ध क्षेत्रों में से एक था। दुश्मन से लड़ने के अलावा, सैनिकों को दुर्गम इलाकों और ऊंचाई पर भी संघर्ष करना पड़ा। भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन विजय' के तहत पाकिस्तानी घुसपैठियों से कारगिल की रणनीतिक ऊंचाइयों को हासिल किया था। यह युद्ध भारतीय सशस्त्र बलों की राजनीतिक दृढ़ता, सैन्य कौशल और कूटनीतिक संतुलन का प्रतीक माना जाता है।

घुसपैठिए 16,000-18,000 फीट की ऊंचाई पर थे

वर्ष 1999 की सर्दियों में, पाकिस्तानी सेना और उनके समर्थित उग्रवादियों ने LoC पार करके कारगिल की ऊंची चोटियों पर कब्जा कर लिया। उनका उद्देश्य रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण श्रीनगर-लेह राजमार्ग (NH1A) को नियंत्रित करना और भारत की आपूर्ति लाइनों को बाधित करना था। मई 1999 में, जब भारतीय सेना को इस घुसपैठ का पता चला, तो यह स्पष्ट हो गया कि यह कोई छोटा-मोटा उल्लंघन नहीं, बल्कि एक सुनियोजित सैन्य कार्रवाई थी। घुसपैठिए 16,000-18,000 फीट की ऊंचाई पर दुर्गम पहाड़ी चोटियों पर तैनात थे, जहां ऑक्सीजन की कमी, ठंड और खतरनाक इलाके ने युद्ध को और जटिल बना दिया।

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Kargil Vijay Diwas 2025

भारतीय सेना का सामरिक कौशल व रणनीति

भारतीय सेना ने इस चुनौती का सामना करने के लिए असाधारण रणनीतिक और सामरिक कौशल का प्रदर्शन किया। पहला कदम था स्थिति का आकलन और घुसपैठ के दायरे को समझना। भारतीय वायुसेना के साथ समन्वय में, सेना ने ऑपरेशन विजय शुरू किया। इस ऑपरेशन में पैदल सेना, तोपखाने, और वायु शक्ति का समन्वित उपयोग किया गया। भारतीय सेना ने ऊंची चोटियों पर चढ़ाई की, जो सामान्य सैन्य अभियानों से कहीं अधिक कठिन थी। सैनिकों को खड़ी चट्टानों, बर्फीले ढलानों और दुश्मन की मजबूत स्थिति का सामना करना पड़ा।

सामरिक श्रेष्ठता का प्रदर्शन 

भारतीय सेना की सफलता का एक प्रमुख कारण उनकी सामरिक योजना थी। सेना ने रात के समय हमले, सीधी चढ़ाई, और तोपखाने के सटीक उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया। बोफोर्स तोपों का उपयोग विशेष रूप से प्रभावी रहा, जिसने दुश्मन के बंकरों को नष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। टाइगर हिल, तोलोलिंग, और प्वाइंट 4875 जैसे महत्वपूर्ण स्थानों को वापस लेने के लिए सैनिकों ने असाधारण साहस दिखाया। उदाहरण के लिए, टाइगर हिल की लड़ाई में, 18 गढ़वाल राइफल्स और अन्य इकाइयों ने दुश्मन की मजबूत स्थिति को तोड़ने के लिए रात में खतरनाक चढ़ाई की।

सैनिकों की वीरता और बलिदान 

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इस युद्ध में भारतीय सैनिकों की व्यक्तिगत और सामूहिक वीरता ने रणनीति को जीवंत किया। कैप्टन विक्रम बत्रा, जिन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, ने "ये दिल मांगे मोर" जैसे नारे के साथ सैनिकों का मनोबल बढ़ाया। इसी तरह, लेफ्टिनेंट मनोज पांडे और अन्य नायकों ने अपने प्राणों की आहुति दी। लगभग 527 सैनिक शहीद हुए, और हजारों घायल हुए, लेकिन उनकी वीरता ने भारत को विजय दिलाई।

प्रतिकूल परिस्थितियों में लड़ा गया युद्ध

शुरुआत में भारतीय सेना को हैरानी भी हुई, लेकिन दृढ़ निश्चयी भारतीय सेना ने दूसरी तरफ से कई ठिकानों और चौकियों पर कब्जा कर लिया। सैनिकों ने पहाड़ी इलाकों, अत्यधिक ऊंचाई और कठोर ठंडे मौसम जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों में बहादुरी से लड़ाई लड़ी। भीषण संघर्ष में 13 जून को तोलोलिंग की चोटी भारतीय सेना के कब्जे में आ चुकी थी। कारगिल युद्ध के दौरान यह पहली और एक महत्वपूर्ण जीत थी, जिसने युद्ध का रुख बदला। 4 जुलाई को भारतीय सेना ने 11 घंटे चली लड़ाई के बाद टाइगर हिल पर कब्जा कर लिया। अगले दिन, भारत ने द्रास पर कब्जा कर लिया। ये बड़ी सफलताएं थीं।

 'टाइगर हिल' भारत के कब्जे में 

इस लड़ाई में एक और सफलता 20 जून को मिली, जब लेफ्टिनेंट कर्नल योगेश कुमार जोशी के नेतृत्व में भारतीय सेना इस पॉइंट पर कब्जा करने में सफल रही। अगली बार में भारतीय फौज ने 'थ्री पिंपल्स' एरिया पर कब्जा किया। 'थ्री पिंपल्स' एरिया में नॉल, ब्लैक रॉक हिल और थ्री पिंपल्स शामिल थे। 2 दिन तक चला युद्ध चला, जिसमें 29 जून को सेना ने कब्जा किया। जुलाई महीने की शुरुआत में एक निर्णायक स्थिति की ओर बढ़ती लड़ाई में 'टाइगर हिल' भारत के कब्जे में आ चुकी थी। 4 जुलाई को भारतीय फौज ने यहां झंडा फहराया।

पाकिस्तान सेना ने घुटने टेके

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सेना के लिए अगला महत्वपूर्ण लक्ष्य पॉइंट 4875 पर कब्जा करना था। 4 से 7 जुलाई तक प्वाइंट 4875 की लड़ाई चली। इस महत्वपूर्ण सैन्य अभियान में भारत को सफलता मिली। प्वाइंट 4875 को कब्जाने के साथ भारत कारगिल की प्रमुख चोटियों को फतह कर चुका था, जहां से पाकिस्तान के लिए आगे बढ़ पाना मुश्किल था।

पाकिस्तान घुटने टेकने लगा था। हालांकि भारतीय फौज रुकने वाली नहीं थी। एक छोटे से संघर्ष के बाद सेना ने प्वाइंट 4700 पर कब्जा कर लिया। इससे पाकिस्तान के हौसले पूरी तरह ध्वस्त हो चुके थे। मजबूरन 25 जुलाई को पाकिस्तान को पीछे हटना पड़ा। 26 जुलाई को आधिकारिक तौर पर कारगिल में इस युद्ध की समाप्ति हुई, जिसमें भारत विजयी रहा। : India Pakistan Kargil conflict | Operation Vijay success | Pakistan defeat Kargil | Indian Army bravery 

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