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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। 29 सितंबर, 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल पर बंधे विस्फोटक उपकरण में हुए धमाके में छह लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। मालेगांव विस्फोट मामले में आरोपी बनाई गई साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को एनआईए की विशेष अदालत ने बरी कर दिया है, लेकिन अब यह सवाल उठ रहा है कि आखिर मालेगांव विस्फोट को किसने अंजाम दिया। हालांकि अदालत का आज का फैसला भी अप्रत्याशित नहीं है, क्योंकि वर्ष 2016 में एनआईए ने अपनी जांच में प्रज्ञा ठाकुर और तीन अन्य आरोपियों—श्याम साहू, प्रवीण तकलकी और शिवनारायण कलसांगरा—को क्लीन चिट दे दी थी। अब इस मामले में सियायत में नया तूफान उठ खड़ा हुआ है। भाजपा, इस मामले में कांग्रेस को घेरने में लग गई है।
एटीएस ने की शुरुआती जांच
उल्लेखनीय है कि इस मामले की शुरुआती जांच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने की थी, जिसे 2011 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दिया गया। इस मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त), अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी सहित सात लोगों पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत मुकदमा चल रहा था। हालांकि विशेष अदालत के फैसले को अप्रत्याशित नहीं माना जा सकता है। क्योंकि 2016 में एनआईए ने अपनी जांच में प्रज्ञा ठाकुर और तीन अन्य आरोपियों—श्याम साहू, प्रवीण तकलकी और शिवनारायण कलसांगरा को पहले ही क्लीन चिट दे दी थी। साथ ही यह दावा किया था कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले।
34 गवाह अपने बयानों से मुकर गए थे
इस मामले में एनआईए की जांच पर भी गंभीर सवाल उठे हैं। पीड़ित परिवारों और उनके वकीलों ने जांच की धीमी गति और एटीएस की कथित उदासीनता पर नाराजगी जताई। पीड़ित पक्ष के वकील शाहिद नदीम ने कहा था कि एटीएस की रुचि की कमी उनकी सबसे बड़ी चिंता थी। इसके अलावा, मुकदमे के दौरान 323 अभियोजन गवाहों की जांच की गई, जिनमें से 34 अपने बयानों से मुकर गए। यह भी बताया गया कि दो गवाहों की प्राकृतिक कारणों से मृत्यु हो चुकी थी, जिसने जांच की विश्वसनीयता पर और सवाल खड़े किए। कुछ विश्लेषकों ने आरोप लगाया कि एनआईए ने खास पहचान से जुड़ी आतंकवाद इस के मामले को कमजोर करने की कोशिश की, और गवाहों के बयानों को बदलने या सबूतों को कमजोर करने की आलोचना भी हुई।
पीड़ितों ने जताया आश्चर्य
अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि विस्फोट एक सुनियोजित आतंकी साजिश थी, जिसमें साध्वी प्रज्ञा की मोटरसाइकिल का इस्तेमाल और पुरोहित द्वारा आरडीएक्स की व्यवस्था शामिल थी। दूसरी ओर, बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि एटीएस ने आरोपियों को गलत तरीके से फंसाया और मामला पहले ही कमजोर हो चुका है। पीड़ितों के परिवार, जैसे सईद अजहर के पिता निसार अहमद, ने 17 साल की लंबी कानूनी प्रक्रिया पर दुख व्यक्त किया और प्रभावशाली आरोपियों के कारण देरी होने का आरोप लगाया। हालांकि, एनआईए की जांच में कुछ खामियां सामने आईं, जैसे गवाहों का मुकरना और सबूतों की कमी, लेकिन अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि उन्होंने संदेह से परे मामला साबित कर दिया। फिर भी, कुछ आरोपियों को क्लीन चिट और गवाहों के बयानों में असंगतियों ने जांच की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए।
कांग्रेस का षडयंत्र उजागर
उधर, इस मामले को लेकर सियायत काफी तेज हो गई है। फैसले के बाद भाजपा एकदम सक्रिय हो गई है। आपरेशन सिंदूर पर संसद में जिस तरह विपक्ष सरकार को घेरने में काफी हद तक कामयाब रहा था। इस नए फैसले ने भाजपा को एक तरह से नई ऊर्जा से भर दिया है। फैसले के बाद भाजपा की भोपाल से सांसद रहीं प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि यह भगवा या हिंदुत्व की जीत है। भाजपा के कई नेताओं ने भी फैसले पर प्रतिक्रियाएं देते हुए कांग्रेस की घेराबंदी शुरू कर दी है। कांग्रेस भी इस मामले में प्रेस कांफ्रेंस की तैयारी कर रहेहैं। शिवसेना श्रीकांत शिंद ने आरोप लगाया है किकांग्रेस ने मालेगांव कीघटना के बाद कांग्रेस ने भगवा आतंकवाद का षडयंत्र रचना शुरू कर दिया। अदालत का यह फैसला कांग्रेस केमुंह पर तमाचा है। कांग्रेस नेता दिग्जिवजय ने कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होताहै। केवल कुछ लोग होते हैं जो धर्म कोनफरत की तरह इस्तेमाल करते हैं। Malegaon case update | Malegaon blast case 2008 | Malegaon blast accused releas | Malegaon Blast n
मालेगांव ब्लास्ट केस की पूरी टाइमलाइन
29 सितंबर 2008: रात 9:35 बजे मालेगांव में मस्जिद के पास धमाका, 6 की मौत, 101 घायल
30 सितंबर 2008: तड़के 3 बजे FIR दर्ज
21 अक्टूबर 2008: ATS को जांच
20 जनवरी 2009: ATS की चार्जशीट
13 अप्रैल 2011: NIA के हाथ जांच
21 अप्रैल 2011: ATS कीसप्लीमेंट्री चार्जशीट
13 मई 2016: NIA की सप्लीमेंट्री चार्जशीट
2017: सभी आरोपी जमानत पर बाहर
27 दिसंबर 2017: NIA कोर्ट में चार्ज फ्रेमिंग की प्रक्रिया
30 अक्टूबर 2018: 7 आरोपियों के खिलाफ चार्ज फ्रेम
3 दिसंबर 2018: पहला गवाह पेश
4 सितंबर 2023: अंतिम गवाह पेश
12 अगस्त 2024: गवाहों के बयान की प्रक्रिया पूरी
25 जुलाई से 27 सितंबर 2024: प्रॉसिक्यूशन की बहस
30 सितंबर से 3 अप्रैल 2025: डिफेंस की बहस
4 अप्रैल से 19 अप्रैल 2025 तक प्रॉसिक्यूशन की जवाबी बहस
19 अप्रैल 2025: अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया
31 जुलाई 2025: कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया