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Max Hospital और बीमा कंपनियों में 'Tariff War' : क्या करें पॉलिसीधारक? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।भारत में स्वास्थ्य बीमा का संकट गहराता जा रहा है। देश के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक मैक्स हॉस्पिटल ने टाटा एआईजी जनरल इंश्योरेंस के साथ कैशलेस क्लेम की सुविधा बंद कर दी है। यह फैसला लाखों पॉलिसीधारकों के लिए एक बड़ा झटका है, जिन्हें अब इलाज के लिए अपनी जेब से पैसे चुकाने होंगे।
यह सिर्फ एक कंपनी की बात नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी 'टैरिफ वॉर' का हिस्सा है, जो अब स्टार हेल्थ और निवा बुपा जैसी अन्य बड़ी बीमा कंपनियों तक भी फैल चुकी है।
द इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, एक बार फिर पॉलिसीधारक उपभोक्ता दो बड़ी संस्थाओं के बीच की लड़ाई में फंस गए हैं। एक तरफ देश के सबसे बड़े अस्पताल हैं जो इलाज की बढ़ती लागत का हवाला देते हुए अपने रेट बढ़ाना चाहते हैं और दूसरी ओर बीमा कंपनियां हैं जो क्लेम की बढ़ती रकम को नियंत्रित करना चाहती हैं ताकि उनके प्रीमियम की दरें कम रहें।
इस लड़ाई के बीच आम आदमी पिस रहा है। पहले स्टार हेल्थ फिर निवा बुपा और अब टाटा एआईजी। यह सिर्फ संयोग नहीं बल्कि यह एक खतरनाक ट्रेंड है जो बीमा उद्योग के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के लिए भी चिंताजनक है।
टाटा एआईजी और मैक्स के बीच आखिर क्या हुआ?
मैक्स हॉस्पिटल के प्रवक्ता के अनुसार, यह मामला पूरी तरह से अचानक और एकतरफा है। दोनों कंपनियों ने 16 जनवरी 2025 से 15 जनवरी 2027 तक दो साल के लिए एक टैरिफ एग्रीमेंट पर दस्तखत किए थे। लेकिन, जुलाई 2025 में टाटा एआईजी ने अचानक एक मीटिंग बुलाई और रेट में और कटौती की मांग की।
जब मैक्स हॉस्पिटल ने इसे अस्वीकार कर दिया तो टाटा एआईजी ने 10 सितंबर 2025 से कैशलेस सुविधा बंद करने की धमकी दी और फिर इसे लागू भी कर दिया।
मैक्स हॉस्पिटल का कहना है कि वे इस तरह की अचानक की गई मांग से सहमत नहीं थे क्योंकि, इससे मरीजों की देखभाल और सेवा की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता था। यह एक गंभीर आरोप है जो इस बात को उजागर करता है कि सिर्फ पैसों की बात नहीं बल्कि मरीजों की सुरक्षा भी दांव पर लगी हुई है।
मैक्स हॉस्पिटल के अनुसार, 'यह कदम अनुचित है' मैक्स हॉस्पिटल ने इस कदम को अनुचित बताते हुए कहा है कि यह एक ऐसे समय में लिया गया फैसला है जब उन्होंने हाल ही में एक नया समझौता किया था। उनका मानना है कि इस तरह के फैसले बीमा उद्योग में विश्वास को कम करते हैं और पॉलिसीधारकों को भ्रमित करते हैं।
टाटा एआईजी के एक प्रवक्ता ने इस पर कोई सीधी टिप्पणी नहीं की लेकिन, सूत्रों ने बताया है कि दोनों पक्षों के बीच बातचीत चल रही है और कुछ ही दिनों में इस समस्या का समाधान निकल सकता है।
वहीं, टाटा एआईजी ने अपने ग्राहकों के लिए विशेष व्यवस्था की है ताकि उन्हें किसी भी असुविधा का सामना न करना पड़े। उनका कहना है कि वे सभी क्लेम को प्राथमिकता के आधार पर प्रोसेस कर रहे हैं ताकि ग्राहकों को निर्बाध सेवा मिल सके।
यह सिर्फ टाटा एआईजी नहीं, बल्कि एक ट्रेंड है!
यह मामला सिर्फ टाटा एआईजी तक सीमित नहीं है। मैक्स हॉस्पिटल के साथ स्टार हेल्थ, निवा बुपा और केयर हेल्थ इंश्योरेंस का भी ऐसा ही विवाद चल रहा है।
स्टार हेल्थ और निवा बुपा: इन दोनों कंपनियों ने देश भर के 22 मैक्स हॉस्पिटल्स में कैशलेस सुविधा बंद कर दी है।
केयर हेल्थ इंश्योरेंस: केयर हेल्थ ने दिल्ली-एनसीआर के मैक्स हॉस्पिटल्स में यह सुविधा 17 फरवरी 2025 से बंद कर दी थी।
मैक्स हॉस्पिटल का कहना है कि निवा बुपा ने उनसे अपने टैरिफ को 2022 के स्तर पर लाने के लिए कहा था, जिसे उन्होंने मरीजों की सुरक्षा से समझौता मानते हुए अस्वीकार कर दिया। निवा बुपा ने इस मामले पर अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है।
इस 'टैरिफ वॉर' की असली वजह क्या है?
अस्पतालों की बढ़ती लागत: पिछले कुछ सालों में, चिकित्सा उपकरणों, दवाओं, स्टाफ की सैलरी और अस्पताल के रखरखाव का खर्च तेजी से बढ़ा है। अस्पताल इस बढ़ी हुई लागत को टैरिफ बढ़ाकर निकालना चाहते हैं ताकि वे अपनी सेवा की गुणवत्ता बनाए रख सकें।
बीमा कंपनियों का दबाव: बीमा कंपनियां ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए कम प्रीमियम का वादा करती हैं। लेकिन अगर क्लेम की रकम बहुत ज्यादा होगी, तो उनका मुनाफा कम हो जाएगा। इसलिए वे अस्पताल के बिलों को नियंत्रित करना चाहती हैं।
यह स्थिति एक अजीब विरोधाभास पैदा करती है: एक तरफ, अस्पताल मरीजों को सर्वोत्तम इलाज देना चाहते हैं और दूसरी तरफ, बीमा कंपनियां उस इलाज की लागत कम करना चाहती हैं। इस खींचतान में ग्राहक जो दोनों को पैसे दे रहे हैं, सबसे ज्यादा परेशान होता है।
सबसे ज्यादा नुकसान किसका?
आम आदमी का जब बीमा कंपनियों और अस्पतालों के बीच विवाद होता है तो सबसे ज्यादा नुकसान उन लाखों लोगों को होता है जिन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा स्वास्थ्य बीमा पर खर्च किया है।
कैशलेस सुविधा बंद होने का मतलब है बड़ा आर्थिक बोझ: मरीज के परिवार को इलाज से पहले लाखों रुपये की व्यवस्था करनी पड़ती है, जो कई लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती है।
दस्तावेज़ीकरण का झंझट: कैशलेस सुविधा में सीधे अस्पताल और बीमा कंपनी बात करते हैं, लेकिन अब मरीज को खुद सभी कागजात जमा करने होते हैं और क्लेम के लिए दौड़-भाग करनी पड़ती है।
मानसिक तनाव: बीमारी के समय जब सबसे ज्यादा आराम की जरूरत होती है, मरीज के परिवार को पैसों के लिए और क्लेम की प्रक्रिया के लिए भागना पड़ता है। यह तनाव मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से थका देने वाला होता है।
मैक्स हॉस्पिटल ने मरीजों की मदद के लिए एक 'एक्सप्रेस डेस्क' स्थापित किया है जो उन्हें क्लेम फॉर्म भरने में मदद करेगा। लेकिन यह समझना जरूरी है कि यह सिर्फ एक अस्थायी समाधान है। जब तक दोनों पक्ष किसी स्थायी समझौते पर नहीं पहुंचते, तब तक यह संकट जारी रहेगा।
क्या सुलझेगा यह संकट? आम आदमी का क्या होगा?
अभी तक, टाटा एआईजी और मैक्स हॉस्पिटल के बीच बातचीत जारी है। सूत्रों का कहना है कि एक या दो दिन में कोई समाधान निकल सकता है। हालांकि, यह सिर्फ एक अस्थायी समाधान होगा। जब तक बीमा कंपनियां और अस्पताल एक-दूसरे की जरूरतों को नहीं समझते, तब तक यह 'टैरिफ वॉर' समय-समय पर सामने आती रहेगी।
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