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सिंधु जल समझौते पर विचार करने के लिए भारत के सामने गिड़गिड़ाया पाकिस्तान

सीजफायर के बाद लगातार भारत पर जहर उगल रहे पाकिस्तान ने बुधवार को भारत सरकार से जल सिंधु समझौते की बहाली पर पुनर्विचार किए जाने का अनुरोध किया है। 

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Mukesh Pandit
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। सीजफायर के बाद लगातार भारत पर जहर उगल रहे पाकिस्तान ने बुधवार को भारत सरकार से जल सिंधु समझौते की बहाली पर पुनर्विचार किए जाने का अनुरोध किया है। वह लगातार भारत के सामने गिड़गिड़ा रहा है। भारत ने बुधवार की शाम को जम्मू-कश्मीर के रामबन में चेनाब नदी पर बने बगलिहार जलविद्युत परियोजना बांध के सभी द्वार बंद कर दिए गए हैं। कहा जा रहा है कि गर्मी के मौसम में पानी को लेकर पाकिस्तान में हाहाकार की स्थिति पैदा हो गई है। 

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विवाद पैदा होने पर तटस्थ विशेषज्ञ करता है समाधान

विवाद को सुलझाने के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति का प्रावधान भी संधि में है। यह अनुच्छेद IX के अनुलग्नक F में दर्ज है। 2005 में जब भारत चेनाब पर बगलिहार बांध बनाना चाहता था तो पाकिस्तान ने आपत्ति जताई थी। स्विस विशेषज्ञ रेमंड लाफिट के इनपुट के आधार पर विवाद का समाधान किया गया। दोनों देशों ने विशेषज्ञों के सुझावों पर सहमति जताई और मसला सुलझ गया। 

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विश्व बैंक की दहलीज पर जा सकता है पाकिस्तान

मौजूदा स्थिति अलग है। भारत न केवल संधि से बाहर निकलना चाहता है, बल्कि जल प्रवाह को भी रोकना चाहता है। अनुच्छेद IX (5) के अनुलग्नक G के तहत पाकिस्तान के पास विश्व बैंक से मध्यस्थता न्यायालय का गठन करने का विकल्प है। चाहें भारत अवहेलना करे, लेकिन संधि के गारंटर के रूप में विश्व बैंक का दायित्व है कि वह मध्यस्थता न्यायालय की स्थापना करे। मध्यस्थता न्यायालय का फैसला आने से पहले अंतरिम उपायों का प्रावधान है। कोई भी पक्ष न्यायालय से अनुरोध कर सकता है कि अंतिम फैसले तक वह कुछ ऐसा करे जिससे उसके हितों की रक्षा हो सके।

संभावना है कि मौजूदा मामले में पाकिस्तान इस तरह के अंतरिम उपाय की मांग करेगा और मध्यस्थता अदालत के लिए इसे खारिज करना मुश्किल होगा। भारत अंतरिम आदेश और पूरी मध्यस्थता प्रक्रिया को अनदेखा करने का विकल्प चुन सकता है। लेकिन ऐसा करने से जो स्थिति बनेगी वो मुफीद नहीं रहने वाली है।

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तकनीकी तौर पर भी पानी रोकना अभी बेहद मुश्किल


आईडब्ल्यूटी से बाहर निकलकर पानी रोकने का फैसला तकनीकी तौर पर भी मुश्किल भरा है। भले ही भारत पानी को मोड़ने के लिए भंडारण इकाइयों के निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर दे, लेकिन डाउनस्ट्रीम प्रवाह में महत्वपूर्ण बदलाव लाने में दशकों का समय और बहुत सारा पैसा लग सकता है। कहने की जरूरत नहीं कि पानी को रोकने की खोखली धमकियां भारत की साख पर भी बट्टा लगा सकती हैं।

कहीं देश के भीतर इस तरह का माहौल बन गया तो...

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इस तरह के फैसले का असर देश के भीतर भी दिख सकता है। भारत के कई राज्य पानी को लेकर एक दूसरे से गुत्मगुत्था हैं। केंद्र सरकार चाहकर भी तमिलनाडु-कर्नाटक और पंजाब-हरियाणा या फिर हरियाणा-दिल्ली के बीच फैसला नहीं करा सका है कि पानी का बंटवारा कैसे किया जाए। पंजाब तो असेंबली से प्रस्ताव पारित करके न्यायिक व्यवस्था को भी धता बता चुका है। भारत सरकार इस तरह का फैसला लेती है तो राज्य कहीं इसी रास्ते पर न चल निकलें, ये खतरनाक होगा

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