नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों की पुलिस को चेतावनी देते हुए कहा कि वह कानून का दायरे में रहकर ही कानून का पालन कराए। बेवजह, वर्दी का रौब दिखाने से पुलिसकर्मियों को बाज आना चाहिए। पड़ोसी के साथ हुए झगड़े के लिए एक व्यक्ति को गिरफ्तार किए जाने और हिरासत में उसके साथ कथित तौर पर मारपीट करने के मामले का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह सख्त टिप्पणी की है। इस मामले में सर्वोच्च अदालत ने हरियाणा के डीजीपी को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के निर्देश भी दिए हैं।
वर्दी का रौब नहीं दिखाए पुलिस
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने इस बात पर नाराजगी जताई कि कोर्ट के कई फैसलों के बावजूद देशभर में पुलिस नियम विरुद्ध लोगों की गिरफ्तारी करती है उन्हें परेशान करती है और तरह-तरह से तंग किया जाता है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस लोगों को अपनी वर्दी की ताकत का धौंस दिखाने से बचना चाहिए। भविष्य में सुप्रीम कोर्ट इस तरह की हरकतों को गंभीरता से लेगा। गलत आचरण करने वाले अधिकारियों को दंडित किया जाएगा
डीजीपी को सही आचरण सिखाएं
Police | delhi police | ghaziabad police | haryana police सुप्रीम कोर्ट ने अपनी रजिस्ट्री को आदेश दिया है कि वह इस आदेश (विजय पाल यादव बनाम ममता सिंह और अन्य) के साथ ही 2023 के सोमनाथ बनाम महाराष्ट्र सरकार मामले के फैसले की कॉपी सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस प्रमुखों को भेजे। कोर्ट ने कहा है कि राज्यों के डीजीपी अपने अधिकारियों को नियमों के मुताबिक चलने के लिए समझाएं।
क्या था सोमनाथ बनाम महाराष्ट्र सरकार का फैसला?
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2023 का सोमनाथ बनाम महाराष्ट्र सरकार फैसला जिस मामले में आया था, उसमें पुलिस ने चोरी के एक आरोपी को जूतों की माला पहनाकर अर्धनग्न अवस्था में सड़क पर घुमाया था। तब भी कोर्ट ने 1996 के 'डी के बसु बनाम पश्चिम बंगाल सरकार' फैसले की अवहेलना पर कड़ी नाराजगी जताते हुए पुलिस को नियमों की याद दिलाई थी। डी के बसु फैसले में गिरफ्तारी और पूछताछ से जुड़े नियम स्पष्ट किए थे। गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को हिरासत में यातना देने की भी साफ मनाही की थी। police operation | police performance
'अर्णेश कुमार बनाम बिहार सरकार' के फैसले का जिक्र
सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा आदेश में पुलिस और निचली अदालत के जजों को 'अर्णेश कुमार बनाम बिहार सरकार' फैसले के भी कड़ाई से पालन की हिदायत दी है। उस फैसले में कहा गया था कि 7 साल से कम की सज़ा वाले मामलों में ज़रूरी स्थितियों में ही गिरफ्तारी हो। आरोपी को पहले सीआरपीसी की धारा 41 का नोटिस दिया जाए। अगर वह पूछताछ में सहयोग करे तो उसकी गिरफ्तारी न हो। गिरफ्तारी से पहले उसकी जरूरत बताते हुए कारण लिखित में दर्ज किए जाएं।