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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क।हमारे देश में तीन सेनाएं हैं पर महिलाओं को लेकर तीनों का रवैया अलग-अलग है। लेकिन अब ऐसा नहीं होने जा रहा। सुप्रीम कोर्ट आफ इंडिया ने सरकार को कड़ी फटकार लगाकर उस नियम को तब्दील करा दिया जिसमें जज एडवोकेट जनरल (JAG) शाखा में महिलाओं को यह दलील देकर शामिल नहीं किया जा रहा था कि इसमें जोखिम है। इसमें भरती होने वालों को लड़ाई लड़नी पड़ती है। महिलाओं को इस तरह के महकमे में शामिल करना गलत होगा।
केंद्र के तर्कों को खारिज कर दिया
सरकार की यह दलील सुप्रीम कोर्ट को दुरुस्त नहीं लगी। अदालत ने JAG ब्रांच से महिलाओं को बाहर रखने के केंद्र के तर्कों को खारिज कर दिया। फरमान जारी किया कि सभी उम्मीदवारों (महिला पुरुष दोनों) के लिए एक जैसी मेरिट सूची बनाई जाए। जस्टिस दीपांकर दत्ता और मनमोहन की बेंच ने कहा कि अदालत सेना पर अपने विचार नहीं थोप रही है, बल्कि संविधान और कानून को लागू कर रही है। जस्टिस मनमोहन ने कहा- कोई भी राष्ट्र तब तक सुरक्षित नहीं रह सकता जब तक उसकी आधी आबादी महिलाओं) को पीछे रखा जाए।
महिला अधिकारियों को क्यों नहीं तैनात किया जाता
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- सेना आतंकवाद से लड़ने के लिए महिलाओं को क्यों नहीं तैनात कर सकती। कोर्ट ने सोमवार को पूछा कि अगर वायुसेना जैसे अन्य सशस्त्र बल महिलाओं को जेट, हेलिकॉप्टर और पैराशूट में दुश्मन की सीमा के पीछे भेजते हैं तो सेना आपात स्थिति में आतंकवाद और उग्रवाद से निपटने के लिए महिला अधिकारियों को क्यों नहीं तैनात कर सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने ये बात तब कही जब उसे पता चला कि JAG ब्रांच में महिला अधिकारियों की नियुक्ति को प्रतिबंधित किया गया है। महिला उम्मीदवारों का प्रतिनिधित्व सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने किया। उनकी दलील थी कि सरकार की नीतियां एक सी नहीं हैं। एयरफोर्स महिलाओं को भरती करके युद्ध या युद्ध जैसी स्थिति के समय उनको लड़ने के लिए मोर्चे पर भेजती है। जबकि थल सेना इस तरह का फैसला लेने से हमेशा बचती है।
सेना की नीति को किया खारिज
शंकरनारायणन की दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने JAG ब्रांच में महिला अधिकारियों की नियुक्ति को प्रतिबंधित करने वाली सेना की नीति को खारिज कर दिया। कोर्ट ने केंद्र सरकार को सभी जेएजी उम्मीदवारों, पुरुषों और महिलाओं, के लिए एक समान योग्यता सूची प्रकाशित करने और उनके अंकों को सार्वजनिक करने का निर्देश दिया। शीर्ष न्यायालय ने केंद्र सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया कि JAG में केवल लड़ाकू कर्मी होते हैं क्योंकि वो लामबंदी के लिए तैनात होते हैं।
न्यायालय ने कहा कि यह तर्क महिलाओं के सभी लड़ाकू सहायक शस्त्र सेवाओं का हिस्सा बनने के अधिकार के विपरीत है। इसने सेना में अपने रोजगार के सभी पहलुओं में महिलाओं के समान व्यवहार के अधिकार का भी उल्लंघन किया। कोर्ट ने कहा कि देश में 1.4 मिलियन से अधिक सक्रिय जवान हैं। 2.1 मिलियन रिजर्व में रखे गए हैं। इनके अलावा 1.3 मिलियन अर्धसैनिक बलों के जवान हैं। इन सभी का काम लड़ना ही होता है। ऐसे में केवल 285 अधिकारियों की क्षमता वाले JAG से महिलाओं को बाहर रखने की बात समझ से परे है। ये दलील समझ में नहीं आ रही कि महिलाओं को इससे बाहर इस वजह से रखा जा रहा है क्योंकि युद्ध के समय इनकी तैनाती हो सकती है। supreme court | Supreme Court Debate | Supreme Court India | Indian Army policy