/young-bharat-news/media/media_files/2025/02/14/bdR37e69GiCuP374m7qu.jpg)
/
By clicking the button, I accept the Terms of Use of the service and its Privacy Policy, as well as consent to the processing of personal data.
Don’t have an account? Signup
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दहेज मृत्यु एक ‘गंभीर सामाजिक चिंता’ बनी हुई है और अदालतों का यह कर्तव्य है कि वे ऐसे मामलों में जमानत दिए जाने की परिस्थितियों की गहराई से पड़ताल करें। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि दहेज-मृत्यु के मामलों में अदालतों को व्यापक सामाजिक प्रभाव के प्रति सचेत रहना चाहिए, क्योंकि यह अपराध सामाजिक न्याय और समानता की जड़ों पर प्रहार करता है।
पीठ ने कहा, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज के समाज में दहेज मृत्यु एक गंभीर सामाजिक चिंता बनी हुई हैं और हमारी राय में अदालतों का यह कर्तव्य है कि वे उन परिस्थितियों की गहन पड़ताल करें जिनके तहत इन मामलों में जमानत दी जाती है।’सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ द्वारा उस महिला के सास-ससुर को दी गई जमानत रद्द कर दी, जो शादी के दो साल के भीतर जनवरी 2024 में अपने ससुराल में मृत पाई गई थी। प्राथमिकी में आरोप लगाया गया कि दहेज के लिए महिला के ससुराल वालों द्वारा उसे लगातार परेशान किया जाता था और उसके साथ क्रूरता की जाती थी।
पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में सख्त न्यायिक पड़ताल आवश्यक है, जहां शादी के ठीक बाद एक महिला ने ससुराल में अपनी जान गंवा दी, खासकर जहां रिकॉर्ड में दहेज की मांग पूरी न होने पर लगातार उत्पीड़न की बात कही गई हो। पीठ ने कहा, ‘ऐसे जघन्य कृत्यों के कथित मुख्य आरोपियों को जमानत देना न केवल मुकदमे को बल्कि आपराधिक न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास को भी कमजोर कर सकता है, जबकि साक्ष्यों से पता चलता है कि उन्होंने सक्रिय रूप से शारीरिक और मानसिक पीड़ा पहुंचाई।’
अदालत ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 304बी (दहेज मृत्यु) में अपराध की गंभीर प्रकृति और इससे होने वाले व्यवस्थागत नुकसान के कारण कठोर मानक निर्धारित किए गए हैं। पीठ ने कहा कि जब महिला की शादी के महज दो साल के भीतर ही संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो जाती है, तो न्यायपालिका को अत्यधिक सतर्कता और गंभीरता दिखानी होगी।
पीठ ने कहा कि जमानत के मापदंडों का सतही प्रयोग न केवल अपराध की गंभीरता को कम करता है, बल्कि दहेज मृत्यु की समस्या से निपटने के लिए न्यायपालिका के संकल्प में जनता का विश्वास भी कमजोर करता है।
अदालत ने कहा, ‘अदालत के भीतर या बाहर, न्याय की यही धारणा है कि इसकी रक्षा अदालतों को करनी चाहिए, अन्यथा हम ऐसे अपराध को सामान्य बना देंगे जो अनगिनत निर्दोष लोगों की जान ले रहा है।’ शीर्ष अदालत ने आरोपी को जमानत देने में उच्च न्यायालय द्वारा अपनाए गए ‘यांत्रिक दृष्टिकोण’’ पर चिंता जताई, लेकिन महिला की दो ननदों की भूमिका की प्रकृति के मद्देनजर उनकी जमानत बरकरार रखी। पीठ ने सास-ससुर को संबंधित अदालत/प्राधिकार के समक्ष आत्मसमर्पण करने का भी निर्देश दिया।
India's Got Latent case: रणवीर इलाहाबादिया को ‘The Ranveer Show’ के प्रसारण की मिली अनुमति