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जिस अफसर को अंग्रेजी बोलना नहीं आता वो नहीं बन सकता इलेक्शन ऑफिसर, इस बेतुके आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य चुनाव आयुक्त और मुख्य सचिव को यह जांच करने के आदेश दिया कि क्या अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट स्तर का कोई अधिकारी जो प्रोफिशिएंस इंग्लिश नहीं बोल सकता वह किसी एग्जिक्यूटिव पॉजिशन को प्रभावी रूप से नियंत्रित कर सकता है?

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Mukesh Pandit
SUPREME COURT OF INDIA-
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। प्रशासनिक और न्यायिक स्तर पर कई बार बड़े रोचक और दिलचस्प मामले सामने आते हैं। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य चुनाव आयुक्त और मुख्य सचिव को यह जांच करने के आदेश दिया कि क्या अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट स्तर का कोई अधिकारी जो प्रोफिशिएंस इंग्लिश नहीं बोल सकता वह किसी एग्जिक्यूटिव पॉजिशन को प्रभावी रूप से नियंत्रित कर सकता है? यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो देश की सबसे बड़ी अदालत ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के इस आदेश पर रोक लगा दी है।

सुप्रीम कोर्ट के  मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली और जस्टिस के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ ने इस मामले में सुनवाई की थी। सभी दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से 18 जुलाई को पारित आदेश के खिलाफ मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी करने का फैसला किया।

ये था मामला, अंग्रेजी समझ लेते हैं, लेकिन...'

बता दें कि हाई कोर्ट ने पंचायत वोटर लिस्ट एंट्रीज को अंतिम रूप देने के लिए फैमिली रजिस्टार की वैधता से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया था। हाई कोर्ट ने अधिकारी से भी पूछताछ की थी, जिसका जवाब हिंदी में दिया गया था। अधिकारी से पूछा गया था कि क्या वह अंग्रेजी जानते हैं, जिस पर उन्होंने जवाब दिया था कि जब उनसे बात की जाती है तो वह अंग्रेजी समझ लेते हैं, लेकिन बोल नहीं पाते।

चुनाव आयुक्त और मुख्य सचिव जांच करने का दिया था निर्देश

अधिकारी के जवाब पर विचार करते हुए हाई कोर्ट ने राज्य चुनाव आयुक्त और मुख्य सचिव को यह जांच करने का निर्देश दिया था कि क्या एडीएम स्तर का एक अधिकारी, "जो अंग्रेजी का ज्ञान न होने या अपने शब्दों में अंग्रेजी में बात करने में असमर्थ होने का दावा करता है, किसी कार्यकारी पद को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने की स्थिति में होगा?

उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले पर रोक

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सुप्रीम कोर्ट की  बैंच ने अपने आदेश में कहा, "नोटिस जारी करें। इसका जवाब चार हफ्तों में दिया जाए...। सामान्य प्रक्रिया के अलावा याचिकाकर्ता को प्रतिवादी/राज्य के वकील के माध्यम से नोटिस देने की स्वतंत्रता दी जाती है। अगले आदेश तक उत्तराखंड हाई कोर्ट से 18 जुलाई 2025 को पारित विवादित निर्णय और आदेश पर रोक रहेगी।"

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