नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क। जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के पहलगाम में मंगलवार को पाकिस्तानपरत आतंकियों ने पुलिस की वर्दी में अंधाधुंध फायरिंग करके 28 निहत्थे पर्यटकों की बर्बर हत्या कर दी गई। भारत ने इस घटना पर सख्त प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
सबसे पहले दिल्ली में पाकिस्तानी दूतावास को बंद कर दिया है तथा 65 साल पहले के सिंधु समझौते को तत्काल प्रभाव से रोकने का सख्त फैसला लेकर आतंकियों के पालनकर्ताओं को सख्त संदेश दिया है। इस फैसले के रद्द होने से पाकिस्तान में सिंचाई की व्यवस्था पूरी तरह चौपट हो जाएगी, क्योंकि 80 प्रतिशत खेती इसी पर निर्भर है। trending | trending news | trending news India | India Pakistan Relations | India vs Pakistan
65 साल पहले हुए था सिंधु जल समझौता
सिंधु जल समझौता (Indus Waters Treaty) भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ एक द्विपक्षीय समझौता है। इस संधि पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। यह समझौता सिंधु नदी और इसकी सहायक नदियों—झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास, और सतलज—के जल के बंटवारे को नियंत्रित करता है।
80 प्रतिशत जल पाकिस्तान को मिलता है
इसके अंतर्गत छह नदियों को दो समूहों में बांटा गया पूर्वी नदियां (रावी, ब्यास, सतलज) भारत को और पश्चिमी नदियां (सिंधु, झेलम, चिनाब) पाकिस्तान को आवंटित की गईं। समझौते के अनुसार, सिंधु नदी प्रणाली के कुल जल का लगभग 80% हिस्सा पाकिस्तान को और 20% भारत को मिलता है। भारत को पश्चिमी नदियों पर सीमित कृषि उपयोग और गैर-उपभोगी उपयोग (जैसे जलविद्युत उत्पादन) की अनुमति है। यह संधि दोनों देशों के बीच युद्धों और तनावों के बावजूद 65वर्षों से कायम है और इसे जल बंटवारे के सबसे सफल समझौतों में से एक माना जाता है।
पाकिस्तान पर इसका प्रभाव
सिंधु जल समझौता पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसकी 80% सिंचाई पश्चिमी नदियों पर निर्भर है, जो देश की 2.6 करोड़ एकड़ कृषि भूमि को पानी प्रदान करती हैं। ये नदियां पाकिस्तान के पंजाब प्रांत, जो इसका कृषि केंद्र है, के लिए जीवन रेखा हैं। यदि यह समझौता रद्द होता है या जल प्रवाह में रुकावट आती है, तो पाकिस्तान में गंभीर जल संकट पैदा हो सकता है।
जल की कमी का सामना करना पड़ेगा
इससे कृषि उत्पादन, खाद्य सुरक्षा, और जलविद्युत उत्पादन प्रभावित होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि जल की कमी से सामाजिक-आर्थिक अस्थिरता बढ़ सकती है, क्योंकि पाकिस्तान की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा इन नदियों पर निर्भर है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या वृद्धि के कारण पहले से ही पानी की मांग बढ़ रही है, जिससे स्थिति और जटिल हो सकती है।
भारत की प्रतिक्रिया और पाकिस्तान पर प्रभाव
हाल के वर्षों में, भारत ने सिंधु जल समझौते की समीक्षा और संशोधन की मांग की है। 2023 और 2024 में भारत ने पाकिस्तान को कई नोटिस भेजे, जिसमें जनसंख्या वृद्धि, पर्यावरणीय बदलाव, और सीमा पार आतंकवाद जैसे कारणों का हवाला दिया गया। भारत का कहना है कि 1960 की परिस्थितियां बदल चुकी हैं, और संधि को अद्यतन करने की आवश्यकता है। भारत ने जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रतले जैसी जलविद्युत परियोजनाओं पर भी काम तेज किया है, जिसका पाकिस्तान विरोध करता है, क्योंकि उसे लगता है कि ये परियोजनाएं जल प्रवाह को प्रभावित कर सकती हैं।
गंभीर परिणाम भुगतने होंगे
समझौते के रद्द होने से पाकिस्तान के लिए परिणाम गंभीर होंगे। जल प्रवाह में कमी से पाकिस्तान का पंजाब प्रांत सूख सकता है, जिससे कृषि संकट और खाद्य असुरक्षा बढ़ेगी। भारत द्वारा पानी रोकने की स्थिति में पाकिस्तान विश्व बैंक या अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शिकायत दर्ज कर सकता है, क्योंकि समझौता एकतरफा रद्द करने की अनुमति नहीं देता। हालांकि, भारत की कठोर नीति से दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ सकता है, जिससे कूटनीतिक और सैन्य टकराव का खतरा पैदा हो सकता है। दूसरी ओर, भारत के लिए भी यह कदम अंतरराष्ट्रीय दबाव और चीन जैसे ऊपरी riparian देशों की प्रतिक्रिया को जन्म दे सकता है, क्योंकि सिंधु का उद्गम तिब्बत में है।
जल सहयोग का एक महत्वपूर्ण ढांचा
सिंधु जल समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच जल सहयोग का एक महत्वपूर्ण ढांचा है। पाकिस्तान के लिए यह समझौता जीवन रेखा है, और भारत की किसी भी सख्त प्रतिक्रिया से उसकी अर्थव्यवस्था और समाज पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि, समझौते को रद्द करना दोनों देशों के लिए जटिल और जोखिम भरा होगा। बेहतर होगा कि दोनों देश बातचीत के माध्यम से समाधान खोजें, ताकि जल युद्ध की स्थिति से बचा जा सके।