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Bengal News | bengal protests : पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद की गलियों में अब सन्नाटा पसरा है। जहां कभी बच्चों की हंसी और पड़ोसियों की बातचीत गूंजती थी, वहां आज सिर्फ डर और दर्द की कहानियां बची हैं। केंद्र सरकार के नए वक्फ कानून के खिलाफ शुरू हुए छोटे-मोटे प्रदर्शन अब हिंसा की आग में तब्दील हो चुके हैं। इस आग ने न सिर्फ घरों को जलाया, बल्कि लोगों की जिंदगियां भी राख कर दीं।
पहले भी मुर्शिदाबाद में हिंसा की घटनाएं हो चुकी हैं। 2019 में सीएए के खिलाफ और 2024 में रामनवमी के दौरान यहां तनाव फैला था। क्या यह सिर्फ वक्फ कानून का विरोध है, या इसके पीछे कोई गहरी साजिश है? यह सवाल हर किसी के मन में है।
घरों से बेदखल हिंदू परिवार, "जाएं तो जाएं हम कहां जाएं?"
रिया की आवाज़ में डर और बेबसी साफ झलकती है। वह बताती हैं, "हमारे घर पर हमला हुआ। सब कुछ तोड़ दिया। मेरे गले पर चाकू रखा था। मैं किसी तरह जान बचाकर भागी।" रिया उन सैकड़ों लोगों में से एक हैं, जो मुर्शिदाबाद छोड़कर मालदा की ओर पलायन कर रहे हैं। जयंत दास का परिवार भी इसी दर्द से गुज़र रहा है। वे कहते हैं, "मुसलमान हमें परेशान कर रहे हैं। हमारा घर लूट लिया। अब हम कहां जाएंगे?"
शमशेरगंज की एक और दिल दहलाने वाली घटना ने सबको झकझोर दिया। 12 अप्रैल को भीड़ ने 65 साल के हरगोविंद दास और उनके 35 साल के बेटे चंदन दास को बेरहमी से मार डाला। चंदन की बहन शरबानी बताती हैं, "चार घंटे तक हम डर के साए में जीए। बम फट रहे थे। भीड़ ने ताऊजी को खींचकर बाहर ले लिया। चंदन उन्हें बचाने गया, लेकिन दंगाइयों ने दोनों का गला रेत दिया।"
हिंसा की शुरुआत: एक चिंगारी से आग तक
मुर्शिदाबाद में वक्फ कानून के खिलाफ प्रदर्शन 7 अप्रैल से शुरू हुए थे। शुरुआत में यह शांतिपूर्ण थी, लेकिन 11 अप्रैल को सूती कस्बे में हालात बेकाबू हो गए। प्रदर्शनकारियों ने नेशनल हाईवे-12 को जाम कर दिया, ट्रेनें रोक दीं, और पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया। यह हिंसा जल्द ही शमशेरगंज, रघुनाथगंज और धुलियान तक फैल गई।
पुलिस और केंद्रीय बलों ने स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन भीड़ ने सरकारी बसों और पुलिस वाहनों को आग के हवाले कर दिया। अब तक तीन लोगों की मौत हो चुकी है, और 50 से ज्यादा लोग घायल हैं, जिनमें 16 पुलिसकर्मी शामिल हैं। करीब 170 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
क्या है हिंसा का असली कारण?
हिंसा के पीछे कई सवाल उठ रहे हैं। कुछ स्थानीय पत्रकारों का मानना है कि इसमें बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठनों का हाथ हो सकता है। मुर्शिदाबाद की सीमा बांग्लादेश से सटी है, और यहां अवैध आवाजाही का इतिहास रहा है। बीएसएफ की एक रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि बांग्लादेश का प्रतिबंधित संगठन अंसार उल्लाह बांग्ला या अंसार बांग्ला हिंसा को भड़का सकता है।
एक पत्रकार ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "जंगीपुर के पास बांग्लादेश का चंपई नवाबगंज इलाका आतंकियों का गढ़ माना जाता है। वहां से लोग भारत में आकर हिंसा के लिए उकसा रहे थे। कुछ बांग्लादेशी नागरिक भी भीड़ में शामिल हो सकते हैं।"
वैसे बीजेपी और टीएमसी के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। बीजेपी नेता सुकांत मजूमदार का कहना है कि ममता बनर्जी की सरकार कानून-व्यवस्था बनाए रखने में नाकाम रही है। दूसरी ओर, टीएमसी सांसद खलीलुर रहमान का दावा है कि हिंसा में बाहरी लोग शामिल थे, जो मालदा और नदिया से आए थे।
पलायन और डर का माहौल, घर बार छोड़ रहे हिंदू परिवार
हिंसा के बाद मुर्शिदाबाद से सैकड़ों हिंदू परिवार मालदा की ओर भाग रहे हैं। लोग अपने घरों को लुटा हुआ और जला हुआ छोड़कर जा रहे हैं। अख्तर, जो हिंदू बहुल इलाके में रहते हैं, बताते हैं, "भीड़ ने हमारे घरों में तोड़फोड़ की। लूटपाट की। यह सब सिर्फ वक्फ कानून का विरोध नहीं, बल्कि कुछ और लगता है।"
वहीं, तारिक अपनी मेडिकल शॉप का सामान लुटने का दर्द बयां करते हैं। वे कहते हैं, "मैं घर पर नहीं था। दंगाइयों ने सब लूट लिया। अब मैं कैसे शुरू करूं?"
क्या कहती है पुलिस और बीएसएफ?
हिंसा को रोकने के लिए बीएसएफ की 10 और सीआरपीएफ की 5 कंपनियां तैनात की गई हैं। बीएसएफ के आईजी करणी सिंह शेखावत ने कहा, "हम पुलिस की मदद कर रहे हैं। बॉर्डर पर भी निगरानी बढ़ा दी गई है।" मुर्शिदाबाद और आसपास के जिलों में इंटरनेट सेवाएं बंद हैं ताकि अफवाहें न फैलें।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने भी हिंसा पर सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने कहा, "हम आंखें मूंदकर नहीं बैठ सकते। शांति हमारा पहला लक्ष्य है।"
क्या कहता है मुर्शिदाबाद का इतिहास और सियासत
मुर्शिदाबाद में 70% से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। यह टीएमसी का गढ़ माना जाता है। 2021 के विधानसभा चुनाव में जिले की 22 में से 20 सीटें टीएमसी ने जीती थीं। हिंदू यहां अल्पसंख्यक हैं, स्थानीय लोगों की मानें तो मुर्शिदाबाद अब हिंदुओं के रहने लायक नहीं बचा है।
हिंदुओं पर आए दिन वामपंथी कांग्रेसी शासन में भी धमकाया मारा जाता रहा है। वैसे अब देखना बाकी है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले यह हिंसा सियासी रंग ले सकती है।
मुर्शिदाबाद की सड़कों पर अब सायरन की आवाज़ें गूंज रही हैं। लोग डर के साए में जी रहे हैं। कोई अपने बेटे की मौत का जवाब मांग रहा है, तो कोई अपने जले हुए घर को देखकर रो रहा है। इस हिंसा ने न सिर्फ संपत्ति को नुकसान पहुंचाया, बल्कि इंसानियत को भी घायल किया है।
क्या मुर्शिदाबाद फिर से शांति की राह पर लौटेगा? क्या लोग अपने घरों को दोबारा बसाएंगे? ये सवाल वक्त के गर्भ में हैं। लेकिन एक बात साफ है—जब तक नफरत की आग जलती रहेगी, तब तक मासूम जिंदगियां बुझती रहेंगी।