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उत्तरकाशी में बादल फटने से जल प्रलय: जानिए कैसे, क्यों और कब फटते हैं बादल?

उत्तरकाशी के खीरगंगा क्षेत्र में 5 अगस्त को बादल फटने से भारी जल प्रलय। जानिए बादल कैसे, कब और क्यों फटते हैं और पहाड़ों में ये घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं।

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Dhiraj Dhillon
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। उत्तरकाशी जिले के धराली गांव और उससे सटे खीरगंगा इलाके में 5 अगस्त को बादल फटने की दर्दनाक घटना घटी। यह इलाका ट्रैकिंग प्रेमियों की पसंदीदा जगहों में से एक है, लेकिन अचानक हुए इस हादसे में पूरा इलाका तबाह हो गया। मकान तिनकों की तरह बह गए, बाजार और बस्तियां मटियामेट हो गईं, इंसान और मवेशी तेज बहाव में बह गए। कई लोग अभी भी लापता हैं। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे पर्वतीय राज्यों में मॉनसून के दौरान बादल फटने की घटनाएं आम होती जा रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव इसका बड़ा कारण हैं। जब सीमित क्षेत्र (20–30 वर्ग किमी) में एक घंटे में 100 मिमी से अधिक बारिश होती है, तो इसे 'बादल फटना' कहा जाता है। यह बारिश इतनी तीव्र होती है कि बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

विज्ञान की नजर में कैसे और क्यों फटते हैं बादल?

  • जब नमी से भरे बादल किसी ऊंचे पहाड़ी क्षेत्र में अटक जाते हैं
  • ठंडी और गर्म हवाओं के टकराव से बनते हैं भारी बादल
  • 'क्यूमुलोनिम्बस' नामक ऊर्ध्वाकार बादल बनते हैं
  • पहाड़ों के ढलानों से टकराकर ये बादल तेजी से बारिश करते हैं

खतरनाक क्यों होता है क्लाउडबर्स्ट?

  • अचानक आई बाढ़ सब कुछ बहा ले जाती है।
  • मिट्टी, पत्थर, पेड़, मवेशी, मकान सब तबाह।
  • ढलान की वजह से पानी तेजी से नीचे की ओर बहता है।
  • एक दशक में हजारों लोग मौत का शिकार हो चुके हैं।

पहाड़ों में क्यों बढ़ रही हैं घटनाएं?

  • तेजी से हो रहा जलवायु परिवर्तन
  • जंगलों की कटाई, अवैध निर्माण, वाहनों की अधिक आवाजाही
  • स्थानीय जलचक्र में बदलाव।
  • अधिक पर्यटक और कम हरियाली।
  • बादलों को मिलती है इतनी नमी कहाँ से?
  • गंगा के मैदानों की निम्न स्तर की हवाएं।
  • पूर्व और उत्तर पश्चिम से आने वाली नमी भरी हवाएं।
  • एक साथ कई कारकों के मिलने पर होती है यह घटना।

क्या करें बचाव के लिए?

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  • वर्षा ऋतु में नदी-नालों के पास रुकने से बचें।
  • पहाड़ी ढलानों पर निर्माण से परहेज करें।
  • मौसम विभाग की चेतावनी को नजरअंदाज न करें।
  • पौधरोपण बढ़ाएं और पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखें।

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