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WEF Study: स्वस्थ महिलाएं ही देश की मजबूत अर्थव्यवस्थाओं का आधार

विश्व आर्थिक मंच ने दुनिया में महिलाओं के स्वास्थ्य में निवेश पर जोर देते हुए कहा कि उसके नए शोध से पता चलता है कि महिलाओं के स्वास्थ्य के अंतर को पाटने से 2040 तक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में सालाना 400 अरब अमेरिकी डॉलर की बढ़ोतरी हो सकती है।

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Mukesh Pandit
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Photograph: (google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।

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निश्चित ही आजादी के बाद भारत में महिलाओं का समाज में सम्मान बढ़ा है, हालांकि उनके सशक्तिकरण की गति दशकों तक धीमी रही है। गरीबी व निरक्षरता महिलाओं की प्रगति में गंभीर बाधा रही हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल के माध्यम से महिलाओं को व्यवसाय की ओर प्रोत्साहित कर इन्हें आर्थिक रूप से सुदृढ़ किया जा सकता है। अब  विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने दुनिया में महिलाओं के स्वास्थ्य में निवेश पर जोर देते हुए कहा कि उसके नए शोध से पता चलता है कि महिलाओं के स्वास्थ्य के अंतर को पाटने से 2040 तक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में सालाना 400 अरब अमेरिकी डॉलर की बढ़ोतरी हो सकती है। अर्थात साफ है कि स्वस्थ्य महिलाएं ही किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का आधार हैं। 

दुनियाभर में पुरुषों की तुलना में महिलाएं अपने जीवन का 25 प्रतिशत अधिक खराब स्वास्थ्य में जीती हैं। रिपोर्ट, मैकिन्से हेल्थ इंस्टीट्यूट (एमएचआई)

महिला स्वास्थ्य प्रभाव निगरानी मंच की शुरुआत

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मंच ने अपनी वार्षिक बैठक में नए महिला स्वास्थ्य प्रभाव निगरानी मंच की भी शुरुआत की है, जो दुनियाभर में लाखों महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों की निगरानी और उन्हें समाधान करने के लिए डिजाइन किया गया एक सार्वजनिक रूप से सुलभ मंच है। नयी रिपोर्ट महिला स्वास्थ्य के अंतर को पाटने और सभी के लिए जीवन व अर्थव्यवस्था में सुधार का खाका है। यह रिपोर्ट मैकिन्से हेल्थ इंस्टीट्यूट (एमएचआई) के सहयोग से प्रकाशित की गई है। रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं अपने जीवन का 25 प्रतिशत अधिक खराब स्वास्थ्य में जीती हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे नौ प्रमुख स्वास्थ्य स्थितियों के आसपास लक्षित कार्रवाई से वैश्विक बीमारी के बोझ को कम किया जा सकता है और प्रत्येक महिला के जीवन में हर साल 2.5 स्वस्थ दिनों को जोड़ा जा सकता है। 

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दुनियाभर की सरकारें महिला हेल्थ पर ध्यान दें

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नौ स्थितियों को महिला की जिंदगी के विभिन्न पड़ाव में विभाजित किया गया है, जो कि जीवित वर्षों की कुल संख्या (मातृ उच्च रक्तचाप संबंधी विकार, प्रसवोत्तर रक्तस्राव, इस्केमिक हृदय रोग, गर्भाशय ग्रीवा कैंसर और स्तन कैंसर) और स्वस्थ वर्ष के आधारपर स्वास्थ्य अवधि की स्थितियों ( एंडोमेट्रियोसिस, रजोनिवृत्ति, माइग्रेन और प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम) से संबंधित है। डब्ल्यूईएफ ने इस संबंध में एजेंडा तय करने और संसाधन आवंटित करने के लिए दुनिया भर की सरकारों, निजी क्षेत्र, शोधकर्ताओं, नागरिक समाज और समुदायों से तत्काल कार्रवाई का आह्वान किया। इसमें कहा गया है कि अब कार्रवाई करने और यह सुनिश्चित करने का समय है कि हर महिला और लड़की स्वस्थ एवं अधिक उत्पादक जीवन जी सके।

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भारत में महिलाओं से संबंधित चिंता के क्षेत्र

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पुरुष महिला साक्षरता दर में अंतर: हमारे समाज में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिये शिक्षा के अवसर की समानता सुनिश्चित करने के सरकार के प्रयासों के बावजूद भारत में महिलाओं की साक्षरता दर, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, अभी भी बदतर है। ग्रामीण भारत में विद्यालय दूर स्थित हैं और सुदृढ़ स्थानीय कानून व्यवस्था के अभाव में बालिकाओं के लिये स्कूली शिक्षा के लिये लंबी दूरी की यात्रा करना असुरक्षित लगता है। कन्या भ्रूण हत्या, दहेज और बाल विवाह जैसी पारंपरिक प्रथाओं ने भी समस्या में योगदान दिया है, जहां कई परिवारों को बालिकाओं को शिक्षित करना आर्थिक रूप से अव्यवहारिक लगता है।

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लैंगिक भूमिका के संबंध में रुढ़िग्रस्तता:

अभी भी भारतीय समाज का एक बड़ा तबका यह मानता है कि वित्तीय ज़िम्मेदारियाँ निभाने और बाहर जाकर कार्य करने की भूमिका पुरुषों की है। लैंगिक भूमिका के संबंध में रुढ़िग्रस्तता ने आमतौर पर महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह और भेदभाव को जन्म दिया है। उदाहरण के लिए, महिलाओं को बच्चों के पालन-पोषण संबंधी उनके कार्यों के कारण कर्मियों/श्रमिकों के रूप में कम विश्वसनीय माना जाता है।
समाजीकरण प्रक्रिया में अंतर: भारत के कई भागों में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, पुरुषों और महिलाओं के लिये अभी भी समाजीकरण के मानदंड अलग-अलग हैं।

महिलाओं से मृदुभाषी, शांत और चुप रहने की अपेक्षा की जाती है। उनसे निश्चित तरीके से चलने, बात करने, बैठने और व्यवहार करने की अपेक्षा होती है। इसकी तुलना में पुरुष अपनी इच्छानुसार कैसा भी व्यवहार प्रदर्शित कर सकता है।

विधायिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व: पूरे भारत में विभिन्न विधायी निकायों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम रहा है। हालांकि केंद्र सरकार ने हाल ही में महिला आरक्षण बिल को मंजूरी दी है, लेकिन अभी इस पर अमल शुरू नहीं हो सका है। पंचायती राज कानून के अंतर्गत पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है, और महिलाओं ने आर्थिक फैसले भी लेने शुरू किए हैं, लेकिन अब भी लंबी दूरी तय करना बाकी है।

सुरक्षा संबंधी चिंता: भारत में सुरक्षा के क्षेत्र में निरंतर प्रयासों के बावजूद महिलाओं को भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, बलात्कार, तस्करी  जबरन वेश्यावृत्ति, ऑनर किलिंग, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न जैसी विभिन्न स्थितियों का सामना करना पड़ता है। पीरियड पॉवर्टी विश्व के कई देशों, विशेष रूप से भारत में गंभीर चिंता का विषय है। पीरियड पॉवर्टी मासिक धर्म को ठीक से प्रबंधित करने के लिये आवश्यक स्वच्छता उत्पादों, मासिक धर्म शिक्षा और स्वच्छता एवं साफ़-सफ़ाई सुविधाओं तक पहुँच की कमी को इंगित करती है।

स्किलिंग और माइक्रो फाइनेंसिंग: कौशल निर्माण या स्किलिंग और सूक्ष्म वित्तपोषण या माइक्रो फाइनेंसिंग से महिलाएं आर्थिक रूप से स्थिर बन सकती हैं और इस प्रकार वे समाज के दूसरे लोगों पर निर्भर नहीं बनी रहेंगी। महिलाओं को बाज़ार की मांग के अनुरूप गैर-पारंपरिक कौशल में प्रशिक्षण देना और महिलाओं के लिये सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र में वृहत रोज़गार सृजित करना वित्तीय सशक्तीकरण के लिये महत्त्वपूर्ण है। महिलाओं को भारत की प्रगति और विकास के वास्तुकार की भूमिका सौंपी जानी चाहिए, बजाय इसके कि वे विकास के फल की निष्क्रिय प्राप्तकर्ता भर बनी रहें। 

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