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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क । तमिलनाडु की हवा में तनाव की गंध घुल रही है। एक ओर सुप्रीम कोर्ट की फटकार की स्याही अभी सूखी भी नहीं थी, दूसरी ओर राज्यपाल आरएन रवि के एक कदम ने फिर आग भड़का दी। मदुरै के एक कॉलेज में 'जय श्री राम' का नारा गूंजा, और इसके साथ ही शुरू हो गया एक ऐसा विवाद, जिसने संविधान की आत्मा को कटघरे में ला खड़ा किया। क्या एक संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति धर्म के रंग में रंग सकता है? यह सवाल अब हर ज़ुबान पर है।
मदुरै की वह शाम: जब नारे ने बवंडर मचाया
12 अप्रैल 2025 की शाम। मदुरै का त्यागराज इंजीनियरिंग कॉलेज रौनक से भरा था। साहित्य प्रतियोगिता का समापन हो रहा था, और मुख्य अतिथि के रूप में राज्यपाल आरएन रवि मंच पर थे। पुरस्कार बांटने के बाद उन्होंने छात्रों को संबोधित किया। फिर, तमिल कवि कम्बन की रामायण का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा, "आइए, उस महान भक्त को श्रद्धांजलि दें, जो श्री राम का अनन्य भक्त था। मेरे साथ कहिए—जय श्री राम।"
tamil nadu | मंच से तीन बार 'जय श्री राम' की गूंज उठी। छात्रों की तालियों के बीच यह पल सामान्य लग रहा था, लेकिन जैसे ही इसका वीडियो बाहर आया, तमिलनाडु की सियासत में भूचाल आ गया। विपक्ष ने इसे संविधान की शपथ का अपमान बताया, और इस्तीफे की मांग तेज़ हो गई।
'यह शपथ का उल्लंघन है': विपक्ष का गुस्सा
तमिलनाडु में धर्मनिरपेक्षता का झंडा बुलंद करने वाले संगठन SPCSS-TN ने कड़ा रुख अपनाया। उनका कहना था, "राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 159 की शपथ तोड़ी है। उन्होंने वादा किया था कि वे तमिलनाडु के लोगों की भलाई के लिए काम करेंगे, न कि किसी धर्म का प्रचार करेंगे।"
कांग्रेस विधायक जेएमएच हसन मौलाना ने तल्ख़ लहजे में कहा, "राज्यपाल संवैधानिक पद पर हैं, लेकिन वे किसी धार्मिक गुरु की तरह बोल रहे हैं। यह RSS और भाजपा का प्रचार है। उन्हें तुरंत इस्तीफा देना चाहिए।" DMK के धरणीधरन ने इसे धर्मनिरपेक्षता पर हमला करार दिया। वे बोले, "सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही रवि को उनकी जगह दिखाई है। फिर भी वे संविधान को ठेंगा दिखा रहे हैं।"
संवैधानिक पद: गरिमा या गलती ?
संवैधानिक पद कोई साधारण कुर्सी नहीं। यह वह ज़िम्मेदारी है, जो देश के ढांचे को मज़बूत करती है। राष्ट्रपति, राज्यपाल, जज जैसे पद संविधान की धुरी हैं। इन पर बैठे लोग शपथ लेते हैं कि वे निष्पक्ष रहेंगे, किसी धर्म या समुदाय का पक्ष नहीं लेंगे। लेकिन जब एक राज्यपाल खुलेआम धार्मिक नारा लगवाता है, तो सवाल उठता है—क्या यह शपथ का मज़ाक नहीं?
संविधान विशेषज्ञ भगवानदेव इसरानी कहते हैं, "भारत का संविधान धर्मनिरपेक्षता की बुनियाद पर खड़ा है। अनुच्छेद 25 से 28 तक हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं। लेकिन संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति किसी धर्म का प्रचार नहीं कर सकता। यह उनकी नैतिक ज़िम्मेदारी है।"
सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता का तर्क है, "संविधान में यह नहीं लिखा कि राज्यपाल क्या बोल सकता है। अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की आज़ादी देता है। लेकिन अगर 'जय श्री राम' जैसे नारे से किसी समुदाय को लगता है कि पक्षपात हो रहा है, तो यह पद की गरिमा को चोट पहुंचाता है।"
सेक्युलरिज्म की वह जंग: नेहरू से अब तक
धर्मनिरपेक्षता का सवाल भारत में नया नहीं। 1950 में जब तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन में गए, तो जवाहरलाल नेहरू ने इसका विरोध किया था। नेहरू का मानना था कि संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति धार्मिक आयोजनों से दूर रहे, ताकि दूसरे समुदायों में गलत संदेश न जाए। प्रसाद ने उनकी बात नहीं मानी, और यह विवाद इतिहास का हिस्सा बन गया।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई कहते हैं, "पहले सेक्युलरिज्म को प्राथमिकता थी, अब हिंदुत्व का दौर है। संविधान में धार्मिक गतिविधियों पर स्पष्ट नियम नहीं होने से इसका फायदा उठाया जा रहा है।"
कौन हैं आरएन रवि ? विवादों का सायबान
आरएन रवि कोई अनजान नाम नहीं। पत्रकार से IPS अधिकारी और फिर तमिलनाडु के राज्यपाल तक का उनका सफर चर्चा में रहा है। लेकिन विवादों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा।
2023 में वॉकआउट: रवि ने तमिलनाडु विधानसभा में सरकार के भाषण को पढ़ने से इनकार कर वॉकआउट किया। CM स्टालिन ने इसे लोकतंत्र का अपमान बताया।
राष्ट्रगान विवाद: 2024 में उन्होंने विधानसभा सत्र में राष्ट्रगान न बजने पर सवाल उठाए और फिर से वॉकआउट किया।
सुप्रीम कोर्ट की फटकार: 8 अप्रैल 2025 को कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास बिल रोकने की मनमानी शक्ति नहीं। रवि पर 10 बिल बिना कारण लौटाने का आरोप था।
DMK ने 2022 में ही राष्ट्रपति से रवि को हटाने की मांग की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर हस्तक्षेप से इनकार कर दिया।
क्या रवि का इस्तीफा होगा ?
क्या 'जय श्री राम' का नारा रवि की कुर्सी छीन लेगा? उनके पक्ष में तर्क है कि यह नारा एक गैर-शासकीय कार्यक्रम में कम्बन के सम्मान में लगवाया गया। लेकिन विराग गुप्ता कहते हैं, "सुप्रीम कोर्ट पहले ही रवि को बिलों पर देरी के लिए फटकार चुका है। फिर भी उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया। इस नारे के आधार पर इस्तीफे की उम्मीद कम है।"
टूटता भरोसा, बिखरती एकता
यह विवाद सिर्फ एक नारे का नहीं। यह उस भरोसे का सवाल है, जो संविधान पर टिका है। जब एक राज्यपाल धार्मिक नारा लगवाता है, तो कहीं न कहीं धर्मनिरपेक्षता की डोर कमज़ोर होती है। तमिलनाडु की सड़कों पर गुस्सा है, और दिलों में सवाल—क्या संवैधानिक पद अब सिर्फ सत्ता का खेल बनकर रह गया है?
जब तक यह सवाल अनुत्तरित रहेगा, तब तक नारों की गूंज और संविधान की चुप्पी के बीच तनाव बढ़ता रहेगा। क्या तमिलनाडु इस आग को ठंडा कर पाएगा, या यह और भड़केगी? वक्त ही बताएगा।