/young-bharat-news/media/media_files/2025/04/29/Vlqf5Qd32eYLZTLjrnUj.png)
नृत्य एक कला ही नहीं, वास्तव में एक साधना है। माना जाता है कि नृत्य एक सशक्त अभिव्यक्ति है, जो पृथ्वी और आकाश से संवाद करती है। हमारी खुशी हमारे भय और हमारी आकांक्षाओं को व्यक्त करती है। नृत्य अमूर्त है फिर भी जन के मन के संज्ञान और बोध को परिलक्षित करता है। मनोदशाओं को और चरित्र को दर्शाता है। संसार की बहुत सी संस्कृतियों ने नृत्य के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति की है। जैसे ताइवान के मूल निवासी वृत्त में नृत्य करते हैं। उनके पूर्वजों का विश्वास था कि बुरा और अशुभ वृत्त के बाहर ही रहेगा। हाथों की शृंखला बनाकर वो एक दूसरे के स्नेह और जोश को महसूस करते हैं, आपस में बांटते हैं और सामूहिक लय पर गतिमान होते हैं।
फ्रांसीसी नर्तक की स्मृति में मनाया जाता है यह दिवस
विश्व डांस डे, जिसे अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस के तौर पर भी जाना जाता है, प्रतिवर्ष 29 अप्रैल को मनाया जाता है। इस दिन की स्थापना 1982 में यूनेस्को के तहत अंतरराष्ट्रीय नृत्य समिति (International Dance Committee) द्वारा की गई थी। यह तारीख प्रसिद्ध फ्रांसीसी नर्तक और बैले मास्टर जीन-जॉर्जेस नोवेर (Jean-Georges Noverre) के जन्मदिन के सम्मान में चुनी गई, जिन्हें आधुनिक बैले का जनक माना जाता है।
विश्व डांस डे का महत्व
विश्व डांस डे का उद्देश्य नृत्य कला को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देना, इसके सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व को उजागर करना, और विभिन्न नृत्य शैलियों के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करना है। नृत्य केवल एक कला रूप नहीं है, बल्कि यह संस्कृति, इतिहास, और भावनाओं को व्यक्त करने का एक शक्तिशाली माध्यम है। नृत्य कला के प्रति प्रेम और सम्मान को दर्शाता है। भारत में नृत्य शैलियों की विविधता इस देश की सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है। शास्त्रीय नृत्य हो या लोक नृत्य, प्रत्येक शैली अपनी अनूठी कहानी और भावनाओं को व्यक्त करती है। विश्व डांस डे हमें इस कला को संरक्षित करने और अगली पीढ़ियों तक पहुंचाने की प्रेरणा देता है।
सांस्कृतिक एकता : नृत्य विभिन्न संस्कृतियों को जोड़ता है। विश्व डांस डे पर विभिन्न देशों की नृत्य शैलियों को प्रदर्शित किया जाता है, जो सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देता है।
स्वास्थ्य लाभ: नृत्य शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। यह तनाव को कम करता है, शारीरिक फिटनेस को बढ़ाता है, और आत्मविश्वास को मजबूत करता है।
शिक्षा और जागरूकता: इस दिन नृत्य के शैक्षिक महत्व पर जोर दिया जाता है। स्कूलों, कॉलेजों, और समुदायों में नृत्य कार्यशालाएं और प्रदर्शन आयोजित किए जाते हैं।
कला को प्रोत्साहन: नृत्य कलाकारों को प्रोत्साहित करने और उनकी कला को मान्यता देने का यह एक अवसर है।
भारत में नृत्य शैलियां
भारत सांस्कृतिक रूप से समृद्ध देश है, जहां नृत्य कला का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। भारतीय नृत्य शैलियां अपनी विविधता, तकनीक, और आध्यात्मिक गहराई के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। भारतीय नृत्य को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बांटा जाता है: शास्त्रीय नृत्य और लोक नृत्य। इसके अलावा, समकालीन और फ्यूजन नृत्य भी आधुनिक समय में लोकप्रिय हो रहे हैं।
शास्त्रीय नृत्य
भारत में शास्त्रीय नृत्य प्राचीन ग्रंथों जैसे नाट्यशास्त्र पर आधारित हैं, जिसे भरत मुनि ने लिखा था। ये नृत्य आध्यात्मिक, भक्ति, और कथात्मक तत्वों को संयोजित करते हैं। संस्कृति मंत्रालय और संगीत नाटक अकादमी द्वारा मान्यता प्राप्त आठ शास्त्रीय नृत्य शैलियां हैं:
भरतनाट्यम (तमिलनाडु): यह दक्षिण भारत का सबसे पुराना और प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य है। इसमें भाव, राग, और ताल का समन्वय होता है। यह मंदिरों की देवदासी परंपरा से उत्पन्न हुआ और भक्ति भाव को व्यक्त करता है।
कथक (उत्तर भारत): कथक का अर्थ है "कथा कहना"। यह नृत्य कहानी कहने की कला है, जो मुगल और हिंदू परंपराओं का मिश्रण है। इसमें तेज पैरों की थाप और घुंघरुओं का उपयोग प्रमुख है।
कथकली (केरल): यह नृत्य नाटक का एक रूप है, जिसमें रंग-बिरंगे वेशभूषा और चेहरे पर मेकअप का उपयोग होता है। यह रामायण और महाभारत की कहानियों को दर्शाता है।
मणिपुरी (मणिपुर): यह नृत्य अपनी कोमल और तरल गतियों के लिए जाना जाता है। यह रासलीला और वैष्णव भक्ति परंपरा से प्रेरित है।
कुचिपुड़ी (आंध्र प्रदेश): यह नृत्य नाट्य और नृत्य का मिश्रण है। इसमें जटिल पैरों की गतियां और अभिनय शामिल हैं।
ओडिसी (ओडिशा): यह नृत्य भगवान जगन्नाथ की भक्ति से प्रेरित है। इसमें कोमल गतियां और मूर्तियों जैसी मुद्राएं होती हैं।
सत्रिया (असम): यह नृत्य वैष्णव मठों से उत्पन्न हुआ और भक्ति रस को व्यक्त करता है। यह असम की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है।
मोहिनीअट्टम (केरल): यह नृत्य अपनी स्त्री सौंदर्य और कोमल गतियों के लिए जाना जाता है। यह "मोहिनी" (विष्णु का स्त्री रूप) से प्रेरित है।
प्रसिद्ध लोक नृत्य
भारत में लोक नृत्य क्षेत्रीय संस्कृति, परंपराओं, और सामाजिक उत्सवों को दर्शाते हैं। ये नृत्य सामुदायिक भागीदारी और उत्साह का प्रतीक हैं। कुछ प्रमुख लोक नृत्य निम्नलिखित हैं:
गरबा और डांडिया (गुजरात): नवरात्रि के दौरान किए जाने वाले ये नृत्य मां दुर्गा की पूजा से जुड़े हैं। इन्हें रंग-बिरंगे परिधानों और लयबद्ध संगीत के साथ किया जाता है।
भांगड़ा और गिद्दा (पंजाब): भांगड़ा पुरुषों का ऊर्जावान नृत्य है, जबकि गिद्दा महिलाओं का नृत्य है। ये फसल कटाई और उत्सवों से जुड़े हैं।
लावणी (महाराष्ट्र): यह नृत्य अपनी कामुकता और जीवंतता के लिए जाना जाता है। इसे तमाशा प्रदर्शनों में प्रस्तुत किया जाता है।
घूमर (राजस्थान): यह महिलाओं का पारंपरिक नृत्य है, जिसमें रंग-बिरंगे घाघरे में घूमते हुए प्रदर्शन किया जाता है।
बिहु (असम): यह नृत्य असम के बिहु उत्सव का हिस्सा है और फसल के मौसम को दर्शाता है।
छऊ (झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल): यह मार्शल आर्ट से प्रेरित नृत्य है, जिसमें नकाब पहनकर युद्ध और पौराणिक कहानियां दर्शाई जाती हैं।
कला (गोवा): यह नृत्य गोवा की पुर्तगाली प्रभावित संस्कृति को दर्शाता है।
समकालीन और फ्यूजन नृत्य
आधुनिक भारत में शास्त्रीय और लोक नृत्य के साथ-साथ समकालीन और फ्यूजन नृत्य भी लोकप्रिय हो रहे हैं। बॉलीवुड नृत्य, हिप-हॉप, साल्सा, और जैज जैसे नृत्य युवाओं में प्रचलित हैं। ये नृत्य वैश्विक प्रभावों और भारतीय तत्वों का मिश्रण हैं।
भारत में नृत्य शैलियों की संख्या
भारत में नृत्य शैलियों की सटीक संख्या बताना मुश्किल है, क्योंकि प्रत्येक क्षेत्र, समुदाय, और अवसर के साथ नई शैलियां विकसित होती हैं। आठ शास्त्रीय नृत्य और सैकड़ों लोक नृत्य के अलावा, उप-शैलियां और स्थानीय विविधताएं भी मौजूद हैं। अनुमानतः, भारत में हजारों नृत्य शैलियां प्रचलित हैं, जिनमें से कई को अभी भी दस्तावेजीकरण की आवश्यकता है।
नृत्य का सांस्कृतिक महत्व
भारत में नृत्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह संस्कृति, धर्म, और सामाजिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। नृत्य के माध्यम से पौराणिक कथाएं, सामाजिक संदेश, और ऐतिहासिक घटनाएं पीढ़ियों तक पहुंचती हैं। यह समुदायों को एकजुट करता है और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति को बढ़ावा देता है।