/young-bharat-news/media/media_files/2025/04/16/wQRsHGm8l4nXv8ET8sok.jpg)
नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क । देश के 256 राष्ट्रीय स्मारकों पर वक्फ बोर्ड का दावा जल्द ही खत्म हो सकता है। दिल्ली की उग्रसेन की बावली और पुराना किला से लेकर महाराष्ट्र के प्रतापगढ़ फोर्ट और बुलढाना की फतेहखेड़ा मस्जिद तक, इन सभी स्मारकों पर वक्फ बोर्ड का कब्जा नए कानून के तहत खतरे में है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसकी पुष्टि की है।
waqf | bill on waqf board power | ये स्मारक ASI द्वारा संरक्षित हैं, लेकिन वक्फ बोर्ड ने भी इन पर अपना दावा ठोका हुआ है। खास बात यह है कि ये संपत्तियां वक्फ को दान में नहीं मिलीं। इनका एकमात्र आधार 'वक्फ बाई यूजर' नियम है, जिसके तहत वक्फ बोर्ड ने इन्हें अपनी संपत्ति घोषित किया, क्योंकि इनका इस्तेमाल कभी मुस्लिम समुदाय द्वारा किया गया था।
वक्फ (संशोधन) बिल: नया कानून, नया नियम
8 अप्रैल 2025 को वक्फ (संशोधन) बिल नए कानून के रूप में लागू हो चुका है। इसके तहत वक्फ बोर्ड को अपनी सभी संपत्तियों के दस्तावेज और विवरण अगले 6 महीनों में एक केंद्रीय ऑनलाइन पोर्टल पर अपलोड करने होंगे। अगर 'वक्फ बाई यूजर' के तहत दावा की गई संपत्तियों के दस्तावेज नहीं मिले, तो इन पर वक्फ का दावा स्वतः समाप्त हो जाएगा, और ये संपत्तियां ASI के नियंत्रण में चली जाएंगी।
supreme court | Supreme Court India : इसके लिए 6 महीने का अतिरिक्त समय भी दिया गया है, यानी कुल मिलाकर एक साल में वक्फ बोर्ड को अपने दावों को साबित करना होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो ये स्मारक पूरी तरह ASI के अधीन होंगे।
'वक्फ बाई यूजर' का मतलब क्या है ?
'वक्फ बाई यूजर' को समझने के लिए सेंट्रल वक्फ काउंसिल के पूर्व सचिव डॉ. एम.आर. हक (डॉ. कैसर शमीम) ने बताया, "वक्फ बाई यूजर का मतलब ऐसी संपत्ति से है, जहां लंबे समय से मुस्लिम समुदाय द्वारा नमाज या अन्य धार्मिक गतिविधियां की जाती रही हों, लेकिन इसके कोई लिखित दस्तावेज न हों।"
नए कानून के तहत अब बिना दस्तावेज वाली संपत्तियों का दावा मान्य नहीं होगा। ऐसे में सदियों पुरानी मस्जिदें या अन्य स्थान सरकारी संपत्ति बन सकते हैं।
/young-bharat-news/media/media_files/2025/04/16/i6vt1fwCwLuesY4WGQAM.jpg)
256 स्मारकों पर ASI और वक्फ की दोहरी मालिकाना हक
जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) और ASI की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 256 राष्ट्रीय स्मारकों पर वक्फ बोर्ड और ASI दोनों का दावा है। इनमें से कुछ प्रमुख स्मारक हैं...
दिल्ली: उग्रसेन की बावली (लिस्ट में 22वें स्थान पर) और पुराना किला (30वें स्थान पर)। पुराना किला में कोहना मस्जिद, गार्डन, और कई प्रवेश द्वार शामिल हैं, जिन्हें वक्फ बोर्ड अपनी संपत्ति बताता है।
महाराष्ट्र: गोंदिया का प्रतापगढ़ फोर्ट (212वें स्थान पर), बुलढाना की फतेहखेड़ा मस्जिद, रोहिनखेड़ मस्जिद, वर्धा का पौनार किला, और अकोला का बालापुर फोर्ट।
दिल्ली के स्मारकों की कहानी...
उग्रसेन की बावली: मस्जिद पर दावा, लेकिन नमाज नहीं
/young-bharat-news/media/media_files/2025/04/16/7GhpZlg42mqhTDmEx8Ed.jpg)
उग्रसेन की बावली में एक मस्जिद है, जिसे वक्फ बोर्ड ने 16 अप्रैल 1970 को 'मस्जिद हेली रोड' के नाम से अपनी संपत्ति घोषित किया। हमारी पड़ताल में पता चला कि बावली और मस्जिद एक-दूसरे से सटे हुए हैं, लेकिन मस्जिद की हालत जर्जर है। ASI के बोर्ड के अनुसार, बावली का निर्माण अग्रवाल समुदाय के राजा उग्रसेन ने करवाया था, और इसके पास बनी मस्जिद में अब नमाज नहीं होती। स्थानीय लोगों और गार्ड ने भी पुष्टि की कि यहां नमाज का आयोजन नहीं होता।
पुराना किला: कोहना मस्जिद और कुंती देवी मंदिर
/young-bharat-news/media/media_files/2025/04/16/sq6U0vm2TETDd42hgX7v.jpg)
पुराना किला में कोहना मस्जिद के आधार पर वक्फ बोर्ड ने 1970 में इसे अपनी संपत्ति घोषित किया। हालांकि, दस्तावेजों में यह स्पष्ट नहीं है कि कितना क्षेत्र वक्फ के पास है। दिल्ली वक्फ बोर्ड के अधिकारियों ने बताया कि यह दावा 'वक्फ बाई यूजर' नियम के तहत है, और इसके कोई ठोस दस्तावेज नहीं हैं।
पड़ताल के दौरान हमें पुराना किला परिसर में कोहना मस्जिद से 50 मीटर दूर श्री कुंती देवी मंदिर मिला, जो जर्जर हालत में है। मंदिर की देखरेख करने वाली मुन्नी देवी ने बताया कि यह मंदिर द्वापर युग से जुड़ा है, और उनका परिवार पीढ़ियों से इसकी सेवा करता आ रहा है। ASI के एक अधिकारी ने बताया कि मंदिर का मामला कोर्ट में है, इसलिए इसका जीर्णोद्धार नहीं हो पा रहा।
महाराष्ट्र के स्मारक: प्रतापगढ़ और पौनार किला
/young-bharat-news/media/media_files/2025/04/16/TIMNy1iLZyN2S4ol3QqW.jpg)
प्रतापगढ़ फोर्ट (गोंदिया): इसे 1922 में ASI ने संरक्षित किया था। यह किला हिंदू राजा ने बनवाया था, लेकिन 2004 में वक्फ बोर्ड ने इसे 'ख्वाजा उस्मान गनी हसन दरगाह सोसाइटी' के नाम से अपनी संपत्ति घोषित किया। दरगाह और किला पास-पास होने के कारण यह किला वक्फ के रिकॉर्ड में शामिल हो गया।
पौनार किला (वर्धा): 5वीं शताब्दी में हिंदू राजा प्रवर सेना द्वारा निर्मित यह किला 1932 में ASI द्वारा संरक्षित हुआ। 2004 में वक्फ बोर्ड ने इसे अपनी संपत्ति घोषित किया।
नए कानून का असर: विशेषज्ञों की राय
वक्फ मामलों के जानकार और अधिवक्ता रईस अहमद ने बताया कि नए कानून में कोई भी व्यक्ति वक्फ की संपत्ति पर दावा कर सकता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी ने पहले वक्फ को जमीन दान की थी, तो उनकी नई पीढ़ी अब उसे वापस लेने के लिए कोर्ट जा सकती है। इससे कोर्ट में मामले बढ़ेंगे, और सिविल कोर्ट में वक्फ के मामलों को समझने में समय लगेगा।
डॉ. कैसर शमीम ने बताया कि नए कानून में अगर कोई वक्फ संपत्ति पर दावा करता है, तो जांच पूरी होने तक वक्फ का उस संपत्ति पर अधिकार नहीं रहेगा। जांच की कोई समय सीमा नहीं होने से यह प्रक्रिया सालों चल सकती है। इससे वक्फ बोर्ड की आय प्रभावित होगी, क्योंकि किरायेदार भी किराया देने से बच सकते हैं।
ASI की चुनौतियां: दोहरी मालिकाना हक
ASI की जॉइंट डायरेक्टर जनरल डॉ. नंदिनी भट्टाचार्य साहू ने बताया कि देश में 3,696 राष्ट्रीय स्मारक ASI द्वारा संरक्षित हैं, जिनमें से 256 पर वक्फ बोर्ड के साथ दोहरी मालिकाना हक है। दोहरी मालिकाना हक से फील्ड में काम करने में दिक्कतें आती हैं, लेकिन कई बार सहयोग से काम आसान भी होता है। नए कानून पर वह कोई टिप्पणी नहीं कर सकीं, क्योंकि यह मामला अभी मंत्रालय के स्तर पर है।
नए वक्फ (संशोधन) कानून से 256 राष्ट्रीय स्मारकों पर वक्फ बोर्ड का दावा खत्म होने की संभावना है। बिना दस्तावेज वाली संपत्तियां ASI के नियंत्रण में जाएंगी। यह बदलाव न केवल ऐतिहासिक स्मारकों की मालिकाना हक को प्रभावित करेगा, बल्कि वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली और आय पर भी गहरा असर डालेगा।