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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि एक पति, जिसके पास अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने की आर्थिक क्षमता है, कानून और नैतिकता के अनुसार उसके जीवित रहते हुए उसका भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है।
पति ने दी थी फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती
जस्टिस शालिनी सिंह नागपाल ने यह टिप्पणी एक पारिवारिक न्यायालय के उस आदेश को बरकरार रखते हुए की, जिसमें 86 वर्षीय एक सेवानिवृत्त सैन्यकर्मी को अपनी 77 वर्षीय पत्नी को 15 हजार का मासिक अंतरिम भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था। न्यायालय ने कहा कि हालांकि पति वृद्ध है, लेकिन यही बात पत्नी के लिए भी लागू होती है, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है।
अदालत ने कहा- भरण-पोषण के उसके दावे का यह कोई जवाब नहीं है कि वह अपने बेटों से भरण-पोषण और सहायता मांग सकती है। पति के पास अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने की क्षमता है। कानून और नैतिकता के अनुसार पति उसके जीवित रहते हुए भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है। ऐसा नहीं है कि पत्नी नौकरी करके अपना भरण-पोषण कर सकती है। उसे अभाव और गरीबी के जीवन से बचाया जाना चाहिए।
वृद्ध व्यक्ति के वकील ने नारनौल स्थित पारिवारिक न्यायालय द्वारा 30 अप्रैल को पारित आदेश को चुनौती दी। उन्होंने तर्क दिया कि वह एक लकवाग्रस्त और असहाय व्यक्ति है जिसकी पत्नी की देखभाल उसके बेटे कर रहे हैं। अदालत को बताया गया कि बेटे अपनी मां का पक्ष ले रहे हैं और उसकी देखभाल करने से इनकार कर रहे हैं।
यह भी दलील दी गई कि पारिवारिक न्यायालय ने इस आधार पर 15 हजार प्रति माह का अंतरिम भरण-पोषण निर्धारित किया था कि उसे 42,750 पेंशन मिल रही थी। वह गांव में ढाई एकड़ जमीन का मालिक भी है। हालांकि, गांव के सरपंच का एक प्रमाण पत्र अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया गया था जिससे पता चलता था कि वह शारीरिक रूप से चलने-फिरने में असमर्थ है और उसकी सारी जमीन और संपत्ति उसके बेटों के कब्जे में है।
हाईकोर्ट ने कहा- 47 हजार से ज्यादा की पेंशन काफी है
अदालत ने कहा कि वृद्ध को 42,750 पेंशन मिल रही थी और जमीन उसकी अपनी है, भले ही वह उसके बेटों के कब्जे में हो। अदालत ने कहा कि वृद्ध के हालात देखते हुए 15 हजार रुपये प्रति माह के अंतरिम भरण-पोषण भत्ते के साथ-साथ 11 हजार रुपये के मुकदमेबाजी खर्च का प्रावधान ज्यादा नहीं लगता। अदालत ने कहा कि अंतरिम भरण-पोषण राशि का आकलन पक्षकारों की स्थिति के अनुरूप उचित रूप से किया गया है। इसलिए इसमें हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि आदेश का पालन किया जाए।
Punjab and Haryana High Court, 86-year-old man, compensation to his wife