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एक जज, जो पहले खुद बना whistleblower, फिर कर गया लाखों का गोलमाल

झिमोमी ने शीर्ष अदालत को बताया कि गायब हुई नकदी नागालैंड की अधीनस्थ न्यायपालिका की खामियों के चलते है, जहां जमानत राशि सही तरीके से जमा नहीं की जाती है। उन्होंने पड़ोसी असम का उदाहरण दिया।

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Shailendra Gautam
Court order

नई दिल्ली वाईबीएन डेस्कः  सुप्रीम कोर्ट ने 16 जून को दीमापुर के पूर्व प्रधान जिला और सत्र न्यायाधीश इनालो झिमोमी को 14 लाख रुपये से अधिक की नकद जमानत राशि के गबन के आपराधिक मामले में अग्रिम जमानत दे दी। ये फैसला इनालो झिमोमी बनाम नागालैंड के मामले में दिया गया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने झिमोमी को कुछ राहत दी लेकिन ये भी कहा कि गबन की सुनवाई हाईकोर्ट में जारी रहेगी। झिमोमी का प्रतिनिधित्व एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड आदित्य गिरी और सीनियर वकील एस बोरगोहेन ने किया।

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झिमोमी ने हाईकोर्ट से कहा था- जमानत के लिए न ली जाए नकद रकम

खास बात है कि झिमोमी ने एक बार हाईकोर्ट से उस पैटर्न को खत्म करने के लिए कहा था जिसमें नागालैंड की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट्स नकद जमानत को जिला कोषागार में जमा नहीं करतीं। अब वो खुद जमानत की शक्ल में जुटाई गई 14.35 लाख रुपये की नकदी के दुरुपयोग के मामले में आरोपी हैं। गबन का ये मामला तब का है जब वे मोन जिले के प्रधान और जिला न्यायाधीश थे। अन्य राज्यों के विपरीत नागालैंड में जमानत बांड प्रणाली नहीं है। इसके बजाय जमानत के भुगतान के लिए नकदी जमा करनी होती है। गायब नकदी में 29 मामलों की जमानत राशि शामिल है, जिसे 2024 के रजिस्टर में दर्ज किया गया था। 

उसी जज को हाईकोर्ट ने गबन के मामले में किया नौकरी से बाहर

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ये मामला तब तूल पकड़ा जब नकदी के दुरुपयोग को लेकर इनालो झिमोमी और दो अन्य के खिलाफ पुलिस ने मामला दर्ज किया। ऐसा तब हुआ जब उन्हें गुवाहाटी हाईकोर्ट की कोहिमा बेंच के आदेश के बाद जबरन सेवा से मुक्त कर दिया गया था। उस अदालती आदेश को गुवाहाटी हाईकोर्ट में चुनौती गई, जिसने मैरिट पर विचार किए बिना अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया। इसके बाद झिमोमी ने 29 मई के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

गबन की बात भी नहीं कर रहा जज, सिस्टम में गिना रहा खामियां

झिमोमी ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि जब वह कोहिमा में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट थे तो उन्होंने सितंबर 2013 में गुवाहाटी हाईकोर्ट के सामने यही मसला उठाया था। सेवानिवृत्त जज ने अपनी जबरन सेवानिवृत्ति को अवैध बताकर संविधान के उल्लंघन का आरोप लगाया। उनका कहना था कि उनके मामले में सर्वोच्च न्यायालय की परंपरा का पालन किए बिना आपराधिक मामला दर्ज किया गया। इस फैसले में किसी जज के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करने से पहले मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करना अनिवार्य किया गया था। उन्होंने आगे आरोप लगाया कि सेवानिवृत्ति के बाद की अनुशासनात्मक कार्यवाही भी राज्य सरकार के नियमों का उल्लंघन करती है।

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झिमोमी ने शीर्ष अदालत को बताया कि गायब हुई नकदी नागालैंड की अधीनस्थ न्यायपालिका की खामियों के चलते है, जहां जमानत राशि सही तरीके से जमा नहीं की जाती है। उन्होंने पड़ोसी असम का उदाहरण दिया और कहा कि उनके खिलाफ आरोप, निलंबन, जबरन सेवानिवृत्ति और उसके बाद की अनुशासनात्मक कार्यवाही एक दुर्भावनापूर्ण पैटर्न को दर्शाते हैं। उन्होंने ही पहले नकद जमानत प्रणाली के बारे में चिंता जताई थी। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने जमानत राशि जमा करने के मामले से जुड़े मुद्दों की जांच नहीं की। यह दर्शाता है कि प्रशासनिक पक्ष पर इस मुद्दे पर हाईकोर्ट ने कोई विचार ही नहीं किया। Judiciary | Indian Judiciary | judiciary under pressure


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