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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कःकलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को दो जजों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया, क्योंकि उन्होंने एनडीपीएस एक्ट के एक मामले में एक ऐसे आरोपी को वकील उपलब्ध कराने में आनाकानी की जिसके पास इस तरह का कोई विकल्प नहीं था। सुधार मंगर बनाम बंगाल सरकार के केस में ये आदेश दिया गया। खास बात है कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद जजों की नौकरी तक जा सकती है।
आरोपी को नहीं मुहैया कराए गए थे वकील
कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस कृष्ण राव ने आरोपी सुधार मंगर को जमानत देते हुए पाया कि चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट और सेशन जज (एनडीपीएस) अदालत ने उसे कानूनी सहायता प्रदान नहीं की। मजिस्ट्रेट की कोर्ट में उसे पुलिस रिमांड पूरी होने पर पेश किया गया था, जबकि सेशन जज इस मामले में ट्रायल कर रहे थे। जस्टिस कृष्ण राव ने कहा कि यह आदेश चीफ जस्टिस की जानकारी के लिए हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को भेजा जाए। साथ ही चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट और सेशन जज अलीपुरद्वार के खिलाफ कार्रवाई की जाए, क्योंकि पेशी के समय याचिकाकर्ता के पास बचाव के लिए कोई वकील नहीं था।
संविधान के हवाला देकर आरोपी ने मांगा था न्याय
मंगर को 28 मार्च 2024 को उनके घर से आरसी-कफ कफ सिरप की 40 बोतलें जब्त किए जाने के बाद गिरफ्तार किया गया था। उसने जमानत के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें कहा गया था कि उन्हें उनकी गिरफ्तारी की वजह के बारे में नहीं बताया गया था। उनका तर्क था कि गिरफ्तार करने वाले अधिकारी ने संविधान के अनुच्छेद 22(1) के साथ-साथ एनडीपीएस एक्ट की धारा 52(1) का उल्लंघन किया है। जवाब में प्रासीक्यूशन ने कहा कि लिखित में वजह बताना आवश्यक नहीं था। यह भी तर्क दिया गया कि मादक दवाओं से जुड़े मामलों में जमानत देने के लिए कठोर शर्तें हैं।
हाईकोर्ट ने पाया कि दोनों जजों ने कीं कई गलतियां
हाईकोर्ट ने पाया कि अरेस्ट मेमो में गिरफ्तारी की वजह नहीं थी। मेमो में दर्ज है कि आरोपी को 29 मार्च 2024 को अलीपुरद्वार के सेशन जज के समक्ष पेश किया जाएगा। अरेस्ट मेमो में आरोपी के साथ उसके रिश्तेदार के हस्ताक्षर भी लिए गए हैं। लेकिन मेमो में गिरफ्तारी की वजह का जिक्र नहीं है। प्रासीक्यूशन ने यह दिखाने के लिए कोई दस्तावेज या सबूत पेश नहीं किया कि आरोपी को वास्तव में इन वजहों के बारे में सूचित किया गया था। हाईकोर्ट ने माना कि आरोपी के अधिकारों का उल्लंघन हुआ था। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि गिरफ्तारी की वजह न बताने से संविधान के अनुच्छेद 22(1) और एनडीपीएस एक्ट 1985 की धारा 52(1) के प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है। अनुच्छेद 22(1) में प्रावधान है कि गिरफ्तार किए गए किसी भी व्यक्ति को वजह के बारे में सूचित किए बिना हिरासत में नहीं रखा जाएगा। यह गिरफ्तार हुए व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। Judiciary | Indian Judiciary | न्यायपालिका भारत
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