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बीजेपी नेता बन रहे थे सयाने, केरल HC से लगा 10 लाख का फटका

बेंच ने कहा कि बिना किसी ठोस कानूनी आधार के दायर किए गए ऐसे मामलों से अदालत का समय बर्बाद होता है। निगम का कामकाज भी प्रभावित होता है। इसमें साजिश दिखती है।

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Shailendra Gautam
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कोर्ट की डीएम को चेतावनी Photograph: (YBN)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः केरल हाईकोर्ट ने त्रिशूर निगम के छह भाजपा पार्षदों की दो अपीलों को खारिज करते हुए पार्षदों पर 5 लाख का जुर्माना लगाया। उनके वकील को भी 5 लाख का भुगतान करने का निर्देश दिया। एक महीने के भीतर ये रकम कोर्ट में जमा करानी होगी। बेंच ने कहा कि यह मुकदमा व्यक्तिगत स्वार्थ और दुश्मनी से प्रेरित था। इन अपीलों में निगम के उस फैसले पर सवाल उठाए गए थे, जिसमें निगम ने अपने स्वामित्व वाले एक आवास को पट्टे पर दिया था।

जस्टिस बोले- झूठे आरोप लगा कर रहे थे समय बर्बाद

जस्टिस अमित रावल और पीवी बालकृष्णन की बेंच ने कहा कि बिना किसी ठोस कानूनी आधार के दायर किए गए ऐसे मामलों से अदालत का समय बर्बाद होता है। साथ ही निगम का कामकाज भी प्रभावित होता है। इस तरह के मुकदमों में अन्य पार्षदों और महापौर के खिलाफ पक्षपात और निजी एजेंडे की साजिश दिखती है। यह पर्यटक आवास 1990 से 2020 तक ओमाना अशोकन को पट्टे पर दिया गया था।

2020 के बाद, निगम ने सार्वजनिक नीलामी के माध्यम से परिसर को पट्टे पर देने के कई प्रयास किए, लेकिन कोशिशें कारगर नहीं हो सकीं। सितंबर 2022 में नया टेंडर जारी किया गया। ओमाना अशोकन सहित 5 लोगों ने टेडर में हिस्सा लिया। अशकोन की बोली सबसे कम थी। सबसे ऊंची बोली जनीश पीएस ने लगाई। उन्होंने 7.25 लाख की बोली लगाई, जिसे बाद में बातचीत के बाद बढ़ाकर 7.5 लाख कर दिया गया। जनीश ने अपने निजी कोष से नवीनीकरण पर 3 करोड़ खर्च करने का भी वादा किया। निगम ने भवन उन्हें सौंपने फैसला किया। महापौर ने इसे मंजूरी दी थी। 

नगर निगम के एक फैसले से थी परेशानी

छह भाजपा पार्षदों, विनोद पोलानचेरी, पूर्णिमा सुरेश, आतिरा वी, राधिका एनवी, निजी केजी और एन प्रसाद ने इसे केरल उच्च न्यायालय में चुनौती दी। उनकी अपील को केरल नगर पालिका अधिनियम, 1994 की धारा 57 के तहत खारिज कर दिया गया। हालांकि उनको ये छूट दी गई कि वो सरकार से संपर्क करने का काम कर सकते हैं। इस बीच, पार्षदों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील प्रमोद के ने लोकपाल के समक्ष इसी तरह के आरोप लगाते हुए एक शिकायत दर्ज कराई।

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अपीलें खारिज होने के बाद भी करते रहे मुकदमेबाजी

पार्षदों ने धारा 57 के तहत सरकार से संपर्क किया। लेकिन सरकार ने उनकी अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि प्रस्ताव कानूनी रूप से वैध हैं और परिषद के बहुमत से पारित हैं। पार्षदों ने सरकार के आदेश को चुनौती देते हुए फिर से उच्च न्यायालय का रुख किया। वकील प्रमोद ने लोकपाल के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की। दोनों याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई हुई पर ये खारिज हो गईं।

पार्षदों और वकील प्रमोद ने डबल बेंच के समक्ष वर्तमान रिट अपील दायर की। इसमें कहा गया कि टेंडर में खामी थी और नवीनीकरण का काम निगम को खुद करना चाहिए था। हालांकि, अदालत ने पाया कि निगम ने वैध रूप से लाइसेंस प्रदान किया था और जनीश ने किराए के भुगतान और बैंक गारंटी समेत सभी शर्तों का पालन किया था।

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