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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क । मध्य प्रदेश में 28 अप्रैल 2025 को आयोजित कांग्रेस की "संविधान बचाओ" रैली में उस समय माहौल गरम हो गया, जब वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मंच पर बैठने से इनकार कर दिया।
यह रैली केंद्र की मोदी सरकार पर संविधान के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए कांग्रेस की राज्यव्यापी मुहिम का हिस्सा थी। लेकिन दिग्विजय सिंह का अचानक भड़कना और मंच छोड़ने की घोषणा ने इस रैली को सुर्खियों में ला दिया। आखिर क्या हुआ था जो दिग्विजय सिंह को इतना गुस्सा आया? आइए, इस घटना के पीछे की कहानी को समझते हैं।
रैली का माहौल और दिग्विजय का संबोधन
ग्वालियर में आयोजित इस रैली में कांग्रेस के कई बड़े नेता मौजूद थे, जिनमें प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी, विपक्ष के नेता उमंग सिंघार और प्रदेश प्रभारी हरीश चौधरी शामिल थे। हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की अनुपस्थिति चर्चा का विषय बनी। रैली का उद्देश्य संविधान की रक्षा और केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ जनता को जागरूक करना था।
मंच पर नेताओं की मौजूदगी थी, लेकिन जैसे ही दिग्विजय सिंह ने अंतिम संबोधन शुरू किया, उन्होंने देखा कि मंच के सामने कार्यकर्ताओं की भीड़ लगभग गायब हो चुकी थी।
मंच पर बैठे नेताओं की तादाद तो पूरी थी, लेकिन नीचे कार्यकर्ताओं की कमी देखकर दिग्विजय सिंह का पारा चढ़ गया। उन्होंने मंच से ही अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, "यह मंच की लड़ाई खत्म करो। मैं आज के बाद किसी भी कार्यक्रम में मंच पर नहीं बैठूंगा।
जब मुझे बोलने का समय मिलेगा, तभी मंच पर आऊंगा और बोलकर नीचे चला जाऊंगा।" यह बयान सुनकर वहां मौजूद लोग हैरान रह गए। दिग्विजय सिंह जैसे अनुभवी नेता का इस तरह का फैसला निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए एक बड़ा संदेश था।
क्यों भड़के दिग्विजय सिंह?
दिग्विजय सिंह की नाराजगी की वजह सिर्फ खाली पड़ा मैदान नहीं थी। दरअसल, यह घटना कांग्रेस के भीतर की उस अंदरूनी राजनीति को भी उजागर करती है, जो मंच पर जगह पाने की होड़ को लेकर चलती रहती है।
सूत्रों के मुताबिक, दिग्विजय सिंह को इस बात का गुस्सा था कि रैली के दौरान कुछ नेताओं ने कार्यकर्ताओं को संबोधन के समय वहां रोकने की बजाय अपने-अपने समूहों के साथ पहले ही निकल जाना पसंद किया। यह व्यवहार दिग्विजय जैसे वरिष्ठ नेता के लिए अपमानजनक था, जो हमेशा से संगठन को मजबूत करने की वकालत करते रहे हैं।
इसके अलावा, रैली में ज्योतिरादित्य सिंधिया पर भी जमकर निशाना साधा गया। जीतू पटवारी ने सिंधिया पर विधायकों को तोड़कर सरकार गिराने का आरोप लगाया और इसे संविधान पर हमला करार दिया। पूर्व मंत्री ओमकार सिंह मरकाम ने तो सिंधिया को "गद्दार" तक कह डाला।
ऐसे में दिग्विजय सिंह का गुस्सा शायद इस बात का भी संकेत था कि पार्टी को अपनी रणनीति और नेताओं के व्यवहार पर ध्यान देना होगा, ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति से बचा जा सके।
कांग्रेस की रणनीति और भविष्य
यह रैली मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से तीन साल पहले शुरू की गई कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा थी। पार्टी ने राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर पर ऐसी रैलियों का आयोजन करने की योजना बनाई है, ताकि जनता के बीच संविधान के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया जा सके। लेकिन दिग्विजय सिंह की इस घोषणा ने पार्टी के भीतर एक नई बहस छेड़ दी है। क्या यह सिर्फ एक पल का गुस्सा था, या फिर दिग्विजय सिंह वाकई में अब मंच की सियासत से दूरी बनाएंगे?
कांग्रेस के लिए यह घटना एक सबक भी हो सकती है। मध्य प्रदेश में बीजेपी की मजबूत पकड़ को तोड़ने के लिए पार्टी को एकजुट होकर काम करना होगा। दिग्विजय सिंह जैसे नेता, जिनका लंबा राजनीतिक अनुभव है, अगर इस तरह की स्थिति में नाराज होते हैं, तो यह पार्टी के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
दिग्विजय का फैसला और उसका असर
दिग्विजय सिंह का मंच न बैठने का फैसला केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं है, बल्कि यह कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए एक संदेश है कि मंच की सियासत से ज्यादा जरूरी जनता के बीच काम करना है। उनके इस कदम से पार्टी के भीतर अनुशासन और एकजुटता पर जोर देने की कोशिश हो सकती है। साथ ही, यह उन नेताओं के लिए भी चेतावनी है, जो रैलियों और सभाओं को सिर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का माध्यम मानते हैं।
ग्वालियर की इस रैली ने न केवल संविधान बचाओ का नारा बुलंद किया, बल्कि कांग्रेस के भीतर की कमियों को भी उजागर किया। दिग्विजय सिंह का यह गुस्सा शायद पार्टी को एक नई दिशा दे सकता है, बशर्ते पार्टी इसे सकारात्मक रूप से ले। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि दिग्विजय सिंह अपने इस फैसले पर कितना अमल करते हैं और इसका कांग्रेस की रणनीति पर क्या असर पड़ता है।
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