नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । "जिस देश की नींव खेतों से जुड़ी हो, वहां किसान सिर्फ अन्नदाता नहीं, राष्ट्रनिर्माता होता है।" दिल्ली में एक भावुक दृश्य देखने को मिला जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को उनकी पुण्यतिथि पर नमन करते हुए भारतीय किसानों की महत्ता को रेखांकित किया।
उन्होंने कहा – "किसान इस देश की रीढ़ हैं। चौधरी साहब का जीवन इसी रीढ़ को मजबूत करने में बीता।" इस अवसर पर किसान घाट की मिट्टी में इतिहास की गूंज सुनाई दी, और नेतृत्व की सादगी का प्रतीक सामने आया। भारत में जब कृषि सुधारों की बात होती है, तो चौधरी चरण सिंह का नाम सबसे पहले आता है।
दिल्ली के किसान घाट पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने भावुक होकर कहा कि भारत का किसान देश की रीढ़ की हड्डी है और चौधरी चरण सिंह का पूरा जीवन किसानों और ग्रामीण भारत को समर्पित रहा।
उपराष्ट्रपति ने 1952 में कृषि मंत्री रहते हुए चरण सिंह द्वारा किए गए ज़मीनी बदलावों को "क्रांतिकारी" बताया। यह श्रद्धांजलि न सिर्फ एक व्यक्ति को थी, बल्कि पूरे किसान समुदाय की निष्ठा और त्याग को सम्मान देने का प्रतीक थी।
किसानों की रीढ़ को समझा, ना कि सिर्फ नारा लगाया
उपराष्ट्रपति का यह बयान सिर्फ औपचारिकता नहीं था, बल्कि एक आह्वान था – उस सोच की ओर लौटने का, जहां किसान को सिरमौर माना जाता था। उन्होंने कहा,
"चौधरी चरण सिंह ने कभी सत्ता के लिए नहीं, बल्कि मिट्टी से जुड़े भारत के लिए राजनीति की।"
उनकी कृषि नीतियों ने न केवल उत्तर प्रदेश में ज़मीनी बदलाव किए, बल्कि देशभर में भूमि सुधार की नींव रखी।
1952 का फैसला, जिसने भारतीय किसान का भविष्य बदला
जब चरण सिंह ने 1952 में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री के रूप में ज़मीन सुधारों की पहल की, तो उस वक्त किसान केवल मजदूर थे, मालिक नहीं। उनके प्रयासों से हजारों भूमिहीन किसानों को ज़मीन का हक मिला और "जो जमीन जोते, वही उसका स्वामी हो" का नारा हकीकत में बदल गया।
वर्तमान परिदृश्य में क्यों जरूरी है चरण सिंह की सोच
आज जब किसान आंदोलन, एमएसपी और ग्रामीण बदहाली की चर्चा गर्म है, तब चरण सिंह की सोच और नीति फिर प्रासंगिक हो जाती है। उपराष्ट्रपति ने संकेत दिया कि कृषि को सिर्फ नीति नहीं, प्राथमिकता बनाना होगा।
उनके शब्दों में गूंज थी –
"चौधरी साहब की तरह हमें भी किसानों की बात खेत से संसद तक ले जानी होगी।"
चरण सिंह की पुण्यतिथि: सिर्फ श्रद्धांजलि नहीं, आत्मनिरीक्षण का दिन
हर साल 29 मई को उनकी पुण्यतिथि पर कार्यक्रम होते हैं, लेकिन यह दिन सिर्फ माला पहनाने या भाषण देने का नहीं, बल्कि यह सोचने का है कि क्या हम उस किसान-हितैषी भारत की ओर बढ़ रहे हैं जिसकी कल्पना उन्होंने की थी?
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