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सही थी हिना, पर ढाई नंबरों के लिए 10 साल लड़ना पड़ा, बनीं जज

हरियाणा की हिना सहरावत को 10 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद न्याय मिला और अब वे सिविल जज नियुक्त हो गई हैं। 2013 में हुए एग्जाम में सही उत्तर देने के बावजूद उन्हें 2.5 अंक नहीं दिए गए थे। कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए नियुक्ति का आदेश दिया।

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Shailendra Gautam
heena sehrawat
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नई दिल्‍ली, वाईबीएन डेस्‍क। हीना सहरावत हरियाणा की रहने वाली हैं। जल्दी ही वो किसी कोर्ट में बैठकर आर्डर आर्डर करती दिखेंगी। लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उनको जीतोड़ संघर्ष करना पड़ा। वो सही थीं लेकिन खुद को सही साबित करने की लड़ाई 10 साल तक चली। फिलहाल फैसला उनके पक्ष में है। कोर्ट ने माना कि जज के एग्जाम में उनका जवाब ठीक था।  खास बात है कि हिना को जिस सवाल का जवाब देने के लिए ढाई नंबरों से महरूम कर दिया गया उसी जवाब पर दूसरों को अंक दिए गए। इन ढाई नंबरों की वजह से हिना जज नहीं बन सकी। वो 550 अंकों के उस बैरियर को पार नहीं कर सकी जज बनने के लिए जिसे पार करना जरूरी था। हिना ने कोर्ट में केस दायर करने से पहले अपनी आवाज हर उस मंच पर उठाई जहां से उसे इंसाफ मिल सकता था। पर हर किसी ने उसकी दरख्वास्त को ठंडे बस्ते में डालकर अपना पल्ला झाड़ लिया। 

सिविल जज के पद पर नियुक्‍त हुईं हिना 

अब पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस सुमित गोयल की बेंच ने यह कहते हुए याचिका स्वीकार कर ली कि हिना ने निर्विवाद रूप से सही उत्तर दिया था। उसी उत्तर को लिखने वाले अन्य अभ्यर्थियों को अंक दिए गए थे। कोर्ट ने हरियाणा सरकार को आदेश दिया कि सही जवाब के लिए हिना को 2.5 अंक देकर उसे तत्काल प्रभाव से सिविल जज (जूनियर डिविजन) के पद पर नियुक्त किया जाए। ये कहानी तकरीबन 10 साल पहले तब शुरू हुई जब हिना न्यायिक परीक्षा में शामिल हुई। ये एग्जाम हरियाणा लोक सेवा आयोग (एचपीएससी) ने कराया था। एचपीएससी ने एक विज्ञापन निकाला था। हिना ने उसे देखकर ही सिविल जज (जूनियर डिविजन) के पद के लिए आवेदन किया था। लिखित परीक्षा हुई पर हिना तब चौक गईं जब उनको पता चला कि पेपर चेक करने वाले ने सही जवाब के लिए उसे अंक नहीं दिया। उनको 2.5 अंक से महरूम कर दिया गया। परीक्षा पास करने के लिए 550 अंकों की जरूरत थी पर हिना ढाई नंबरों की वजह से फेल हो गईं। व्यथित होकर, याचिकाकर्ता ने एचपीएससी और हाईकोर्ट के पास अपनी बात रखी लेकिन कुछ नहीं हुआ। इंसाफ पाने के लिए तब उन्होंने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने इस बात पर बहस नहीं सुनी कि याचिकाकर्ता का उत्तर सही था। चीफ जस्टिस ने तर्क दिया कि पेपर चेक करने वाले शख्स ने कोई अंक नहीं दिया क्योंकि उत्तर में कुछ कटिंग थी। इसके अतिरिक्त, विज्ञापन के अनुसार री-इवेल्युएशन का प्रावधान नहीं था। 

किस्‍मत ने दिया हिना का साथ, 10 साल बाद बनीं जज 

हिना की किस्मत अच्छी थी कि जिस पोस्ट के लिए उन्होंने आवेदन किया था उसमें अभी गुंजाइश थी। यह देखते हुए कि अभी भी रिक्तियां बची हैं, हाईकोर्ट ने माना कि हिना को नियुक्ति दी जा सकती है। चीफ जस्टिस शील नागू ने याचिका को स्वीकार करके हिना को सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के रूप में नियुक्त करने का आदेश दिया। अदालत का फैसला सुनने के बाद हिना के चेहरे पर एक मुस्कान थी। इस मुस्कान में जीत से कहीं ज्यादा इस बात को लेकर सुकून था कि उसने खुद को सही साबित कर दिया। भले ही इसमें उसके 10 साल जाया हो गए।

हालांकि हिना अब खुद किसी कोर्ट की जज बनने जा रही हैं। लेकिन एक बड़ा सवाल कि जिस तरह की लड़ाई उनको लड़नी पड़ी। सही होने के बावजूद खुद को सही साबित करने की एक लंबी जद्दोजहद। वो भारतीय न्याय व्यवस्था की एक त्रासदी है। करोड़ों की तादाद में मामले लंबित हैं। लोग इंसाफ की तलाश में सालों अदालतों को चक्कर काटते रह जाते हैं। ऐसे लोगों को वो जज बनने के बाद कैसे न्याय दिलाएंगी?

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