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डोवाल और पाकिस्तानी सैलून, ऐसे मिला था एटम बम का पता

डोवाल को जब लगा कि सारी कोशिशों पर पानी फिरने वाला है तभी उनको कुछ ऐसा मिला जो पाकिस्तानी एटम बम तक ले गया। उन्हें यह सफलता एक सलून में मिली।

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Shailendra Gautam
भारत के एनएसए अजीत डोभाल

Photograph: (Google)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः अजीत डोवाल वो नाम है जो आज भारत सरकार की अहम जरूरत है। वो नरेंद्र मोदी सरकार के उन चंद नामों में से एक हैं जो सरकार के किसी भी फैसले को बदलने की हैसियत रखते हैं। लेकिन यहां तक वो ऐसी ही नहीं पहुंच गए। नरेंद्र मोदी का भरोसा यूं ही हासिल नहीं हो गया। इसके पीछे सालों की मेहनत और एक ऐसा दिमाग है जो पलक झपकते ही फैसला करने की कुव्वत रखता है। इसी शातिर दिमाग के दम पर उन्होंने पाकिस्तान के एटमी इरादों को बेनकाब कर दिया था। दुनिया मानने को तैयार नहीं थी कि पाकिस्तान एटम बन बनाने की फिराक में है पर डोवाल ने इसे साबित कर दिखाया। 

भिखारी का हुलिया रख पाकिस्तान की धूल फांकते रहे डोभाल

पाकिस्तान के खतरनाक इरादों का पता लगाने के लिए डोवाल भिखारी तक बन गए। एक फटी हुई शॉल, धूल भरी सड़कें, और एक ऐसा आदमी जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया। ये थे अजीत डोवाल। भारत के मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार। 1980 के दशक में पाकिस्तान के इस्लामाबाद में सबकी नजरों में आकर भी उनसे बचते घूम रहे थे। एक आम आदमी के लिए वो एक दूसरे भिखारी जैसे थे। लेकिन किसी को ये नहीं पता था कि भिखारी के पहनावे में जो शख्स है वो अलहदा है। डोभाल का निशाना पाकिस्तान की खुफिया योजना तक पहुंचना था। 

एटमी हथियार बनाने की जुगत में था पाकिस्तान

उस समय पाकिस्तान किसी भी तरह से परमाणु हथियार हासिल करना चाहता था। भारत के 1974 के परमाणु परीक्षण ने इस्लामाबाद को चीन जैसे देशों के समर्थन से अपने परमाणु कार्यक्रम को आक्रामक रूप से आगे बढ़ाने की राह पर आगे बढ़ा दिया। भारत को इनकी भनक तो थी पर कोई ठोस सबूत नहीं था। तत्कालीन सरकार ने यह काम डोवाल को दिय। उनको उस वक्त एक सुपर कॉप के नाम से जाना जाता था।

डोभाल के निशाने पर था इस्लामाबाद का कहुटा

अपना हुलिया बदलकर डोवाल पाकिस्तान गए। उनके निशाने पर इस्लामाबाद का कहुटा था। कुख्यात खान रिसर्च लैबोरेटरीज (केआरएल) का गढ़ कोई साधारण शहर नहीं था। पाकिस्तानी वैज्ञानिक, सुरक्षाकर्मी और सरकारी अधिकारी वहां पैनी नजरों के साथ घूमते थे। ऐसे रखवाली करते थे जैसे कहुटा में उनकी जान बसती हो। महीनों तक अजीत डोवाल धूल भरी गलियों में घूमते रहे। वो हर चीज को अपने मन में बसाते गए। उनको तलाश थी जो एक अदद सबूत की जो पाकिस्तान के घिनौने चेहरे को दुनिया के सामने ला सके। 

नाई की दुकान से मिला पाकिस्तान का एटमी सबूत

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कहते हैं कि मेहनत कभी जाया नहीं जाती। डोवाल के साथ भी यही हुआ। जब उनको लगा कि सारी कोशिशों पर पानी फिरने वाला है तभी उनको कुछ ऐसा मिला जो पाकिस्तानी एटम बम तक ले गया। उन्हें यह सफलता एक सैलून में मिली। केआरएल के वैज्ञानिकों वहां अक्सर कटिंग के लिए जाते थे। दुकान के फर्श पर बिखरे बालों के छोटे-छोटे रेशों को डोवाल ने एकत्र किया। उन्होंने जांच के लिए इनको भारत भेजा। परीक्षणों में यूरेनियम और विकिरण के अंश पाए गए, जिससे भारत की लंबे समय से चली आ रही आशंका की पुष्टि हुई। पाकिस्तान परमाणु हथियार विकसित कर रहा था। इस खुफिया जानकारी ने भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को आकार देने में मदद की।

यह मिशन कोई छोटा-मोटा काम नहीं था। छह साल तक डोवाल लगातार खतरे में रहे। इस छानबीन का मतलब मौत भी हो सकती थी। भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती थी। लेकिन वो अजीत डोवाल थे। इरादों के पक्के। उनके प्रयासों ने पाकिस्तान को परमाणु परीक्षण क्षमता हासिल करने में लगभग पंद्रह साल की देरी कर दी।

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