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Explain: इजराइल ने ईरान पर क्यों किया हमला, जानिए इसके पीछे की हर वजह

इजराइल नहीं चाहता कि ईरान परमाणु ताकत बने क्योंकि इससे उसकी मिडिल ईस्ट में दादागिरी खत्म हो जाएगी। वहीं बेंजामिन नेतन्याहू करप्शन में घिरे हैं। सरकार चाहिए तो कुछ खास तो करना ही पड़ेगा।

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Shailendra Gautam
Israel-Iran Conflict Missile and drone attacks

Photograph: (Google)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः इजराइल ने ईरान पर हमलों की शुरुआत कर दी है। इजराइल ने शुक्रवार सुबह ईरान के चार एटमी और दो सैन्य ठिकानों पर 200 फाइटर जेट से मिसाइलें दागीं। हमले में ईरान के सेना प्रमुख, स्पेशल फोर्स के चीफ, दो बड़े परमाणु वैज्ञानिक मारे गए। शुक्रवार को सुबह शुरू हुए हमलों में सैन्य और सरकारी ठिकानों को निशाना बनाया गया। हमलों में जो अहम लोग मारे गए उनमें आईआरजीसी के प्रमुख हुसैन सलामी और सशस्त्र बलों के चीफ ऑफ स्टाफ मोहम्मद बाघेरी शामिल हैं। ये हमले ईरान और इजरायल के प्रमुख सहयोगी अमेरिका के बीच तेहरान के परमाणु कार्यक्रम के भविष्य पर बातचीत के बावजूद हुए, जिससे लगता है कि इजरायल की कार्रवाई की धमकी ईरान पर अतिरिक्त दबाव लाने की एक चाल थी। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि ये हमले जब तक आवश्यक होगा तब तक जारी रहेंगे। इजराइल के हमलों ने ईरान को बड़ी चोट पहुंचाई है।  Iran Israel Conflict

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ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले के खिलाफ था अमेरिका

पिछले अमेरिकी राष्ट्रपतियों जिन्होंने हमास या हिजबुल्लाह के खिलाफ इजरायल के सैन्य अभियान का समर्थन किया था, उन्होंने भी ईरानी परमाणु ठिकानों पर हमला करने की इजरायल की योजनाओं को वीटो कर दिया था। राष्ट्रपति ट्रम्प ने ईरान पर इजरायल के हमलों पर अपना रुख बदल दिया है। उन्होंने इसे बेहतरीन बताया है। जबकि पहले उन्होंने प्रधानमंत्री नेतन्याहू को चेतावनी दी थी कि ऐसी कार्रवाई परमाणु वार्ता को खतरे में डाल सकती है। ट्रम्प ने ईरान पर अमेरिकी प्रस्तावों को अस्वीकार करने का आरोप लगाया है और भविष्य में और भी तीखे हमलों की चेतावनी दी है। हमले के बाद इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने कहा कि ईरान परमाणु बम तैयार करने वाला था, इसलिए उस पर हमला किया गया। इजराइली सेना का दावा है कि ईरान के पास 15 परमाणु बम बनाने लायक यूरेनियम है। इजराइल ने इसीलिए टारगेट भी 4 बड़े न्यूक्लियर प्लांट्स को किया। वहीं हथियार बनाने की क्षमता रखने वाली एक फैक्ट्री और बड़े मिलिट्री अफसरों के रेसिडेंशियल कॉम्प्लेक्स को भी तबाह कर दिया।

ईरान के वो खास 6 ठिकाने जहां हमला हुआ

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तेहरान से लगभग 250 किलोमीटर दक्षिण में मौजूद नतांज- एटॉमिक फैसिलिटी सेंटर की सैटेलाइट तस्वीरें पहली बार 2002 में सामने आई थीं। कई रिपोर्ट्स में अनुमान लगाया गया है कि इस साइट पर 9 परमाणु बम बनाने जितना यूरेनियम मौजूद है। यहां एडवांस सेंट्रीफ्यूज लगे हैं। इस मशीन की मदद से यूरेनियम-235 की सफाई होती है जिसका इस्तेमाल हथियार बनाने में किया जाता है। 

IRGC कमांडर हुसैन सलामी, सेनाध्यक्ष मोहम्मद बघेरी और सभी परमाण वैज्ञानिकों की मौत तेहरान स्थित एटॉमिक एनर्जी ऑर्गेनाइजेशन ऑफ ईरान पर हुए हमले में ही हुई है। तेहरान न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर (TNRC) की स्थापना 1967 में हुई थी। TNRC में 600 ग्राम तक प्लूटोनियम उत्पादन करने में सक्षम है। तेहरान ईरान की राजधानी है। यहां पर संसद के अलावा सरकार के सभी अहम ऑफिस है। ईरान के सुप्रीम लीडर का अयातुल्ला खामेनेई भी यही रहते हैं। इसके अलावा तेहरान में कई अहम मिलिट्री ठिकाने और एयरपोर्ट्स हैं। 

इस्फहान- परमाणु टेक्नोलॉजी सेंटर में यूरेनियम कन्वर्जन फैसिलिटी है, जहां कच्चे यूरेनियम को गैस में बदला जाता है। इस न्यूक्लियर फैसिलिटी की शुरुआत साल 1999 में हुई। इस शहर में ईरान का एक बड़ा एयरबेस भी है। यहां पर जो हमला किया गया उसमें एयरबेस पर स्थित एक रडार केंद्र को निशाना बनाया गया।

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अराक- हैवी वाटर रिएक्टर में हैवी वाटर रिएक्टर है। इससे प्लूटोनियम बन सकता है। यह परमाणु हथियार बनाने का एक और तरीका है। जिसे आधिकारिक तौर पर IR-40 रिएक्टर के रूप में जाना जाता है। यह ईरान के परमाणु कार्यक्रम का हिस्सा है। 

तबरीज ईरान के अजरबैजान प्रांत की राजधानी है। यहां कोई परमाणु ठिकाना नहीं है। यह तुर्की और आर्मेनिया की सीमा के करीब है। यहां कई मिलिट्री वेयरहाउस, मिसाइल प्रोडक्शन यूनिट और IRGC से जुड़े ठिकाने हैं, जो बैलिस्टिक मिसाइलों और ड्रोनों का उत्पादन करते हैं। इजराइल ने 2023 में भी यहां पर एक ड्रोन फैक्ट्री पर हमला किया था। यहां तेल रिफाइनरी भी है। हमला करने का मकसद ईरान के तेल क्षमता को कमजोर करना है।

करमनशाह इराक की राजधानी बगदाद के पास है। ईरान के मिसाइल बेस और औद्योगिक कॉम्प्लेक्स इराक सीमा के पास हैं। करमनशाह शहर इराक के दियाला प्रांत और सुलेमानिया जैसे क्षेत्रों के पास है। यह इराक की राजधानी बगदाद से बस 150-200 किलोमीटर दूर है। करमनशाह में कई महत्वपूर्ण सीमा क्रॉसिंग पॉइंट हैं। 

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हमले के पीछे IAEA का ईरान के खिलाफ प्रस्ताव

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने गुरुवार को ईरान के खिलाफ एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किया था। एजेंसी ने कहा था कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को लेकर जो नियम तय हैं, उनका पालन नहीं कर रहा है। IAEA के मुताबिक ईरान के पास इतनी अधिक मात्रा में संवर्धित यूरेनियम है कि वह एक साल से भी कम समय में 10 परमाणु बम बना सकता है। एजेंसी ने आरोप लगाया कि ईरान कई जगहों पर परमाणु गतिविधियों की जानकारी देने से लगातार इनकार कर रहा है और वह जांच में सहयोग नहीं कर रहा। यह बीते 20 साल में पहली बार हुआ जब संयुक्त राष्ट्र की इस निगरानी संस्था ने ईरान को लेकर इतनी सख्त कार्रवाई की है। IAEA के 35 देशों के बोर्ड में से 19 देशों ने इस ईरान के खिलाफ प्रस्ताव में वोटिंग की। इसमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी शामिल थे। वहीं रूस और चीन ने इसके खिलाफ वोट दिया और बाकी देशों ने या तो हिस्सा नहीं लिया या वोटिंग से दूर रहे। ईरान ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की और कहा कि यह पूरी तरह से राजनीतिक है। ईरानी विदेश मंत्रालय और देश की परमाणु एजेंसी ने संयुक्त बयान में कहा कि इस तरह के फैसलों से अंतरराष्ट्रीय एजेंसी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होते हैं। हालांकि ईरान बार-बार कहता रहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल शांतिपूर्ण और नागरिक इस्तेमाल के लिए है, जैसे बिजली बनाना या दवा तैयार करना, न कि हथियार बनाने के लिए।

इजराइल सालों से ईरान पर हमले की फिराक में था

हालांकि जो हमले शुक्रवार से शुरू हुए, इजराइल इसके लिए सालों से तैयारी कर रहा है। इसने 2015 के परमाणु समझौते का विरोध किया। इसने ईरान के अंदर कई गुप्त हमले किए, जिसमें ईरानी परमाणु कार्यक्रम के जनक मोहसेन फख़रीजादेह की 2020 में हत्या भी शामिल है। इसने अप्रैल 2014 में दमिश्क में ईरानी दूतावास पर बमबारी करके युद्ध को सीधे ईरान तक पहुंचाया। इजराइल का तर्क है कि ईरान के परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम उसके अस्तित्व के लिए खतरा थे। वैसे इजराइल लंबे समय से ईरान में सीधा हमला करना चाहता था, लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबाव और ईरान की मुस्तैदी दोनों ने इसे ऐसा करने से रोक दिया। 

ईरान के पास परमाणु बम होगा तो इजराइल को कौन पूछेगा

ईरान लंबे समय से इजराइल को खत्म करने की बात करता आया है और उन क्षेत्रीय लड़ाकों का समर्थन करता है जो इजराइल के खिलाफ हैं। दूसरी तरफ इजराइल ईरान को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है। उसका मकसद ईरान को परमाणु बम बनाने से रोकना है। पिछले कुछ सालों में यह टकराव लगातार बढ़ा है। 2019 में इजराइल ने सीरिया, लेबनान और इराक में उन ठिकानों पर हमले किए जहां से ईरान अपने सहयोगियों को हथियार भेजता था। साल 2020 में इजराइल ने ईरान के एक बड़े परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की हत्या कर थी। फखरीजादेह अपनी कार में थे। इस दौरान एक रिमोट मशीन गन से लैस एक गाड़ी ने उन पर हमला कर दिया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक यह हथियार सैटेलाइट से कंट्रोल होता था। इसमें AI का इस्तेमाल किया गया था ताकि सटीक निशाना लगाया जा सके। मिडिल ईस्ट में इजरायल की दादागिरी उसके हथियारों या अमेरिकी समर्थन के कारण नहीं है, बल्कि इस क्षेत्र में किसी अन्य देश के पास परमाणु हथियार न होने की वजह से है। इजरायल के पास परमाणु हथियार होना व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है, हालांकि उसने कभी भी सार्वजनिक रूप से इसे स्वीकार नहीं किया है। ईरानी परमाणु हथियार उसकी धमकी को खत्म कर देगा। नेतन्याहू कहते रहे हैं कि ईरान परमाणु हथियार हासिल करने की कगार पर है, जबकि तेहरान ने जोर देकर कहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है। 

हमलों के पीछे इजराइल की अपनी राजनीति तो नहीं

इजराइल में कई लोग नेतन्याहू पर सैन्य निर्णय लेने का आरोप लगाते हैं, जिसमें गाजा पर युद्ध भी शामिल है, जहां इजरायल ने 55 हजार से अधिक फिलिस्तीनियों को मार डाला था। अपने आलोचकों की नजर में नेतन्याहू सरकार में बने रहने के लिए ईरान और गाजा दोनों के साथ संघर्ष पर निर्भर हो गए हैं। अक्टूबर, 2023 में इजरायल पर हमास के हमलों से पहले नेतन्याहू की सरकार गिर चुकी थी। उन पर लगे कई भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते जेल की सजा भी हो सकती है। इसी वजह से उन्होंने हमास पर जवाबी कार्रवाई की जिसमें एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए। देखा जाए तो फिलहाल इजरायल के लिए कोई बड़ा खतरा नहीं था। IAEA रिपोर्ट में ऐसा कुछ भी नहीं था जो यह इशारा करती कि ईरान इजरायल के लिए खतरा है।" ईरान पर हमलों के बाद से इजरायल के अधिकांश राजनेता सेना के पक्ष में खड़े हो गए हैं। ईरान पर हमलों सें नेतन्याहू संसद को भंग करने और चुनाव शुरू करने के लिए वोट करने से बच गए। जानकार कहते हैं कि नेतन्याहू ने ईरान पर हमला करने का जो फैसला लिया है, वह उनकी राजनीतिक स्थिति के के कारण है। 

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