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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने 75 पार होने के बाद रिटायर होने की सलाह दी है। उनकी बात के कई राजनीतिक मायने भी हैं। इन सारी चर्चाओं का क्या अंजाम होगा ये लक्त ही बेहतर बता सकता है लेकिन संघ प्रमुख की इस बात को कहने के महज तीन दिनों के बाद ही भारत के जाने माने एडवोकेट दुष्यंत दवे ने वकालत के पेशे को अलविदा कह दिया है। उनका कहना है कि वो अब अपने जीवन को इंज्वाय करेंगे। इससे युवा वकीलों को भी मौका मिलेगा।
व्हाट्सएप मैसेज के जरिये किया ऐलान
सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने बार में 48 साल बिताने के बाद वकालत छोड़ने का फैसला किया है। उन्होंने व्हाट्सएप संदेश के ज़रिए अपने फैसले की घोषणा की। दवे ने अपने संदेश में कहा कि बार में 48 शानदार साल बिताने और हाल ही में अपना 70वां शानदार जन्मदिन मनाने के बाद मैंने वकालत का पेशा छोड़ने का फैसला किया है। बार और बेंच के सभी दोस्तों को अलविदा। दवे ने कहा कि उनके इस फैसले के पीछे कोई खास वजह नहीं है। वह युवाओं के लिए रास्ता बनाना चाहते हैं।
बोले- अब कोर्ट में कभी वापस नही आऊंगा
दवे ने कहा कि कोई बात नहीं कि मैं अब 70 साल का हो गया हूं। युवाओं को आने दो और काम करने दो। कोई भी महत्वपूर्ण मामला होने पर भी मैं वापस नहीं आऊंगा। मैं अपने पोते-पोतियों के साथ समय बिताने जा रहा हूं। भविष्य की योजनाओं के बारे में दवे ने कहा कि वह समाज के लिए काम करने और अपने जुनून को पूरा करने में समय बिताने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने वर्षों से मिले सहयोग के लिए अपनी पत्नी अमी का भी आभार व्यक्त किया। उन्होंने गुजरात में बड़ौदा के पास एक तालुका को गोद लेने की अपनी योजना के बारे में बात की। वह बोले कि मैं संखेड़ा में एक तालुका को गोद लेना चाहता हूं। हालांकि वह दिल्ली में ही रहेंगे, लेकिन बीच-बीच में यात्रा करते रहेंगे।
अहमदाबाद से शुरू की वकालत, सबसे महंगे वकीलों में से एक
दवे ने 1977 में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद बार में दाखिला लेकर अपने कानूनी करियर की शुरुआत की। उन्होंने अहमदाबाद में अपनी प्रैक्टिस शुरू की। 90 के दशक में दिल्ली चले गए। उन्हें 1994 में सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट नियुक्त किया गया था। उन्होंने तीन बार - 2014, 2019 और 2020 में टाप कोर्ट की बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। दवे सबसे महंगे वकीलों में से एक थे। : Indian Judiciary | Judiciary | judiciary of india not present in content
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