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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क । सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को भी सुनवाई जारी रहेगी। कानून के जानकारों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को इस मामले में अपना अंतरिम फैसला दे सकता है। ऐसी चर्चा है कि फिलहाल संशोधन एक्ट पर अंतरिम रोक लगाई जा सकती है।
आज दोपहर बाद होगी सुनवाई
इस मामले को लेकर दोनों ओर से 73 याचिकाएं दायर की गई हैं। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ कर रही है। दूसर दिन गुरुवार को भी दोपहर बजे के बाद इस पर सुनवाई की जाएगी। कांग्रेस, डीएमके, आम आदमी पार्टी, वाईएसआरसीपी, एआईएमआईएम जैसे दलों और अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत कई संगठनों ने इस कानून को चुनौती दी है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कमेटी में गैर मुस्लिमों को शामिल किए जाने पर भी सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने इस मामले को लेकर केंद्र को नोटिस जारी किया है।
मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
- - बुधवार की बहस के दौरान चीफ जस्टिस खन्ना ने इस बात पर चिंता जताई कि कैसे कुछ संपत्तियों को वक्फ के रूप में क्लासीफाइड किया गया है। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, "हमें बताया गया है कि दिल्ली हाई कोर्ट की इमारत वक्फ की जमीन पर है, ओबेरॉय होटल वक्फ की जमीन पर है। हम यह नहीं कह रहे हैं कि सभी वक्फ बाय यूजर प्रॉपर्टी गलत तरीके से रजिस्टर्ड हैं, लेकिन चिंता के कुछ वास्तविक क्षेत्र भी हैं।
- याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें पेश कीं। उन्होंने तर्क दिया कि इस्लामी कानून के तहत, विरासत केवल मौत के बाद ही मिलती है और सरकार अब उससे पहले हस्तक्षेप करने का प्रयास कर रही है। सीजेआई खन्ना ने सिब्बल की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "लेकिन हिंदुओं में ऐसा होता है। इसलिए संसद ने मुसलमानों के लिए कानून बनाया है। हो सकता है कि यह हिंदुओं के लिए कानून जैसा न हो। अनुच्छेद 26 इस मामले में कानून बनाने पर रोक नहीं लगाएगा। अनुच्छेद 26 सार्वभौमिक है और यह इस मायने में धर्मनिरपेक्ष है कि यह सभी पर लागू होता है।"
- अपनी दलीलों के दौरान सिब्बल ने उस प्रावधान (धारा 3सी) का हवाला दिया जिसके मुताबिक, सरकारी संपत्ति के रूप में पहचानी गई संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं होगी और सरकार का प्राधिकारी विवाद का फैसला करेगा। इसके बाद सिब्बल ने धारा 3 डी का जिक्र किया, जो एएसआई की ओर से संरक्षित स्मारकों पर वक्फ के निर्माण को अमान्य करार देती है। इस पर सीजेआई ने बताया कि प्रावधान के अनुसार, अगर वक्फ के निर्माण के समय संपत्ति एक संरक्षित स्मारक थी तो ऐसा वक्फ अमान्य होगा। सीजेआई खन्ना ने पूछा, "ऐसे कितने मामले होंगे?" सिब्बल ने जवाब दिया, "जामा मस्जिद।" हालांकि, सीजेआई ने कहा कि जामा मस्जिद को बाद में संरक्षित स्मारक के रूप में अधिसूचित किया गया था।
- कानूनी न्यूज पोर्टल लाइव लॉ के मुताबिक, सीजेआई ने कहा, "मेरे हिसाब से व्याख्या आपके पक्ष में है। अगर इसे प्राचीन स्मारक घोषित करने से पहले वक्फ घोषित किया जाता है तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यह वक्फ ही रहेगा, आपको तब तक आपत्ति नहीं करनी चाहिए जब तक कि इसे संरक्षित घोषित करने के बाद वक्फ घोषित नहीं किया जा सकता। ज्यादातर स्मारक, प्राचीन मस्जिदें, इस खंड से प्रभावित नहीं होंगी।"
- सिब्बल ने केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों के नामांकन से संबंधित धारा 9, 14 के बारे में भी बात की। सिब्बल ने कहा कि यह अनुच्छेद 26 का सीधा उल्लंघन है। सिब्बल ने तर्क दिया कि सिख गुरुद्वारों से संबंधित केंद्रीय कानून और हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती से संबंधित कई राज्य कानून संबंधित बोर्डों में अन्य धर्मों के लोगों को शामिल करने की अनुमति नहीं देते हैं। सिब्बल ने पंजीकरण अनिवार्य करने वाले प्रावधानों पर भी आपत्ति जताई। सीजेआई ने पूछा, "इसमें क्या गलत है?" सिब्बल ने कहा कि वर्तमान में, बिना पंजीकरण के भी यूजर की ओर से वक्फ बनाया जा सकता है।
- सीजेआई ने कहा, "आप वक्फ रजिस्टर करा सकते हैं, जिससे आपको रजिस्टर बनाए रखने में भी मदद मिलेगी।" जस्टिस विश्वनाथन ने यह भी कहा, "अगर आपके पास डीड है तो कोई भी फर्जी या झूठा दावा नहीं होगा।" सिब्बल ने कहा, "वे हमसे पूछेंगे कि क्या 300 साल पहले कोई वक्फ बनाया गया था और उसका दस्तावेज पेश करने को कहेंगे। इनमें से कई संपत्तियां सैकड़ों साल पहले बनाई गई थीं और उनके कोई दस्तावेज नहीं होंगे।"
सॉलिसिटर जनरल के तर्क
- केंद्र की ओर से भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस बात पर जोर दिया कि संयुक्त संसदीय समिति की ओर से एक प्रैक्टिस के बाद कानून बनाया गया था। उन्होंने कहा कि संसद के दोनों सदनों ने लंबी बहस के बाद विधेयक पारित किया। बहस जारी रहने के दौरान सीजेआई ने सरकार के साथ विवादों से संबंधित प्रावधान की ओर इशारा किया और पूछा कि विवाद का निपटारा होने तक संपत्ति को वक्फ क्यों नहीं माना जाना चाहिए।
- सीजेआई ने कहा, "यह वक्फ संपत्ति क्यों नहीं रहेगी? सिविल कोर्ट को इसका फैसला करने दीजिए।" सीजेआई ने पूछा, "मिस्टर तुषार मेहता, हमें बताएं। अगर वक्फ-बाय-यूजर को 2025 अधिनियम से पहले स्वीकार किया गया था तो क्या अब इसे शून्य या अस्तित्वहीन घोषित कर दिया गया है?"
- सीजेआई ने शर्तों के बारे में भी स्पष्टता मांगी कि संपत्ति विवादित नहीं होनी चाहिए। सीजेआई ने कहा, "अंग्रेजों के आने से पहले हमारे पास कोई रजिस्ट्रेशन नहीं था। कई मस्जिदें 14वीं या 15वीं सदी में बनी हैं। उनसे रजिस्टर्ड दस्तावेज प्रस्तुत करने की अपेक्षा करना असंभव है। ज्यादातर मामलों में, जैसे कि जामा मस्जिद दिल्ली, वक्फ बाय यूजर वक्फ होगा।"
- चीफ जस्टिस ने मेहता से धारा 2ए में डाले गए प्रावधान के बारे में भी सवाल किया, जिसमें कहा गया है कि कोर्ट के किसी भी फैसले के बावजूद, ट्रस्ट की संपत्ति वक्फ अधिनियम के दायरे में नहीं आएगी। सीजेआई ने कहा, "विधानसभा अदालत के किसी फैसले या आदेश को शून्य घोषित नहीं कर सकती, आप कानून के आधार को हटा सकते हैं लेकिन आप किसी फैसले को बाध्यकारी नहीं घोषित कर सकते।"
- सीजेआई खन्ना ने वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों के नामांकन की अनुमति देने वाले प्रावधानों के बारे में भी पूछा। सीजेआई ने पूछा, "जब हम यहां निर्णय लेने के लिए बैठते हैं तो हम अपना धर्म भूल जाते हैं। हम एक बोर्ड के बारे में बात कर रहे हैं जो धार्मिक मामलों का प्रबंधन कर रहा है। मान लीजिए हिंदू मंदिर में, गवर्नर काउंसिल में सभी हिंदू हैं। आप जजों के साथ कैसे तुलना कर रहे हैं?"
- सीजेआई ने धारा 2ए के प्रावधान पर भी चिंता जताई। सीजेआई खन्ना ने कहा, "जहां सार्वजनिक ट्रस्ट को वक्फ घोषित किया गया है, मान लीजिए 100 या 200 साल पहले, आप पलटकर कहते हैं कि यह वक्फ नहीं है। आप 100 साल पहले के अतीत को फिर से नहीं लिख सकते!"
- सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने कहा कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग वक्फ अधिनियम से शासित नहीं होना चाहता है। इस पर सीजेआई ने पूछा कि क्या आप ये कह रहे हैं कि अब मुसलमानों को भी हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड में शामिल किया जाएगा? जरा साफ तौर पर कहिए।
केंद्र को नोटिस जारी किया, दो सप्ताह में जवाब मांगा
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने सरकार से दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है।
"वक्फ बाय यूजर" पर सवाल
CJI ने पूछा कि "अगर कोई व्यक्ति किसी संपत्ति को वक्फ के रूप में इस्तेमाल कर रहा है, लेकिन उसका पंजीकरण नहीं हुआ है, तो क्या उसे अमान्य माना जाएगा?" उन्होंने कहा कि ब्रिटिश काल में भी प्रिवी काउंसिल ने "वक्फ बाय यूजर" को मान्यता दी थी, इसलिए इसे पूरी तरह खारिज करना उचित नहीं लगता।
गैर-मुस्लिम सदस्यों पर विवाद
CJI ने SG से पूछा: "क्या काउंसिल में नियुक्त गैर-मुस्लिम सदस्य (जैसे पूर्व जज) वक्फ मामलों पर फैसला ले सकेंगे?"
SG ने जवाब दिया कि 22 सदस्यों वाली काउंसिल में अधिकतम 2 गैर-मुस्लिम होंगे, और इसमें शिया, सुन्नी व महिला प्रतिनिधियों को भी स्थान दिया गया है।
CJI ने इस पर कहा: "अदालतें धर्म-निरपेक्ष होकर फैसला करती हैं, इसलिए जजों के धर्म पर सवाल उठाना उचित नहीं।"
कोर्ट का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से दो सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने को कहा।
SG मेहता ने कहा कि सरकार लिखित हलफनामा देकर सेंट्रल वक्फ काउंसिल की संरचना और नए कानून के उद्देश्यों को स्पष्ट करेगी।
आगे की कार्रवाई
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि नया कानून मुस्लिम पर्सनल लॉ और अनुच्छेद 26 (धार्मिक स्वायत्तता) का उल्लंघन करता है। वहीं, सरकार का कहना है कि यह संसदीय समिति की सिफारिशों पर आधारित है और संपत्ति प्रबंधन में पारदर्शिता लाएगा। अगली सुनवाई में कोर्ट दोनों पक्षों के तर्कों पर विचार करेगा।
सरकारी संपत्ति और वक्फ का दावा
- CJI ने कहा कि जामा मस्जिद जैसी संपत्तियों को 'उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ' माना जा सकता है।
- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया कि पंजीकरण न होने पर ऐसी संपत्तियों को वक्फ नहीं माना जा सकता।
waqf | bill on waqf board | Supreme Court India | जस्टिस विश्वनाथन ने सवाल उठाया: "अगर सरकार किसी संपत्ति पर दावा करती है, तो क्या वक्फ का दावा खारिज हो जाएगा?"
पंजीकरण की अनिवार्यता
- SG मेहता ने कहा कि 1923 से वक्फ का पंजीकरण अनिवार्य है, लेकिन याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि प्राचीन मस्जिदों (13वीं-15वीं शताब्दी) के लिए पंजीकरण दस्तावेज मौजूद नहीं हैं।
- CJI ने पूछा: "क्या ब्रिटिश काल से पहले बनी मस्जिदों को अब अवैध माना जाएगा?"
धार्मिक अधिकारों पर प्रभाव
- वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि नया कानून मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखल देता है। उन्होंने उदाहरण दिया कि अगर कोई मुस्लिम 5 साल से नमाज नहीं पढ़ता, तो उसका वक्फ दावा अमान्य हो सकता है।
- राजीव धवन ने कहा कि सरकार ने वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति करके अनुच्छेद 26 का उल्लंघन किया है।
संपत्ति विवादों का निपटारा
- सिब्बल ने आरोप लगाया कि नए कानून में सरकारी अधिकारी (कलेक्टर) को वक्फ और सरकार के बीच विवाद तय करने का अधिकार दिया गया है, जो न्यायिक प्रक्रिया नहीं है।
- CJI ने टिप्पणी की: "अगर कोई संपत्ति पहले से वक्फ है, तो क्या सरकार उसे रद्द कर सकती है?"
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
- पीडीपी नेता इल्तिजा मुफ्ती ने नेशनल कॉन्फ्रेंस पर सरकार के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया।
- शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जवाद ने इस कानून को "मुस्लिम संपत्तियों को नष्ट करने वाला" बताया।
आगे की कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से तर्क सुने और मामले पर फैसला सुरक्षित रखा है। याचिकाकर्ताओं ने कानून पर रोक लगाने की मांग की है, जबकि केंद्र सरकार का कहना है कि यह कानून संसदीय समिति की सिफारिशों पर बना है।
यह मामला धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन, अल्पसंख्यक अधिकारों और सरकारी हस्तक्षेप के बीच तनाव को उजागर करता है। कोर्ट का फैसला भविष्य में वक्फ संपत्तियों और धार्मिक स्वायत्तता के लिए महत्वपूर्ण होगा।