नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः योगी आदित्यनाथ के प्रशासन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को गुस्से में ला दिया है। अदालत ने हाल ही में टिप्पणी की कि राज्य की पुलिस और अफसर अदालतों का उल्लंघन करने में गर्व महसूस करते हैं। ऐसा लगता है कि इसमें उन्हें मजा आता है। श्रीमती छामा बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में जस्टिस जेजे मुनीर ने यह टिप्पणी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए की। इसमें आरोप लगाया गया था कि अधिकारियों ने हाईकोर्ट के स्टे के बावजूद बागपत जिले में एक घर को गिरा दिया। हाईकोर्ट ने अब बागपत के कलेक्टर, एसडीएम, तहसीलदार को नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने सभी को 7 जुलाई को या उससे पहले अपना हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा है। इसमें कहा गया है कि गिराए गए भवन का पुनर्निर्माण क्यों न उनसे ही कराया जाए।
बागपत प्रशासन ने स्टे के बावजूद गिरा दिया था घर
इस मामले में जुलाई 2024 में मकान मालिक छामा के खिलाफ बेदखली का आदेश पारित किया गया था। फरवरी 2025 में उनकी अपील खारिज कर दी गई थी। उन्होंने मार्च 2025 में हाईकोर्ट का रुख किया। इस बीच अतिक्रमण हटाने की मांग को लेकर एक पीआईएल दायर की गई। हाईकोर्ट ने बेदखली के आदेश पर रोक लगाते हुए निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता के घर को ध्वस्त नहीं किया जाएगा और कोई वसूली नहीं की जाएगी। लेकिन बागपत के जिला प्रशासन ने छामा का घर गिरा दिया।
अफसरों को दिखाया स्टे तो मुंह फेर लिया था
तोड़फोड़ के बाद याचिकाकर्ता ने स्टे की अवहेलना करने के लिए अधिकारियों के खिलाफ अदालत की अवमाननाकी याचिका दायर की। न्यायालय ने पहली नजर में ही पाया कि स्टे का उल्लंघन करते हुए मकान को गिराया गया था। अदालत ने कहा कि तस्वीरों से पता चलता है कि जब स्टे अधिकारियों को दिखाया गया तो उन्होंने दूसरी तरफ मुंह कर लिया। हालांकि सरकार के वकील ने दलील दी कि स्टे आर्डर वेबसाइट पर देर से अपलोड किया गया था, जज ने उनकी बात नहीं मानी। उनका कहना था कि इस बारे में भरी अदालत में आदेश दिया गया था।
सरकार की दलील- देरी से अपलोड हुआ था फैसला
जस्टिस जेजे मुनीर ने कहा कि भले ही आदेश अपलोड करने में देरी हुई हो पर इसे आपके वकील की मौजूदगी में पारित किया गया था। यह अधिकारियों का कर्तव्य है कि वे विध्वंस जैसी कठोर कार्रवाई से तब तक पीछे हटें, जब तक कि इस न्यायालय द्वारा पारित स्थगन आदेश के तथ्य की पुष्टि न हो जाए। स्टे दिए जाने के बाद अधिकारियों को तुरंत सतर्क हो जाना चाहिए था। uttar pradesh | Judiciary | Indian Judiciary
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