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जम्मू-कश्मीर का पुंछ जिला एक बार फिर गोलियों की तड़तड़ाहट से दहल उठा। लसाना के घने जंगलों में सोमवार रात को आतंकियों और सेना के बीच मुठभेड़ शुरू हुई, जो अभी भी जारी है। इस खूनी जंग में रोमियो फोर्स का एक जवान घायल हो गया।
यह मुठभेड़ उस नेशनल हाईवे के पास हुई, जो पुंछ को जम्मू से जोड़ता है। चार दिन पहले ही किश्तवाड़ में जैश-ए-मोहम्मद के तीन आतंकियों को ढेर किया गया था, जिनके पास से बरामद सामान पर पाकिस्तान का ठप्पा मिला। यह कहानी है उन जवानों की, जो अपनी जान की बाजी लगाकर देश की हिफाजत कर रहे हैं, और उस दर्द की, जो हर गोली के साथ उनके परिवारों के दिल में उतरता है।
पुंछ में आतंक की रात
jammu kashmir | Jammu Kashmir news | Terrorist attack : 14 अप्रैल 2025 की रात, जब लसाना के जंगलों में अंधेरा पसरा था, भारतीय सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने एक जॉइंट सर्च ऑपरेशन शुरू किया। खबर थी कि इलाके में आतंकी छिपे हैं। जैसे ही जवान जंगल की गहराइयों में बढ़े, आतंकियों ने उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। गोलियों की आवाज से रात का सन्नाटा चीख उठा। इस हमले में रोमियो फोर्स का एक जवान बुरी तरह घायल हो गया। उसका खून जंगल की मिट्टी में मिल गया, लेकिन उसकी हिम्मत डिगी नहीं।
सेना की व्हाइट नाइट कोर ने सोशल मीडिया पर बताया, "हमने आतंकियों को घेर लिया है। अतिरिक्त जवानों को तैनात किया गया है, ताकि कोई भी आतंकी भाग न पाए।" इलाके को पूरी तरह सील कर दिया गया है। ड्रोन और स्निफर डॉग्स की मदद से आतंकियों की तलाश जारी है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह जंग सिर्फ गोलियों की है, या इसके पीछे कोई बड़ी साजिश छिपी है?
किश्तवाड़ में जैश का खात्मा, पाकिस्तान की साजिश बेनकाब
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पुंछ की इस मुठभेड़ से ठीक चार दिन पहले, 11 अप्रैल को किश्तवाड़ के चत्रू जंगल में एक और खूनी जंग हुई थी। सुरक्षाबलों ने जैश-ए-मोहम्मद के तीन आतंकियों को मार गिराया। इनमें एक टॉप कमांडर सैफुल्लाह भी शामिल था, जिसने फरवरी और मार्च 2024 में सेना के काफिलों पर हमले की साजिश रची थी।
सर्च ऑपरेशन में जो सामान बरामद हुआ, उसने सबको चौंका दिया। M4 राइफल, AK-47, ग्रेनेड्स, दवाइयां, मोजे और प्राथमिक उपचार किट - इनमें से कई चीजों पर लाहौर और पाकिस्तान का पता लिखा था। यह साफ संदेश था कि सीमा पार से आतंक को हवा दी जा रही है। इन आतंकियों का मकसद था कश्मीर की शांति को भंग करना, लेकिन भारतीय सेना ने उनकी साजिश को मिट्टी में मिला दिया। फिर भी, हर मुठभेड़ के साथ एक सवाल उठता है - आखिर यह जंग कब खत्म होगी?
अखनूर का दर्द: JCO की शहादत
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पुंछ से पहले, 12 अप्रैल को जम्मू के अखनूर में भी आतंकियों ने सेना को निशाना बनाया था। केरी बट्टल इलाके में 9 पंजाब रेजिमेंट के जूनियर कमीशंड ऑफिसर (JCO) कुलदीप चंद आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए। शुक्रवार रात शुरू हुई इस मुठभेड़ में सेना ने आतंकियों को घेर लिया था, लेकिन JCO चंद की जान की कीमत चुकानी पड़ी।
उनके परिवार का दर्द कौन समझेगा? उनकी पत्नी और बच्चे अब किस उम्मीद के सहारे जिएंगे? हर शहादत के साथ देश का सीना गर्व से चौड़ा होता है, लेकिन एक घर का आंगन सूना हो जाता है।
20 दिन, 5 मुठभेड़ें: आतंक का बढ़ता साया
पिछले 20 दिनों में जम्मू-कश्मीर में आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच पांच बड़ी मुठभेड़ें हो चुकी हैं। कठुआ, उद्धमपुर और किश्तवाड़ के जंगलों में आतंकी लगातार शांति को चुनौती दे रहे हैं।
23 मार्च, कठुआ: हीरानगर सेक्टर में जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े पांच आतंकी छिपे थे। सुरक्षाबल उन्हें पकड़ने में नाकाम रहे, और आतंकी भाग निकले।
28 मार्च, कठुआ: दूसरी मुठभेड़ में दो आतंकी मारे गए, लेकिन स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (SOG) के चार जवान - तारिक अहमद, जसवंत सिंह, जगबीर सिंह और बलविंदर सिंह - शहीद हो गए। DSP धीरज सिंह समेत तीन जवान घायल हुए।
31 मार्च, कठुआ: पंजतीर्थी मंदिर के पास तीसरी मुठभेड़ हुई। तीन आतंकियों के छिपे होने की खबर थी, लेकिन कोई पुष्टि नहीं हुई।
11 अप्रैल, किश्तवाड़: जैश के तीन आतंकी ढेर किए गए।
14 अप्रैल, पुंछ: लसाना में मुठभेड़ जारी है, एक जवान घायल।
इन मुठभेड़ों में सात सुरक्षाकर्मी शहीद हुए, तीन आतंकी मारे गए, और कई जवान घायल हैं। यह आंकड़े सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि उन परिवारों की चीखें हैं, जो अपनों को खो चुके हैं।
पाकिस्तान की साजिश: 1 अप्रैल का सबूत
1 अप्रैल 2025 को पुंछ में LoC के पास तीन माइन ब्लास्ट हुए। पाकिस्तानी सेना ने बिना उकसावे के फायरिंग शुरू की। उसी दौरान आतंकियों ने घुसपैठ की कोशिश की। भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई में चार से पांच घुसपैठियों को मार गिराया। सेना ने साफ कहा, "हम शांति चाहते हैं, लेकिन हर साजिश का जवाब देंगे।"
2021 के DGSMO समझौते के बावजूद पाकिस्तान बार-बार सीजफायर का उल्लंघन कर रहा है। किश्तवाड़ में बरामद सामान और पुंछ की मुठभेड़ इस बात का सबूत हैं कि आतंक को सीमा पार से हवा दी जा रही है।
जवानों का बलिदान, देश का दर्द
हर मुठभेड़ के साथ एक जवान का खून मिट्टी में मिल रहा है। JCO कुलदीप चंद की शहादत हो, या लसाना में घायल जवान की जिंदगी के लिए चल रही जंग - ये कहानियां सिर्फ खबरें नहीं हैं। ये उन परिवारों का दर्द हैं, जो हर रात अपने बेटे, पति या पिता की सलामती की दुआ करते हैं।
पुंछ, किश्तवाड़, अखनूर - ये नाम अब सिर्फ जगहें नहीं, बल्कि उस जंग के प्रतीक बन गए हैं, जो शांति के लिए लड़ी जा रही है। लेकिन इस जंग का अंत कब होगा? क्या आतंक का यह सिलसिला कभी थमेगा?
एक अनसुलझा सवाल
जम्मू-कश्मीर की वादियां खून से लाल हो रही हैं। एक तरफ सेना के जवान अपनी जान की बाजी लगा रहे हैं, तो दूसरी तरफ पाकिस्तान की साजिशें थमने का नाम नहीं ले रही। पुंछ में चल रही मुठभेड़, किश्तवाड़ में जैश का खात्मा, और अखनूर में JCO की शहादत - ये सभी घटनाएं एक ही सवाल की ओर इशारा करती हैं: आखिर कब तक?
यह कहानी सिर्फ गोलियों और मुठभेड़ों की नहीं है। यह उन जवानों की है, जो अपने परिवार को छोड़कर देश की रक्षा में जुटे हैं। यह उन मांओं की है, जो हर फोन की घंटी पर डर जाती हैं। और यह उस देश की है, जो शांति चाहता है, लेकिन आतंक के खिलाफ जंग लड़ने को मजबूर है।