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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः राष्ट्रपति के 14 सवालों पर सुनवाई के दौरान सालिसिटर जनरल ने भरसक जोर लगाया कि पहले की स्थिति बहाल हो जाए। यानि गवर्नर और राष्ट्रपति को वो शक्तियां वापस मिल जाएं जिससे वो सरकारों को बिलों को मनमाफिक तरीके से रोक सकें। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया कि गवर्नरों को बेलगाम छोड़ दिया गया तो चुनी हुई सरकारों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। सरकारें कानून बनाएंगी और गवर्नर उनको बेवजह लटकाते रहेंगे।
सुप्रीम कोर्ट बोला- हम फैसला नहीं बदलेंगे
सीजेआई बीआर गवई की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच ने साफ कर दिया कि जो फैसला जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने दिया था उसमें कोई फेरबदल नहीं होने जा रहा। बेंच में जस्टिस सूर्यकांत, विक्रमनाथ, पीएस नरसिम्हा के साथ अतुल एस चंदूरकर भी शामिल थे। केंद्र की तरफ से आज एसजी तुषार मेहता ने दलीलें रखीं। मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को ये समझाने के लिए भरसक प्रयास किए कि वो फैसले पर न अड़े। लेकिन टाप कोर्ट का कहना था कि जो फैसला दिया गया था वो सही था।
सबसे बड़ी अदालत ने आज यह टिप्पणी उस समय की जब एसजी तुषार मेहता ने तर्क दिया कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल किसी विधेयक पर अपनी सहमति रोक सकते हैं, जिससे वह अस्वीकृत हो जाएगा और उसे विधानमंडल के पास वापस भेजने का कोई विकल्प नहीं होगा। सीजेआई गवई ने कहा कि क्या हम राज्यपाल को अपील पर सुनवाई करने का पूरा अधिकार नहीं दे रहे हैं? बहुमत से चुनी गई सरकार राज्यपाल की मनमानी पर निर्भर होगी। कोर्ट ने कहा कि तब राज्यपाल के पास विधेयक पर सुनवाई करने और उसे हमेशा के लिए रोके रखने के पर्याप्त अधिकार होंगे। मेहता ने कहा कि सभी को संविधान से शक्ति प्राप्त होती है। लेकिन कोर्ट उनसे सहमत नहीं था।
मेहता ने दिया संविधान सभा की बहस का ब्योरा
मेहता ने दलील दी कि लोकतांत्रिक ढांचे में गवर्नर की अपनी एक अहमियत है। उन्होंने जजों को सहमत करने के लिए संविधान सभा में हुई बहस का ब्योरा भी बताया। लेकिन कोर्ट का सवाल था कि क्या जो सपना संविधान सभा ने गवर्नरों को लेकर देखा था वो उस पर खरे भी उतर रहे हैं। सीजेआई ने कहा कि गवर्नर संविधान के मुताबिक काम कर रहे होते तो सुप्रीम कोर्ट को फैसला देने की जरूरत क्यों पड़ती।
अदालत ने कहा- तमाशा बनाते रहे हैं कई गवर्नर
अदालत ने कहा कि उनके सामने कई ऐसे उदाहरण हैं जिसमें राज्यपालों ने अपनी शक्तियों का बेजा इस्तेमाल करके तमाशा बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। मेहता की दलील थी कि कुछ कारणों की वजह से संविधान सभा की धारणा को तो नहीं बदला जा सकता है। उन्होंने राज्यपालों को लेकर जो बात कही थी वो यूं ही नहीं थी।
मेहता का कहना था कि सरकारों के बिलों पर गवर्नर के पास चार विकल्प होते हैं। या तो वो बिल को मंजूरी दे दें या फिर मंजूरी को रोक दें। बिल को रिजर्व रख लें या उसे विचार के लिए आगे भेज दें। कोर्ट ने इस पर कहा कि गवर्नर किसी बिल को यूं ही नहीं रोक सकते। उनको कारण बताना ही होगा। जस्टिस सूर्यकांत का कहना था कि मेन मुद्दा ये है कि बिलों को लटकाना टेंपरेरी है या फिर परमानेंट।
मेहता बोले- गवर्नर डाकिया नहीं, कोर्ट ने नहीं मानी दलील
मेहता की दलील थी कि इन बिलों में ऐसे भी हो सकते हैं जिनको पास करने से संवैधानिक ढांचे पर खतरा पैदा होता हो। इनसे किसी के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन होता हो। उनका कहना था कि राज्यपाल की कुर्सी पर बैठा शख्स बेहद अनुभवी होता है। वो केवल एक डाकिया नहीं है जो चिट्ठियों को यहां से वहां पहुंचाता रहे। लेकिन अदालत का कहना था कि ऐसे तो राज्य सरकारें बेमतलब हो जाएंगी।
Supreme Court, SG Tushar Mehta, CJI BR Gavai, powers of governors, 14 questions to the President