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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । भारत ने एक बार फिर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर दुनिया को सख्त संदेश दिया है। लेकिन इस अहम मौके पर विपक्षी दलों को भरोसे में न लेने का मुद्दा गरमा गया है। ममता बनर्जी ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए पारदर्शिता की कमी बताई है। उन्होंने कहा कि सरकार ने प्रतिनिधिमंडल की जानकारी तक साझा नहीं की। सवाल ये है- क्या आतंकवाद जैसे मुद्दे पर भी राजनीति होनी चाहिए?
पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर भारत की वैश्विक रणनीति में विपक्ष को नजरअंदाज किए जाने पर राजनीतिक घमासान मच गया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि उन्हें प्रतिनिधिमंडल के दौरे की कोई जानकारी नहीं दी गई। उन्होंने सरकार की पारदर्शिता पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर सूचना दी जाती, तो वे योजना का समर्थन कर सकती थीं। यह विवाद अब न सिर्फ दिल्ली की राजनीति बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की छवि से भी जुड़ गया है।
भारत की विदेश नीति में विपक्ष की गैर-मौजूदगी पर सवाल
भारत जब पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मुखर हो रहा है, ऐसे में विपक्षी दलों की गैर-मौजूदगी ने नई बहस को जन्म दे दिया है। ममता बनर्जी का बयान इस बात को लेकर खासा चर्चित हो गया है कि सरकार ने विपक्ष को इस कूटनीतिक अभियान से दूर क्यों रखा।
ममता बनर्जी का तीखा बयान
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, "हमें किसी प्रतिनिधिमंडल की जानकारी नहीं दी गई। केवल संसदीय दल को सूचना दी गई। अगर हमें बताया जाता, तो हम सहयोग करते। सरकार सदस्यों के नाम खुद नहीं तय कर सकती।" उनका यह बयान केंद्र सरकार की नीति पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
VIDEO | Here is what Mamata Banerjee (@MamataOfficial ) says on India's global outreach against terrorism sponsored by Pakistan: “The government never informed us about the delegation visit. They only informed the parliamentary party. If they would have informed us, No request… pic.twitter.com/Y1soCMKzh1
— Press Trust of India (@PTI_News) May 19, 2025
क्या राष्ट्रीय मुद्दों पर राजनीति होनी चाहिए?
आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दे पर जब भारत पूरी दुनिया में मजबूत संदेश दे रहा है, तब राजनीतिक सहमति की कमी भारत की छवि को प्रभावित कर सकती है। विपक्ष का दावा है कि सरकार जानबूझकर उन्हें दूर रखती है, जबकि सरकार का तर्क होता है कि राष्ट्रीय हित में तुरंत निर्णय लिए जाते हैं।
इससे पहले भी उठे हैं ऐसे सवाल
यह पहली बार नहीं है जब विपक्ष को विदेश नीति से जुड़े फैसलों में दरकिनार किए जाने का आरोप लगा हो। चाहे वह बालाकोट एयरस्ट्राइक हो या यूएन में भारत की बात—विपक्ष अक्सर खुद को ‘बाहरी’ महसूस करता आया है।
सोशल मीडिया पर गर्म बहस
इस बयान के बाद ट्विटर और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म्स पर लोगों की प्रतिक्रिया बंटी हुई नजर आई। कुछ लोग ममता के बयान को ‘राजनीति से प्रेरित’ बता रहे हैं, वहीं कुछ इसे लोकतंत्र के लिए खतरा मानते हैं।
क्या कहता है जनता का मूड?
आम लोगों का मानना है कि आतंकवाद जैसे मुद्दों पर सरकार और विपक्ष को एक साथ आना चाहिए। इससे न सिर्फ देश की छवि मजबूत होती है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की बात और ज्यादा विश्वसनीय बनती है।
क्या आप मानते हैं कि आतंकवाद जैसे मुद्दे पर सरकार को विपक्ष को साथ लेना चाहिए? नीचे कमेंट करके अपनी राय ज़रूर दें।
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