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भाजपा में आंतरिक घमासान!-संघ परेशान!, जानें आखिर ये रिश्ता क्या कहलाता है...?

भारतीय जनता पार्टी में नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया में देरी हो रही है, जिसमें संघ का प्रभाव और संगठनात्मक चुनौतियां प्रमुख कारण हैं। आइए जानते हैं कि संघ भाजपा के रिश्ते की सूत्र...

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Ajit Kumar Pandey
BJP RSS

नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क ।

भारतीय जनता पार्टी (BJP) में इन दिनों एक सवाल हर किसी के जेहन में है- पार्टी का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन होगा और यह फैसला कब होगा? यह सवाल न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच, बल्कि राजनीतिक विश्लेषकों और आम जनता के बीच भी चर्चा का विषय बना हुआ है। मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल जून 2024 में समाप्त हो चुका है, और वे वर्तमान में विस्तारित कार्यकाल पर हैं।

BJP and opposition clash : नए अध्यक्ष के चयन में देरी के पीछे कई संगठनात्मक और रणनीतिक कारण हैं या फिर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का पेंच। इसे समझना जरूरी है। यह लेख भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव प्रक्रिया, संभावित दावेदारों, और नए नेतृत्व के सामने आने वाली चुनौतियों पर विस्तार से प्रकाश डालता है, साथ ही यह भी बताता है कि यह प्रक्रिया पार्टी और देश की राजनीति को कैसे प्रभावित कर सकती है।

भाजपा में यूपी से लेकर महाराष्ट्र समेत पूरे देश में आंतरिक हलचल मची है। संघ भी भाजपा की प्लॉनिंग को लेकर खुश नहीं है। अब देखना होगा कि नए राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर आपसी तालमेल भाजपा संघ में बनती है या फिर कुछ और...

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राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव: प्रक्रिया और देरी के कारण

भाजपा का संविधान राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश देता है। पार्टी के संगठनात्मक ढांचे के अनुसार, राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से होता है, जिसमें राष्ट्रीय परिषद के सदस्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस प्रक्रिया में शामिल हैं...

सदस्यता अभियान: राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले पार्टी पूरे देश में सदस्यता अभियान चलाती है। यह अभियान नए सदस्यों को जोड़ने और मौजूदा सदस्यों को संगठन के साथ जोड़े रखने का काम करता है। हाल ही में यह अभियान पूरा हो चुका है, जिसने चुनाव की दिशा में पहला कदम बढ़ाया है।

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प्रदेश स्तर के चुनाव: भाजपा की परंपरा के अनुसार, राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव तब होता है, जब कम से कम 18 राज्यों में संगठनात्मक चुनाव पूरे हो जाते हैं। अभी तक 10 राज्यों में ये चुनाव हो चुके हैं, जबकि 26 राज्यों में यह प्रक्रिया बाकी है। हालांकि, पार्टी संविधान की धारा 19 के तहत, यदि 5 राज्यों में राष्ट्रीय परिषद का गठन हो जाए, तो 20 सदस्य मिलकर राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए नाम प्रस्तावित कर सकते हैं। यह लचीलापन प्रक्रिया को गति दे सकता है, लेकिन सहमति की कमी इसे जटिल बना रही है।

सहमति का प्रयास: भाजपा में सहमति बनाना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। पार्टी नेतृत्व यह सुनिश्चित करना चाहता है कि नया अध्यक्ष सभी वर्गों और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करे। इस प्रक्रिया में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की भी महत्वपूर्ण भूमिका है, जो विचारधारा के प्रति समर्पित और संगठन में जमीनी स्तर पर काम करने वाले नेताओं को प्राथमिकता देता है।

देरी का एक प्रमुख कारण यह है कि पार्टी 2029 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर एक ऐसा नेतृत्व चुनना चाहती है, जो न केवल संगठन को मजबूत करे, बल्कि विपक्ष के नैरेटिव को भी प्रभावी ढंग से काट सके। विपक्ष लंबे समय से यह दावा करता रहा है कि भाजपा में निर्णय थोपे जाते हैं और एक वर्ग की आवाज को दबाया जाता है।

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इस धारणा को तोड़ने के लिए पार्टी एक ऐसी प्रक्रिया अपनाना चाहती है, जो पारदर्शी और समावेशी हो। हालांकि चर्चा इस बात की जोरों पर है कि आरएसएस अपनी मर्जी का अध्यक्ष चाहता है। यही कारण है कि संघ प्रमुख दिल्ली से लेकर देश के सबसे बड़े प्रदेश का दौरा कर चुके हैं। आइए एक नजर डालते हैं कि कौन कौन हैं प्रमुख दावेदार और संघ से क्या है पुराना नाता...

संभावित दावेदार: कौन बन सकता है अगला अध्यक्ष?

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए कई नाम चर्चा में हैं। इनमें अनुभवी नेता, संगठन के रणनीतिकार, और युवा चेहरे शामिल हैं। नीचे कुछ प्रमुख दावेदारों का परिचय और उनकी योग्यताएं दी गई हैं...

शिवराज सिंह चौहान

SHIVRAJ SINGH CHAUHAN
SHIVRAJ SINGH CHAUHAN

पृष्ठभूमि: मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और छह बार के लोकसभा सांसद।

योग्यता: शिवराज ने मध्य प्रदेश में लाडली बहना योजना शुरू की, जो अन्य राज्यों के लिए मॉडल बनी। उन्होंने 13 साल की उम्र में RSS से जुड़कर अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी और इमरजेंसी के दौरान जेल भी गए। OBC समुदाय से होने के कारण सामाजिक समीकरणों में उनकी मजबूत पकड़ है।
संघ का समर्थन: RSS की सूची में शिवराज का नाम सबसे ऊपर माना जा रहा है। उनकी विचारधारा और संगठन के प्रति समर्पण उन्हें मजबूत दावेदार बनाता है।

सुनील बंसल

SUNIL BANSAL
SUNIL BANSAL

पृष्ठभूमि: उत्तर प्रदेश में भाजपा के संगठनात्मक रणनीतिकार।

योग्यता: 2014 और 2017 के उत्तर प्रदेश चुनावों में उनकी रणनीति ने पार्टी को अभूतपूर्व सफलता दिलाई। ओडिशा, पश्चिम बंगाल, और तेलंगाना में भी उनके नेतृत्व में पार्टी ने प्रभावी प्रदर्शन किया। यूपी में उन्हें "भाजपा का चाणक्य" कहा जाता है।

संघ का समर्थन: उनकी संगठनात्मक क्षमता और संघ से नजदीकी उन्हें एक मजबूत दावेदार बनाती है।

धर्मेंद्र प्रधान

DHARMENDRA PRADHAN
DHARMENDRA PRADHAN

पृष्ठभूमि: केंद्रीय शिक्षा मंत्री और ओडिशा से प्रमुख नेता।

योग्यता: 40 साल का राजनीतिक अनुभव और ओबीसी समुदाय से होने के कारण सामाजिक समीकरणों में महत्वपूर्ण। ABVP से शुरूआत कर 2010 में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बने। ओडिशा में पार्टी को मजबूत करने में उनकी भूमिका उल्लेखनीय है।

संघ का समर्थन: उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता और संगठन में पकड़ उन्हें एक संभावित उम्मीदवार बनाती है।

रघुवर दास

RAGHUVAR DAS
RAGHUVAR DAS

पृष्ठभूमि: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री।

योग्यता: झारखंड में पहली बार पांच साल का स्थिर शासन देने वाले गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री। ओबीसी समुदाय से होने के कारण सामाजिक समीकरणों में लाभकारी। पूर्वोत्तर में भाजपा के विस्तार में उनकी भूमिका हो सकती है।

संघ का समर्थन: उनकी जमीनी पकड़ और संगठनात्मक अनुभव उन्हें दावेदारों की सूची में शामिल करता है।

स्मृति ईरानी

SMRITI IRANI
SMRITI IRANI

पृष्ठभूमि: केंद्रीय मंत्री और मजबूत महिला चेहरा।

योग्यता: कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों का अनुभव और हिंदी बेल्ट के साथ दक्षिण भारत में प्रभाव। RSS के साथ उनके अच्छे संबंध और प्रशासनिक क्षमता उन्हें एक संभावित उम्मीदवार बनाती है।

संघ का समर्थन: उनकी लोकप्रियता और संगठन में सक्रियता उनकी दावेदारी को मजबूत करती है।

वानति श्रीनिवासन

VAANATI SHRINIWASAN
VAANATI SHRINIWASAN

पृष्ठभूमि: भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष।

योग्यता: 1993 से भाजपा से जुड़ीं और तमिलनाडु में पार्टी को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका। कोयंबटूर दक्षिण से कमल हासन को हराया। उनके परिवार का RSS और विश्व हिंदू परिषद से गहरा नाता है।

संघ का समर्थन: उनकी संगठनात्मक क्षमता और दक्षिण भारत में प्रभाव उन्हें एक मजबूत दावेदार बनाता है।

तमिलिसाई सौंदर्यराजन

TAMILSAAI SOUNDARARJAN
TAMILSAAI SOUNDARARJAN

पृष्ठभूमि: तमिलनाडु भाजपा की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष।

योग्यता: 1999 से पार्टी से जुड़ीं और कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। तमिलनाडु में विपक्ष में रहते हुए भी पार्टी के विस्तार में योगदान। मोदी और शाह के करीबी नेताओं में शामिल।

संघ का समर्थन: उनकी सक्रियता और दक्षिण भारत में प्रभाव उनकी दावेदारी को मजबूत करता है।

डी. पुरंदेश्वरी

D PURANDESHWARI
D PURANDESHWARI

पृष्ठभूमि: आंध्र प्रदेश भाजपा की अध्यक्ष और एन.टी. रामाराव की बेटी।

योग्यता: कांग्रेस से भाजपा में शामिल होने के बाद तेलुगु राज्यों में पार्टी को मजबूत किया। उनकी राजनीतिक विरासत और अनुभव उन्हें एक संभावित उम्मीदवार बनाता है।

संघ का समर्थन: तेलुगु राज्यों में प्रभाव और संगठनात्मक अनुभव उनकी दावेदारी को मजबूत करता है।

नए नेतृत्व की चुनौतियां

भाजपा का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने वाला नेता कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करेगा। इनमें से कुछ प्रमुख हैं:

2029 का लोकसभा चुनाव: नया अध्यक्ष 2029 के लोकसभा चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करेगा। यह चुनाव पार्टी के लिए महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि यह तय करेगा कि क्या भाजपा केंद्र में अपनी सत्ता बरकरार रख पाएगी।

12 अहम विधानसभा चुनाव: पार्टी संविधान के अनुसार, राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल तीन साल का होता है। इस दौरान कम से कम 12 राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे, जिनमें उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात, और कर्नाटक जैसे बड़े राज्य शामिल हैं। इन चुनावों में जीत सुनिश्चित करना नए अध्यक्ष की प्राथमिकता होगी।

विपक्ष के नैरेटिव का जवाब: विपक्ष लगातार यह दावा करता रहा है कि भाजपा में निर्णय थोपे जाते हैं और संगठन में एक वर्ग की आवाज को दबाया जाता है। नए अध्यक्ष को इस नैरेटिव को तोड़ने के लिए एक समावेशी और पारदर्शी नेतृत्व प्रदान करना होगा।

महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना: भाजपा ने राष्ट्रीय परिषद और कार्यकारिणी में महिलाओं को 33% प्रतिनिधित्व देने की योजना बनाई है। नए अध्यक्ष को इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे।

युवाओं को अवसर: RSS की सलाह है कि विचारधारा के प्रति समर्पित युवाओं को संगठन में अधिक जिम्मेदारी दी जाए। नए अध्यक्ष को इस दिशा में काम करना होगा ताकि भविष्य के लिए नेतृत्व तैयार हो सके।

भाजपा की रणनीति: समावेशी और मजबूत संगठन

भाजपा का नेतृत्व यह समझता है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन केवल एक व्यक्ति का चयन नहीं है, बल्कि यह पार्टी की भविष्य की दिशा और रणनीति को तय करता है। इसलिए, पार्टी निम्नलिखित रणनीतियों पर काम कर रही है:

सामाजिक समीकरण: नए अध्यक्ष का चयन करते समय सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखा जा रहा है। OBC, SC/ST, और महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने पर जोर है।

क्षेत्रीय संतुलन: दक्षिण भारत, पूर्वोत्तर, और हिंदी बेल्ट के बीच संतुलन बनाना जरूरी है। इसलिए, दावेदारों में विभिन्न क्षेत्रों के नेता शामिल हैं।

विचारधारा और संगठन: RSS की सलाह है कि विचारधारा और संगठन के प्रति समर्पण ही नेतृत्व का आधार होना चाहिए। यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि नया अध्यक्ष इन मूल्यों को आगे बढ़ाए।

महिला सशक्तिकरण: राष्ट्रीय परिषद, कार्यकारिणी, और अन्य संगठनों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की योजना है। यह कदम पार्टी को सामाजिक और राजनीतिक रूप से और मजबूत करेगा।

भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव केवल एक संगठनात्मक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह पार्टी की भविष्य की दिशा और देश की राजनीति को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण कदम है।

नए अध्यक्ष के सामने 2029 का लोकसभा चुनाव, 12 विधानसभा चुनाव, और संगठन को और मजबूत करने की चुनौती होगी। पार्टी नेतृत्व इस प्रक्रिया में सहमति, समावेशिता, और पारदर्शिता को प्राथमिकता दे रहा है ताकि विपक्ष के नैरेटिव को तोड़ा जा सके और एक मजबूत संगठन का निर्माण हो सके।

संभावित दावेदारों में अनुभवी नेता, संगठन के रणनीतिकार, और युवा चेहरे शामिल हैं, जो पार्टी को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन होगा और वे पार्टी को कैसे नेतृत्व प्रदान करेंगे।

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