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जस्टिस यशवंत वर्मा ने तो सुप्रीम कोर्ट और सीजेआई की ही बखिया उधेड़कर रख दी

जस्टिस यशवंत वर्मा ने जिन पांच बिंदुओं पर सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ मांगा है, उसमें टाप कोर्ट के साथ चीफ जस्टिस आफ इंडिया की शक्तियों पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं।

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Shailendra Gautam
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा

Photograph: (Google)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः जस्टिस यशवंत वर्मा ने संसद का मानसून सेशन शुरू होने से पहले सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करके इंसाफ की गुहार की है। लेकिन खास बात है कि उन्होंने जिन पांच बिंदुओं पर सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ मांगा है, उसमें टाप कोर्ट के साथ चीफ जस्टिस आफ इंडिया की शक्तियों पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट और सीजेआई को हाईकोर्ट या इसके जजों के खिलाफ कोई एक्शन लेने का अधिकार नहीं है। ये संवैधानिक व्यवस्था है। 

1. इन हाउस पैनल की प्रासंगिकता पर उठाया सवाल

जस्टिस यशवंत वर्मा ने अपनी याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट की इन हाउस इन्क्वायरी एक समानांतर और संविधानेतर तंत्र बनाता है जो संविधान के अनुच्छेद 124 और 218 के तहत अनिवार्य ढांचे का उल्लंघन करता है। संविधान ने जजों को हटाने का अधिकार संसद को दिया है।
उन्होंने तर्क दिया है कि संसद की जजेस इन्क्वायरी एक्ट इस संबंध में कड़े सुरक्षा उपायों के साथ एक व्यापक प्रक्रिया प्रदान करता है, जबकि सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक प्रक्रिया संसदीय अधिकार का अतिक्रमण करती है। यह और शक्तियों के अलगाव के सिद्धांत का भी उल्लंघन करती है।

2. हाईकोर्ट या उसके जजों को नहीं छेड़ सकता SC या CJI

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जस्टिस वर्मा ने यह भी तर्क दिया है कि संविधान सर्वोच्च न्यायालय या मुख्य न्यायाधीश को उच्च न्यायालयों या उनके न्यायाधीशों पर कोई अधीक्षण या अनुशासनात्मक शक्तियां प्रदान नहीं करता है। उन्होंने कहा कि खुद से बनाई प्रक्रियाएं, जैसे कि इन हाउस कमेटी उच्च न्यायालय के जजों के संवैधानिक रूप से संरक्षित कार्यकाल को बाधित या रद्द नहीं कर सकती हैं। ये मुख्य न्यायाधीश को अन्य न्यायाधीशों के भाग्य को तय करने का अनियमित अधिकार प्रदान नहीं कर सकती हैं।

3. जब कोई शिकायत नहीं तो इन हाउस कमेटी कैसे बनी

जस्टिस वर्मा ने कहा कि उनके खिलाफ कोई औपचारिक शिकायत नहीं थी फिर सुप्रीम कोर्ट ने कैसे इन हाउस पैनल गठित कर दिया। उनका तर्क है कि केवल धारणाओं के आधार पर ऐसा नहीं किया जा सकता है। तीन जजों का पैनल अपनी प्रक्रिया को अधिसूचित किए बगैर जांच शुरू कर दी। जो साक्ष्य जुटाए गए वो उनकी अनुपस्थिति में थे। गवाहों से लिखित बयान लिए गए जबकि इनकी वीडियो रिकार्डिंग कराई जानी चाहिए थी। इन हाउस पैनल ने सीसीटीवी की फुटेज भी नहीं जुटाई। जस्टिस वर्मा का तर्क है कि कैश सारे मामले के केंद्र में था। इन हाउस पैनल ये बताने में नाकाम रहा कि कितना कैश बरामद किया गया। या फिर इस कैश का सोर्स क्या था। 

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4. सीजीआई ने कमेटी की रिपोर्ट को रिव्यू करने नहीं दिया

जस्टिस वर्मा ने चौथे प्वाइंट में कहा कि सीजेआई ने उनको इतना समय भी नहीं दिया कि वो पैनल की रिपोर्ट को रिव्यू कर सकें। उनको सीजेआई संजीव खन्ना ने बुलाया और एक तय समय सीमा के भीतर या तो इस्तीफा देने के लिए कहा या फिर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के लिए। उनको सीजेआई या सबसे सीनियर जजों के सामने अपनी बात रखने का मौका तक नहीं दिया गया। पैनल की रिपोर्ट पर उनका पक्ष तो जाना ही जाना चाहिए था। 

5. सुप्रीम कोर्ट की वजह से उनकी साख पर बट्टा लगा

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जस्टिस वर्मा ने आखिरी प्वाइंट में कहा कि सुप्रीम कोर्ट की वजह से ही मीडिया ट्रायल शुरू हुआ। टाप कोर्ट ने सारे मामले को मीडिया के सामने पेश कर दिया। उसके बाद उनकी साख तार तार हो गई। जबकि सुप्रीम कोर्ट की ही संवैधानिक बेंच ने अपने फैसले में मीडिया ट्रायल को गलत ठहराया था। मीडिया को सारी रिपोर्ट लीक कर दी गई। उसके बाद तथ्यों को परखे बगैर इन हाउस कमेटी की रिपोर्ट की बखिया उधेड़ दी गई। इसकी वजह से जज के तौर पर उनकी साख और कैरियर को दागदार कर दिया गया।

Justice Yashwant Verma, Supreme Court, CJI, Ex-CJI Sanjiv Khanna

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