नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । कमल हासन का एक विवादास्पद बयान – "कन्नड़ भाषा तमिल से जन्मी है" – अब एक राजनीतिक भूचाल बन गया है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस टिप्पणी को न केवल तथ्यहीन बल्कि कन्नड़ संस्कृति का अपमान बताया है। भाषा की अस्मिता पर छिड़े इस विवाद ने कर्नाटक-तमिलनाडु के सामाजिक रिश्तों को भी असहज कर दिया है। सवाल उठ रहा है: क्या यह बयान एक सामान्य गलती थी या किसी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा? जानिए दोनों नेताओं के बयान, उनके मायने और इस बहस के पीछे की गहराई।
कमल हासन के बयान ने क्यों छेड़ी लपटें?
दक्षिण भारत के सुपरस्टार और राजनेता कमल हासन ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा कि "कन्नड़ भाषा तमिल से पैदा हुई है।" यह कथन सामने आते ही सोशल मीडिया पर बवाल मच गया। ट्विटर से लेकर फेसबुक तक, कन्नड़ भाषी यूज़र्स ने इसे गहरी आपत्ति के साथ खारिज किया।
लोगों ने इसे भाषा और संस्कृति का सीधा अपमान करार दिया।
सिद्धारमैया का तीखा पलटवार: "कन्नड़ की विरासत गहरी है"
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने प्रतिक्रिया में कहा – "कन्नड़ का इतिहास बहुत प्राचीन और समृद्ध है। यह कहना कि कन्नड़ तमिल से उत्पन्न हुई है, ऐतिहासिक सच्चाई को नकारना है। कमल हासन को भाषा विज्ञान और इतिहास की समुचित जानकारी नहीं है।"
उन्होंने आगे कहा कि "किसी भी अभिनेता को, चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो, ऐसी असंवेदनशील बात कहने से पहले सोच-समझकर बोलना चाहिए।"
क्या कहते हैं भाषाविद् और इतिहासकार?
कई भाषाविदों का मानना है कि तमिल और कन्नड़ दोनों भाषाएं द्रविड़ परिवार से संबंधित हैं, लेकिन दोनों की अलग-अलग विकास यात्रा रही है। कन्नड़ साहित्य की प्राचीनतम रचनाएं 9वीं शताब्दी की हैं, जबकि तमिल साहित्य उससे भी पहले की है। पर इसका मतलब यह नहीं कि एक भाषा दूसरी से "पैदा" हुई हो।
राजनीतिक हलकों में मचा हड़कंप
कांग्रेस नेता सिद्धारमैया के तीखे तेवर के बाद कन्नड़ समर्थक संगठनों ने भी कमल हासन से माफ़ी मांगने की मांग की है। वहीं, तमिलनाडु के कुछ राजनेता इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं, जिससे सोशल मीडिया पर और आक्रोश है। भाषा को लेकर इस तरह के बयानों से दक्षिण भारत में भावनाएं अक्सर भड़कती रही हैं।
क्या बोले कमल हासन बाद में?
अब तक कमल हासन ने अपने बयान को लेकर सफाई नहीं दी है। हालांकि उनके पार्टी सूत्रों का कहना है कि "बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है और उसका उद्देश्य किसी भाषा या संस्कृति को नीचा दिखाना नहीं था।"
भाषाई पहचान से जुड़ा मामला, हल्के में नहीं लिया जा सकता
- दक्षिण भारत में भाषाएं सिर्फ संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान की आत्मा हैं।
- ऐसे में जब कोई बड़ा चेहरा ऐसी बात कहता है, तो उसका असर गहरा होता है।
- अब देखना यह है कि कमल हासन इस पर खुलकर सफाई देते हैं या मामला और तूल पकड़ेगा।
क्या आप मानते हैं कि कमल हासन का बयान अनुचित था? अपनी राय कमेंट में दें।
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