Advertisment

सबूत नहीं देखे, देखा तो केवल POCSO एक्ट और दे डाली 20 साल की सजा

निचली अदालत ने POCSO एक्ट से जुड़े केस में एक शख्स को 20 साल की सजा दे दी। एमएलसी में ऐसा कुछ सामने नहीं आया था जिससे यह कहा जा सके कि बच्चे के साथ कुछ गलत हुआ। केस में बच्चे, उसके माता-पिता के अलावा और कोई ऐसा गवाह नहीं था जिसे निष्पक्ष कहा जा सके।

author-image
Shailendra Gautam
pocso

प्रतीकात्‍मक Photograph: (सोशल मीडिया)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः उत्तर प्रदेश में एक अनूठा मामला सामने आया है। निचली अदालत ने POCSO एक्ट से जुड़े केस में एक शख्स को उम्र कैद की सजा दे दी। बावजूद इसके कि मेडिको लीगल रिपोर्ट( एमएलसी) में ऐसा कुछ सामने नहीं आया था जिससे यह कहा जा सके कि बच्चे के साथ कुछ गलत हुआ। इतना ही नहीं इस केस में बच्चे, उसके माता-पिता के अलावा और कोई ऐसा गवाह नहीं था जिसे निष्पक्ष कहा जा सके। फिर भी अदालत ने आरोपी को दोषी मानते हुए 20 साल की सजा दे दी। जो जुर्म उसने किया नहीं उसके लिए वो 9 साल से जेल में बंद था। इलाहाबाद हाईकोर्ट की निगाह में ये केस आया तभी दोषी करार शख्स को इंसाफ मिल सका। हाईकोर्ट ने निचली अदालत को ऐसे फैसले के लिए जमकर फटकार लगाई। 

बगैर अपराध के 9 साल से जेल में बंद था राम सनेही

पचास वर्षीय सनेही को मार्च 2016 में अपनी नाबालिग चचेरी बहन के साथ बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। मुकदमे के लंबित रहने के दौरान उसे जमानत नहीं दी गई थी। उसको 2020 में 20 साल के कारावास की सजा सुनाई गई। अपील लंबित रहने तक वो जेल में ही रहा। हाईकोर्ट की तरफ से नियुक्त एमीकस क्यूरी ने भी POCSO एक्ट को देखककर केवल ये मांग की कि उसकी सजा को कुछ कम कर दिया जाए। हालांकि, जस्टिस ने जब साक्ष्यों की जांच की तो पाया कि पीड़िता की एमएलसी जांच में उसके शरीर पर किसी भी तरह की चोट का निशान नहीं था। हाईकोर्ट को अभियोजन के गवाहों की गवाही में कई विरोधाभास दिखे। 

हाईकोर्ट से लगाई थी सजा कम करने की गुहार

Advertisment

हाईकोर्ट के जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने कहा कि जब एक 45 वर्षीय व्यक्ति पर अपनी नाबालिग चचेरी बहन के साथ बलात्कार का आरोप लगाया जाता है तो अभियोजन पक्ष केवल पीड़िता, उसके पिता और माता के मौखिक साक्ष्य पर निर्भर करता है। किसी स्वतंत्र गवाह से पूछताछ नहीं की जाती। हालांकि कहा जाता है कि घटना के समय कई लोग जमा हो गए थे पर गवाही किसी ने नहीं दी। अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड में मौजूद साक्ष्य यह साबित नहीं करते कि आरोपी ने पीड़िता के साथ बलात्कार किया था। अदालत ने आरोपी को बरी करते हुए कहा कि निचली अदालत ने रिकॉर्ड में मौजूद साक्ष्यों की जांच किए बिना और पीड़िता की एमएलसी और पैथोलॉजिकल रिपोर्ट पर गौर किए बिना आरोपी को दोषी ठहराया है। निचली अदालत के फैसले पर चिंता जताते हुए कहा कि वो फैसला किसी भी सूरत में जायज नहीं कहा जा सकता।

जस्टिस बोले- झूठा था केस, लोअर कोर्ट ने दिया था गलत फैसला

जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने कहा कि संपत्ति को लेकर ये केस दायर कर दिया गया और कोर्ट ने जिस तरह से फैसला दे दिया वो चिंताजनक है। एक शख्स बेवजह 9 सालों से जेल में बंद था। उन्होंने कहा कि दोषी करार दिया गया राम सनेही 9 साल से जेल में बंद है। उसके मकान की देखरेख करने वाला कोई नहीं है। लिहाजा पुलिस उसे खुद जाकर मकान पर काबिज करे। जस्टिस ने कहा कि छोटी मोटी तनातनी के लिए रेप और POCSO जैसे आरोप लगा दिए जाते हैं। लेकिन अदालतें इस सच्चाई से मुंह नहीं फेर सकतीं कि ये बदला लेने के लिए होते हैं। 

Advertisment

POCSO, Allahabad High Court,  Justice Subhash Vidyarthi, POCSO act

Judiciary judiciary of india POCSO Act
Advertisment
Advertisment