/young-bharat-news/media/media_files/2025/04/09/yQ8ePRFMkc3SaRrJcv5J.jpg)
NIA TAHHYUVAR
Tahawwur Rana | Tahawwur Rana News | 2008 के मुंबई में हुए भयावह आतंकवादी हमलों के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक, तहव्वुर हुसैन राणा को आखिरकार संयुक्त राज्य अमेरिका से भारत प्रत्यर्पित किया जा रहा है। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसकी भारत प्रत्यर्पण रोकने की अंतिम याचिका को खारिज करने के बाद, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) उसे बुधवार को भारत लाएगी और उसकी कस्टडी लेगी।
सूत्रों के अनुसार, एनआईए की एक विशेष टीम राणा को भारत लाने के लिए अमेरिका रवाना हो चुकी है। यह अभी तक आधिकारिक रूप से स्पष्ट नहीं किया गया है कि उसे सबसे पहले दिल्ली लाया जाएगा या सीधे मुंबई, जहां 26/11 के हमलों की दर्दनाक साजिश रची गई और उसे अंजाम दिया गया।
Tahawwur Rana plea rejected | हालांकि, संभावना जताई जा रही है कि उसे मुंबई में उतारा जाएगा, जो उस आतंकी घटना का केंद्र था जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। सूत्रों ने यह भी संकेत दिया है कि भारत पहुंचने के बाद शुरुआती कुछ सप्ताह राणा एनआईए की गहन हिरासत में बिताएगा, जहां उससे हमलों की साजिश, उसमें उसकी भूमिका और अन्य संभावित संलिप्त लोगों के बारे में विस्तृत पूछताछ की जाएगी।
कौन है मुंबई हमले का आरोपी तहव्वुर राणा
तहव्वुर राणा, जो एक पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक है, लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों द्वारा किए गए मुंबई हमलों की योजना बनाने और उसे अंजाम देने में अपनी कथित भूमिका के लिए लंबे समय से भारतीय जांच एजेंसियों के रडार पर था। इन हमलों में 157 निर्दोष लोगों की जान चली गई थी और सैकड़ों अन्य घायल हो गए थे। यह भारत के इतिहास में सबसे भयावह आतंकवादी हमलों में से एक था, जिसने न केवल जान-माल का भारी नुकसान किया बल्कि भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों को भी गहरा आघात पहुंचाया।
अमेरिका में बैठकर खेल रहा था लुकाछिपी का खेल
अमेरिकी अदालतों में राणा ने लगातार अपने प्रत्यर्पण का विरोध किया था, लेकिन उसकी सभी कानूनी चुनौतियों को अंततः खारिज कर दिया गया। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने उसकी अंतिम याचिका को खारिज करके भारत के लिए उसके प्रत्यर्पण का रास्ता साफ कर दिया। इससे पहले, फरवरी में, उसने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की एसोसिएट जस्टिस एलेना कागन के समक्ष 'बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के लंबित मुकदमे पर रोक लगाने के लिए आपातकालीन आवेदन' प्रस्तुत किया था। इस आवेदन में राणा ने तर्क दिया था कि भारत को उसका प्रत्यर्पण अमेरिकी कानून और संयुक्त राष्ट्र के यातना विरोधी कन्वेंशन का उल्लंघन है, क्योंकि उसे भारत में यातना का खतरा है। हालांकि, अदालत ने उसकी इन दलीलों को स्वीकार नहीं किया था।
इससे पहले, 13 फरवरी को दायर अपनी याचिका में, राणा ने मुकदमेबाजी (सभी अपीलों की समाप्ति सहित) तक अपने प्रत्यर्पण और भारत के समक्ष आत्मसमर्पण पर रोक लगाने की मांग की थी। उसने यह भी दावा किया था कि 2011 में शिकागो में आतंकवाद के आरोपों में उसे दोषी ठहराया गया था, जिसके कारण उसे भारत में उसी अपराध के लिए फिर से मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। हालांकि, अमेरिकी अदालतों ने इन तर्कों को भी खारिज कर दिया था, यह मानते हुए कि भारत के पास राणा पर मुंबई हमलों में उसकी संलिप्तता के लिए मुकदमा चलाने का पर्याप्त आधार है।
भारत ने 7 मार्च को आधिकारिक तौर पर कहा था कि वह राणा के प्रत्यर्पण के लिए आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मिलकर काम कर रहा है। यह घटनाक्रम तब और महत्वपूर्ण हो गया जब पिछले महीने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने वाशिंगटन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी बैठक के बाद राणा के प्रत्यर्पण को अंतिम मंजूरी दे दी थी। इस मंजूरी ने कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा करने और राणा को भारत लाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
/young-bharat-news/media/media_files/2025/04/09/VnZF0sevZBH9bJ0tJBEc.jpg)
मुंबई हमलों में भूमिका
तहव्वुर हुसैन राणा का जन्म पाकिस्तान में हुआ था और बाद में वह कनाडा का नागरिक बन गया। वह शिकागो में रहता था और उसकी कई व्यावसायिक रुचियां थीं। हालांकि, भारतीय और अमेरिकी जांच एजेंसियों का मानना है कि उसकी इन व्यावसायिक गतिविधियों की आड़ में वह लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठनों के साथ गहरे तौर पर जुड़ा हुआ था और उसने 26/11 के मुंबई हमलों की साजिश रचने और उसे सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
जांच के दौरान सामने आए सबूतों के अनुसार, राणा ने डेविड कोलमैन हेडली नामक एक पाकिस्तानी-अमेरिकी आतंकवादी के साथ मिलकर काम किया था। हेडली ने मुंबई में हमलों से पहले कई बार शहर का दौरा किया था और संभावित लक्ष्यों की रेकी की थी। हेडली ने अपनी रेकी गतिविधियों को छिपाने के लिए राणा की आव्रजन सेवा कंपनी का इस्तेमाल किया था। राणा ने हेडली को भारत में अपने व्यापार का प्रतिनिधि बताकर वीजा प्राप्त करने में मदद की थी।
अमेरिकी अभियोजकों ने अदालत में यह भी दावा किया था कि राणा को मुंबई हमलों की योजना के बारे में पूरी जानकारी थी और उसने जानबूझकर हेडली को अपनी आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने में सहायता की थी। हालांकि, राणा ने हमेशा इन आरोपों से इनकार किया है।
2011 में, शिकागो की एक संघीय अदालत ने राणा को डेनमार्क में एक अखबार पर आतंकवादी हमले की साजिश रचने और लश्कर-ए-तैयबा का समर्थन करने के आरोपों में दोषी ठहराया था, लेकिन उसे मुंबई हमलों में सीधे तौर पर शामिल होने के आरोप से बरी कर दिया गया था। हालांकि, अमेरिकी अदालत ने यह माना था कि राणा जानता था कि हेडली लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा हुआ था और उसने उसकी मदद की थी।
भारत ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि राणा 26/11 के मुंबई हमलों की साजिश में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी था और उसे इस जघन्य अपराध के लिए भारत में न्याय का सामना करना चाहिए। भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी ताकि राणा का प्रत्यर्पण सुनिश्चित किया जा सके।
मुंबई हमले का एक दर्दनाक अध्याय
26 नवंबर 2008 को, लश्कर-ए-तैयबा के दस आतंकवादियों ने समुद्र के रास्ते मुंबई में प्रवेश किया और शहर के कई प्रमुख स्थानों पर अंधाधुंध गोलीबारी और बम विस्फोट किए। इन स्थानों में छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस रेलवे स्टेशन, ताज महल पैलेस होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल, लियोपोल्ड कैफे, कामा अस्पताल और यहूदी केंद्र नरीमन हाउस शामिल थे।
तीन दिनों तक चले इस खूनी तांडव में 157 निर्दोष लोग मारे गए और 300 से अधिक घायल हो गए। सुरक्षा बलों ने नौ आतंकवादियों को मार गिराया, जबकि एक आतंकवादी, अजमल कसाब, को जिंदा पकड़ लिया गया। बाद में कसाब को भारतीय अदालत ने दोषी ठहराया और उसे फांसी दी गई।
मुंबई हमलों ने न केवल भारत को बल्कि पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया था। इन हमलों ने सीमा पार आतंकवाद के खतरे और उससे निपटने की आवश्यकता को उजागर किया था। भारत ने लगातार पाकिस्तान पर इन हमलों के साजिशकर्ताओं और समर्थकों को सुरक्षित पनाहगाह देने का आरोप लगाया है।
प्रत्यर्पण की प्रक्रिया और आगे की राह
तहव्वुर राणा का भारत प्रत्यर्पण एक लंबी और जटिल कानूनी प्रक्रिया का परिणाम है। भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ प्रत्यर्पण संधि के तहत राणा के प्रत्यर्पण का अनुरोध किया था। अमेरिकी कानून के तहत, प्रत्यर्पण के लिए यह साबित करना आवश्यक है कि जिस व्यक्ति का प्रत्यर्पण मांगा जा रहा है, उसने उस देश में ऐसा अपराध किया है जो अमेरिका में भी अपराध माना जाता है।
अमेरिकी अदालतों ने इस मामले की कई स्तरों पर सुनवाई की और अंततः भारत के पक्ष में फैसला सुनाया। अमेरिकी अदालतों ने माना कि भारत के पास राणा के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत मौजूद हैं।
अब जब राणा को भारत लाया जा रहा है, तो उसे भारतीय कानून के तहत न्याय का सामना करना होगा। एनआईए उससे गहन पूछताछ करेगी ताकि हमलों की साजिश के विभिन्न पहलुओं, उसमें उसकी भूमिका और अन्य संभावित संलिप्त लोगों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त की जा सके। इसके बाद, उसके खिलाफ भारतीय अदालत में मुकदमा चलेगा।
यह घटनाक्रम 26/11 के पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने इन हमलों के साजिशकर्ताओं को सजा दिलाने के लिए वर्षों तक इंतजार किया है। राणा का प्रत्यर्पण यह उम्मीद जगाता है कि इस जघन्य अपराध के सभी दोषियों को कानून के कटघरे में लाया जाएगा।
हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कानूनी प्रक्रिया अभी भी लंबी चल सकती है। राणा के पास भारतीय अदालतों में भी अपनी बेगुनाही साबित करने और कानूनी चुनौतियों का सहारा लेने का अधिकार होगा।
मुंबई आतंकवादी हमलों के पीड़ितों के लिए न्याय...
तहव्वुर राणा का भारत प्रत्यर्पण 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमलों के पीड़ितों के लिए न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह भारत के आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ भी है। यह घटनाक्रम यह संदेश देता है कि आतंकवादियों और उनके समर्थकों को उनके किए की सजा जरूर मिलेगी, चाहे वे कहीं भी छिपे हों।
एनआईए अब राणा से पूछताछ करेगी और उसके खिलाफ मजबूत सबूत इकट्ठा करने की कोशिश करेगी ताकि उसे भारतीय अदालत में दोषी ठहराया जा सके। पूरे देश की निगाहें इस मामले पर टिकी रहेंगी, क्योंकि यह न केवल 26/11 के पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करने बल्कि सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ भारत के दृढ़ संकल्प को भी प्रदर्शित करने वाला है।