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Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन ब्यूरोः राष्ट्रपति के 14 सवालों को लेकर सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के सामने सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी हत्थे से उखड़ गए। वो खफा थे दूसरे एडवोकेट हरीश साल्वी के साथ सालिसिटर जनरल तुषार मेहता की बात पर।
दरअसल, सिंघवी को गुस्सा तब आया जब वो सीजेआई बीआर गवई की अगुवाई वाली बेंच के सामने अपनी बात रख रहे थे। उन्होंने 26 अगस्त को हरीश साल्वी की उस बात को लेकर गुस्सा जताया जिसमें उन्होंने कहा था कि राज्यपाल को मनी बिल रोकने का भी अधिकार है। साल्वी इस मामले में महाराष्ट्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
सिंघवी बोले- ऐसे तो गवर्नर हो जाएंगे सुपर चीफ मिनिस्टर
सिंघवी ने आग बबूला होते हुए कहा कि साल्वी की बात को मानें तो गवर्नर का मतलब सुपर चीफ मिनिस्टर हो जाता है। उनका कहना था कि ऐसे में चुनी हुई सरकार के क्या मायने रह जाते हैं। सिंघवी तमिलनाडु की एमके स्टालिन की सरकार की तरफ से पैरवी कर रहे थे। उनका कहना था कि कोर्ट अगर साल्वी की इस बात को मान लेते है कि गवर्नर्स को मनी बिल रोकने का भी अधिकार है तो लोकतंत्र कहां बचा।
एसजी तुषार मेहता के इस तर्क के जवाब में कि अनुच्छेद 207 मनी बिलों पर लागू होगा, (जो राज्यपाल की सिफारिश पर प्रस्तुत किए जाते हैं और इसलिए स्वीकृति रोकने का प्रश्न ही नहीं उठता), सिंघवी ने कहा कि अनुच्छेद 207 का उद्देश्य निजी सदस्यों द्वारा पारित मनी बिल्स को रोकना है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्यपाल मनी बिल्स के मामलों में भी मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे होते हैं। सिंघवी ने यह भी पूछा कि क्या संविधान में कहीं भी यह लिखा है कि किसी विधेयक पर अंतिम निर्णय राज्यपाल का होगा, न कि निर्वाचित सरकार का।
राष्ट्रपति के 14 सवालों पर सुनवाई कर रहा है सुप्रीम कोर्ट
संवैधानिक बेंच की अगुवाई सीजेआई बीआर गवई कर रहे हैं। बेंच में उनके अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस चंदूरकर शामिल हैं। सीजेआई ने इस बेंच का गठन उस घटनाक्रम के बाद किया जिसमें राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे थे। राष्ट्रपति ने ये सवाल तब सुप्रीम कोर्ट भेजे जब टाप कोर्ट ने एक ऐसा फैसला दिया जिसमें राज्यपाल के साथ राष्ट्रपति को एक आदेश के जरिये समयबद्ध किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर पूछे गए थे सवाल
सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने तमिलनाडु के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि अगर विधानसभा से पारित बिलों को राज्यपाल या राष्ट्रपति एक तय समय के बाद मंजूरी नहीं देते हैं तो उन्हें राज्य को सूचित करना होगा। टाप कोर्ट ने ये भी कहा कि राज्यपाल या राष्ट्रपति अनिश्चित काल के लिए बिलों को लंबित नहीं कर सकते। वो तय समय सीमा के भीतर फैसला नहीं लेते हैं तो बिलों को स्वीकृत मान लिया जाएगा। राष्ट्रपति ने संविधान का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट से पूछा था कि ये कहां लिखा है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल को सुप्रीम कोर्ट आदेश जारी कर सकता है।
Supreme Court, Constitutional Bench, Abhishek Manu Singhvi, Harish Salvi