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SFC Report: क्या हम 2025 की भीषण गर्मी झेल पाएंगे? पढ़िए कैसे जिंदगी और आजीविका पर खतरे की घंटी ?

भारत के बड़े शहरों में बढ़ती गर्मी से निपटने के तात्कालिक उपाय पर्याप्त नहीं हैं, दीर्घकालिक समाधान की कमी से भविष्य में गंभीर स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है।

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Ajit Kumar Pandey
SFC REPORT

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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क ।

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Mausam ka Haal: भारत के बड़े शहरों में बढ़ती गर्मी से निपटने के लिए जो कदम उठाए जा रहे हैं, वे बस तात्कालिक राहत तक सीमित हैं। सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलैबोरेटिव (SFC) की एक नई रिपोर्ट बताती है कि दीर्घकालिक समाधान, यानी आने वाले वर्षों में बढ़ती गर्मी (Heat Wave) से बचाव के ठोस उपाय, या तो हैं ही नहीं, या फिर बेहद कमज़ोर हैं।

एसएफसी के विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अब भी सिर्फ तात्कालिक राहत तक सीमित रहा गया, तो आने वाले वर्षों में हालात बहुत खराब हो सकते हैं। गर्मी से बचने के लिए तुरंत और लंबे समय तक असर दिखाने वाले कदम उठाने होंगे, नहीं तो लोगों की ज़िंदगी और आजीविका दोनों खतरे में पड़ जाएंगी।

एक चौंकाने वाली रिपोर्ट

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हाल ही में सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलैबोरेटिव (एसएफसी) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में भारत के नौ प्रमुख शहरों में गर्मी से निपटने के प्रयासों का विश्लेषण किया गया। यह विश्लेषण चौंकाने वाला है क्योंकि रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि वर्तमान में शहरों द्वारा उठाए जा रहे कदम दीर्घकालिक समाधान प्रदान करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

नौ शहरों की पड़ताल, चिंताजनक हालात

बेंगलुरु, दिल्ली, फरीदाबाद, ग्वालियर, कोटा, लुधियाना, मेरठ, मुंबई और सूरत में गर्मी से बचने के उपायों का आकलन किया गया। रिपोर्ट बताती है कि शहरों में फिलहाल जो कदम उठाए जा रहे हैं, वे सिर्फ गर्मी के मौसम में तात्कालिक राहत देने तक सीमित हैं- जैसे पीने के पानी की उपलब्धता बढ़ाना, काम के घंटे बदलना और अस्पतालों की तैयारियों में सुधार करना। लेकिन हीट एक्शन प्लान (HAP) जैसी दीर्घकालिक योजनाओं को न तो सही तरीके से लागू किया जा रहा है और न ही उन पर ध्यान दिया जा रहा है।

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दीर्घकालिक समाधान क्यों ज़रूरी हैं ?

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि आने वाले सालों में हीटवेव का असर और ज़्यादा बढ़ेगा। अगर शहरी योजना में बदलाव, हरे-भरे इलाकों की संख्या बढ़ाने, और गरीब व कमजोर आबादी की सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया गया, तो गर्मी के कारण होने वाली मौतों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हो सकती है।

सरकार की बड़ी चूक ?

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शोधकर्ताओं का कहना है कि नगर निकायों और सरकारी एजेंसियों के बीच सही तालमेल नहीं है। गर्मी से बचाव के लिए जो योजनाएं बन भी रही हैं, वे सिर्फ कागज़ों पर हैं और उन पर अमल ठीक से नहीं हो रहा है।

अब क्या करना चाहिए ? रिपोर्ट में कुछ अहम सुझाव दिए गए हैं

  • शहरों की योजना इस तरह बने कि वहां गर्मी का असर कम हो, यानी पेड़ों और छायादार इलाकों को बढ़ावा दिया जाए और गर्मी रोकने वाले निर्माण किए जाएं।
  • आपदा प्रबंधन कोष से हीटवेव से बचाव के लिए पैसे दिए जाएं।
  • 'हीट ऑफिसर' की नियुक्ति की जाए, ताकि कोई ज़िम्मेदार व्यक्ति गर्मी (heat wave) से बचाव की योजनाओं को सही से लागू कर सके।
  • शहरों के नक्शे और योजनाओं को इस आधार पर तैयार किया जाए कि कौन से इलाके सबसे ज़्यादा गर्मी झेल रहे हैं और वहां तुरंत ठोस कदम उठाए जाएं।

यह रिपोर्ट हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारे शहर भविष्य में गर्मी की लहरों का सामना करने के लिए तैयार हैं। यह हमें यह भी बताती है कि हमें तत्काल और दीर्घकालिक दोनों तरह के समाधानों की आवश्यकता है ताकि हम अपने शहरों को रहने के लिए सुरक्षित और टिकाऊ बना सकें।

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