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धोखे से की गई फोन रिकार्डिंंग को सुप्रीम कोर्ट ने माना तलाक के लिए अहम सबूत

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अगर शादी इस मुकाम पर पहुंच गई है कि पति-पत्नी एक-दूसरे की जासूसी कर रहे हैं तो यह अपने आप में एक टूटे हुए रिश्ते का लक्षण है।

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Shailendra Gautam
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कोर्ट की डीएम को चेतावनी Photograph: (YBN)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि पति पत्नी धोखे से एक दूसरे की फोन रिकार्डिंग करते हैं तो इसे तलाक के मामलों के अहम सबूत माना जाए। शीर्ष अदालत ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि पति-पत्नी की टेलीफोन बातचीत को गुप्त रूप से रिकॉर्ड करना निजता का उल्लंघन है। इसे पारिवारिक अदालत में सबूत के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता। बेंच में जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल थे।

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सुप्रीम कोर्ट बोला- जब रिश्ता इतना खराब हो चुका है तो जासूसी से परहेज क्यों

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने आदेश में कहा कि कुछ दलीलों में यह तर्क दिया गया है कि इस तरह की बातचीत को सबूत के तौर पर स्वीकार करने से घरेलू सौहार्द और वैवाहिक संबंध खतरे में पड़ेंगे। पति-पत्नी की जासूसी को बढ़ावा मिलेगा। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि हमें नहीं लगता कि यह तर्क माना जाने लायक है। अगर शादी इस मुकाम पर पहुंच गई है कि पति-पत्नी एक-दूसरे की जासूसी कर रहे हैं तो यह अपने आप में एक टूटे हुए रिश्ते का लक्षण है। यह उनके बीच विश्वास की कमी को दर्शाता है। 

भटिंडा की अदालत ने रिकार्डिंग को माना था सबूत, हाईकोर्ट ने खारिज किया

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यह मामला पंजाब के भटिंडा की एक पारिवारिक अदालत में आया था। यह हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत तलाक की कार्यवाही से जुड़ा है। पति ने अपनी पत्नी पर क्रूरता का आरोप लगाया। अपने आरोप को साबित करने के लिए उसने रिकॉर्ड की गई फोन बातचीत का हवाला दिया। पारिवारिक अदालत ने इन रिकॉर्डिंग वाली एक सीडी को सबूत के तौर पर स्वीकार कर लिया था। पत्नी ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। उसका तर्क था कि कॉल उसकी सहमति के बिना रिकॉर्ड की गई थीं। उन्हें सबूत के तौर पर स्वीकार करना निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा। Abhijeet Sheth appointed NMC Chairman, NMC corruption case, New NMC chief, National Medical Commission controversy, Medical education regulatory body India

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सहमति जताते हुए पारिवारिक अदालत के आदेश को रद्द कर दिया। बैंच ने कहा कि कॉल पर दिए गए जवाब और जिन परिस्थितियों में वे दिए गए थे, उनका पता नहीं लगाया जा सका। उच्च न्यायालय ने कहा कि पति-पत्नी इस बात पर विचार किए बिना खुलकर बात करते हैं कि अदालत में उनकी बातों की जांच की जा सकती है। पति ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसने अब उसके पक्ष में फैसला सुनाया है। Indian Judiciary not present in content

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