नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । क्या पेंशन में भेदभाव अब इतिहास बन जाएगा? सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को दी बड़ी राहत। अब तारीख मायने नहीं रखेगी, सभी को मिलेगा पूरा हक। संविधान की समानता की भावना को किया मजबूत। फैसले से हज़ारों रिटायर्ड जजों को मिलेगी राहत की सांस। आइए जानें सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला...
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि सभी सेवानिवृत्त उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश- चाहे वे किसी भी तारीख को नियुक्त हुए हों- अब पूर्ण पेंशन पाने के हकदार होंगे। अदालत ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार से जोड़ा है और कहा है कि पेंशन के मामले में कोई भेदभाव असंवैधानिक होगा। इससे देशभर के हजारों रिटायर्ड जजों को बड़ी राहत मिलेगी।
अब तारीख नहीं, सेवा का दर्जा मायने रखेगा
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने स्पष्ट कर दिया है कि उच्च न्यायालयों के अतिरिक्त न्यायाधीश भी स्थायी न्यायाधीशों के समान पूर्ण पेंशन के पात्र हैं। यह फैसला विशेष रूप से उन जजों के लिए राहत लेकर आया है जो किसी कारणवश स्थायी नियुक्ति से पहले ही सेवानिवृत्त हो गए थे।
संविधान के अनुच्छेद 14 को माना आधार
सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि पेंशन लाभ में किसी तरह का भेदभाव संविधान के अनुच्छेद 14 — कानून के समक्ष समानता- का उल्लंघन होगा। अदालत ने कहा कि सेवा की तिथि के आधार पर अधिकारों में फर्क करना न्यायिक मूल्यों के खिलाफ है।
पेंशन समानता की दिशा में बड़ा कदम
यह फैसला सिर्फ न्यायाधीशों के लिए नहीं, बल्कि भारत की न्यायिक प्रणाली की गरिमा को बनाए रखने के लिए भी महत्वपूर्ण है। अदालत ने कहा कि सेवानिवृत्त अतिरिक्त न्यायाधीशों को स्थायी जजों की तरह ही पूरा सम्मान और वित्तीय सुरक्षा मिलनी चाहिए।
हज़ारों सेवानिवृत्त जजों को फायदा
देशभर में ऐसे कई रिटायर्ड जज हैं जिन्होंने वर्षों सेवा की लेकिन स्थायी नियुक्ति नहीं मिल पाई। अब उन्हें भी वही पेंशन लाभ मिलेगा जो स्थायी जजों को मिलता है। यह फैसला उनके लिए न केवल आर्थिक, बल्कि मानसिक राहत भी लाएगा।
क्या सरकार अब बदलेगी नियमावली?
इस फैसले के बाद केंद्र सरकार और संबंधित न्यायिक विभागों को अब अपने नियमों में बदलाव करना पड़ सकता है ताकि इसे लागू किया जा सके। यह फैसला भविष्य में जजों की नियुक्तियों और सेवा संरचना पर भी असर डाल सकता है।
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