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जज ने धमकाया था पुलिस को, हाईकोर्ट ने भेज दिया घर

सिविल जज ने अक्टूबर 2012 में उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने के आदेश को चुनौती दी थी। ये फैसला तब दिया गया था जब एक जांच में पाया गया कि उन्होंने एक पुलिस निरीक्षक को धमकाया था।

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Shailendra Gautam
Judge

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक सिविल जज को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने के फैसले को बरकरार रखा है। उस पर पुलिस को धमकाकर पुलिस जांच में हस्तक्षेप करने का आरोप है। 

सिविल जज ने अक्टूबर 2012 में उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने के आदेश को चुनौती दी थी। ये फैसला तब दिया गया था जब एक जांच में पाया गया कि उन्होंने एक पुलिस निरीक्षक को धमकाया था। सिंगल जज से याचिका खारिज किए जाने के बाद सिविल जज (अपीलकर्ता) ने हाईकोर्ट की एक डबल बेंच के समक्ष अपील दायर की थी।

हाईकोर्ट की डबल बेंच ने कहा- नौकरी से बाहर रहेगा जज

19 अगस्त को, चीफ जस्टिस विभु बाखरू और जस्टिस सीएम जोशी की बेंच ने यह पाते हुए कि अपीलकर्ता के खिलाफ की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई में कोई खामी नहीं है, इस अपील को खारिज कर दिया।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वह ऐसे मामलों में तब तक हस्तक्षेप नहीं कर सकता जब तक यह सिद्ध न हो जाए कि सिंगल जज का फैसला गलत था। पूर्व सिविल जज की अपील को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि इस मामले में ऐसा कोई आधार नहीं बनता। हाईकोर्ट ने कहा कि हमें न तो अपनाई गई प्रक्रिया में कोई कमी नजर आती है और न ही यह लगता है कि दी गई सजा ज्यादा है।

1995 में जज बने थे आरोपी गंगाधर

नौकरी से हटाए गए सिविल जज केएम गंगाधर, 1995 में न्यायिक सेवा में शामिल हुए थे। बाद में उन्हें सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के रूप में पदोन्नत किया गया था। उनके खिलाफ एक्शन डॉ. बी इंदुमति के आरोपों के बाद लिया गया था। उन्होंने दावा किया था कि डॉ. इंदुमति की तरफ से जज की बहन के खिलाफ दायर की गई शिकायत के बाद सिविल जज ने पुलिस जांच में हस्तक्षेप किया था।

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डॉ. इंदुमति ने दावा किया कि सिविल जज ने पुलिस अधिकारियों को धमकी दी थी कि अगर उन्होंने उनकी बहन को पुलिस स्टेशन बुलाया तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। इन आरोपों की जांच की गई, जिसमें शिकायतकर्ता और एक पुलिस निरीक्षक ने गवाही दी। आरोप सिद्ध पाए गए। जांच के इन निष्कर्षों के आधार पर कर्नाटक सिविल सेवा नियम, 1957 के तहत सिविल जज को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई।

आरोपी सिविल जज ने पुलिस को धमकी देने से इनकार किया। उन्होंने तर्क दिया कि उन्होंने केवल पुलिस स्टेशन को फोन करके अधिकारियों से अपनी बहन को परेशान न करने का अनुरोध किया था।

फोन करके पुलिस को दी थी गाली

हालांकि, अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने इस दावे को खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि ऐसे सबूत मौजूद हैं जो दर्शाते हैं कि उन्होंने वास्तव में जांच के दौरान पुलिस को धमकी दी थी। उन्होंने 20 अगस्त, 2007 को 10 से 15 मिनट तक चली एक फोन कॉल के दौरान पुलिस को गाली दी, जिसके कारण उन्हें सेवा से अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई।

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