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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः अहमदाबाद में गुरुवार को एयर इंडिया के विमान की घातक दुर्घटना ने 1988 में गुजरात शहर में हुई एक बड़ी हवाई दुर्घटना की यादें ताजा कर दी हैं। उस साल अक्टूबर की एक धुंध भरी सुबह इंडियन एयरलाइंस की उड़ान 113, बोइंग 737, अहमदाबाद हवाई अड्डे पर उतरने की कोशिश करते समय दुर्घटना का शिकार हो गई थी। यह विमान रनवे से सिर्फ 2.5 किलोमीटर की दूरी पर दुर्घटनाग्रस्त हुआ था, जिसमें सवार 135 लोगों में से 133 की जान चली गई।
मुंबई से अहमदाबाद आ रही थी फ्लाइट, धुंध बन गई काल
विमान ने मुंबई से अहमदाबाद के लिए उड़ान भरी थी। दिक्कत तब हुई जब उसे खराब मौसम का सामना करना पड़ा। धुंध के कारण विजिबिलिटी केवल 1.2 मील रह गई थी। ये पायलटों के लिए भी चुनौतीपूर्ण स्थिति थी। इसे नेविगेट करने के लिए चालक दल ने एक लोकलाइजर-डीएमई तरीका अपनाया। (एक ऐसी तकनीक जो रेडियो सिग्नल का उपयोग करके विमान को रनवे पर ले जाती है) इसका इस्तेमाल तब होता है जब पायलट केवल अपनी आंखों पर भरोसा नहीं कर सकते। सुबह 6.41 बजे उन्होंने अहमदाबाद VOR पर एक नेविगेशन बीकन के जरिए अपनी स्थिति को को बताया, जिससे पता चला कि वो लैंडिंग के निर्देशों का पालन कर रहे थे। वह कॉल उनकी आखिरी कॉल थी। कुछ ही देर बाद दुर्घटना घटी। विमान पेड़ों से टकराया और हवाई अड्डे के नजदीक चिलोदा कोटरपुर गांव के पास बिजली के खंभे से जा टकराया। इसके बाद यह एक धान के खेत में गिरकर आग का गोला बन गया।
135 यात्रियों में से केवल दो बचे थे जिंदा
भीषण हादसे में विमान जलकर खाक हो गया। मलबे के बीच से केवल दो लोग ही जीवित बचे। एक अशोक अग्रवाल, एक कपड़ा व्यवसायी और दूसरे विनोद त्रिपाठी, गुजरात विद्यापीठ के पूर्व कुलपति। दोनों को गंभीर चोटें आईं। अग्रवाल के लिए यह क्षति और भी गहरी थी। उनकी पत्नी और नवजात बेटी की दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उन्होंने कई सालों तक मैमोरी लाससे जूझते हुए दुनिया को अलविदा कह दिया।
जानिए क्या वजहें थीं हादसे की
उधर हादसे की जांच टीम ने कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर की पड़ताल की। रिकॉर्डिंग ने एक परेशान करने वाली तस्वीर पेश की। पायलट धुंध के बीच रनवे को खोजने के लिए जोर लगा रहे थे। विमान की ऊंचाई पर नजर रखने से उनका ध्यान भटक गया था। उन्होंने टावर से लैंडिंग क्लीयरेंस का अनुरोध करने के साथ कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। आधिकारिक जांच ने दुर्घटना का कारण पायलट की गलती को बताया। लेकिन दोष यहीं तक सीमित नहीं था। रिपोर्ट में एयर ट्रैफिक कंट्रोल को भी दोषी ठहराया गया। उन्होंने स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया कि दृश्यता कितनी खराब हो गई थी और वो रनवे विज़ुअल रेंज (आरवीआर) के बारे में पायलटों को अपडेट करने में विफल रहे।
इंडियन एयरलाइंस को देना पड़ा था 90 फीसदी मुआवजा
जस्टिस माथुर आयोग की गहन जांच में कई कमियां सामने आईं। इसने निष्कर्ष निकाला कि इंडियन एयरलाइंस और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) दोनों ही इसके लिए जिम्मेदार हैं। यह संयुक्त लापरवाही का मामला है। इस निष्कर्ष ने पीड़ितों और उनके परिवारों को कानूनी संबल दिया। उसके बाद पीड़ितों के परिजनों ने जवाबदेही और मुआवजे की मांग की। 2003 में एक सिविल कोर्ट ने प्रभावित लोगों को ब्याज सहित भुगतान का आदेश दिया। कई साल बाद गुजरात हाई कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए ब्याज दर बढ़ा दी। 90 फीसदी देनदारी इंडियन एयरलाइंस पर डाली गई जबकि बाकी का 10 प्रतिशत एएआई को देना था।
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