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"चीन अब भारत का दीवाना! अमेरिकी टैरिफ के बाद क्यों बढ़ा ड्रैगन का 'मेक इन इंडिया' प्यार?"

अमेरिकी टैरिफ के दबाव में चीन भारत की ओर रुख कर रहा है, जिससे भारतीय निर्यात को चीनी बाजार में बढ़ावा देने का मौका मिल रहा है। पढ़ें क्या यह भारत के लिए वैश्विक व्यापार में उभरने का ऐतिहासिक मौका है, या फिर चीन की चतुर चाल का हिस्सा?

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Ajit Kumar Pandey
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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क । अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की "टैरिफ तोप" ने चीन की आर्थिक ताकत को हिलाकर रख दिया है। 245% तक बढ़े टैरिफ के चलते अब ड्रैगन मजबूर होकर भारत की ओर देख रहा है! भारत में चीनी राजदूत जू फेइहोंग ने हाल ही में एक बयान देकर सनसनी फैला दी- "हम भारत के प्रीमियम निर्यात को चीन के बाजार में बढ़ावा देना चाहते हैं!"

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लेकिन सवाल यह है- क्या यह चीन की मजबूरी है या कोई मास्टरप्लान? क्या भारत को चीन का यह "शुगरकोटेड ऑफर" स्वीकार करना चाहिए, या फिर सावधानी बरतनी चाहिए ? क्या यह "आत्मनिर्भर भारत" के लिए गोल्डेन चांस है, या एक छुपा हुआ जाल? लेकिन सवाल यह है कि क्या यह भारत के लिए वैश्विक व्यापार में उभरने का ऐतिहासिक मौका है, या फिर चीन की चतुर चाल का हिस्सा? आइए, इसका गहराई से विश्लेषण करें और जानें कि भारत को क्या करना चाहिए!

अचानक चीन भारत की ओर झुका, क्यों बदल गए ड्रैगन के सुर ताल ?

वित्त वर्ष 2024 में भारत से चीन को मिर्च, लौह अयस्क, और सूती धागे के निर्यात में क्रमशः 17%, 160%, और 240% की वृद्धि दर्ज की गई। जू फेइहोंग ने सुझाव दिया कि भारतीय कंपनियां चाइना इंटरनेशनल इम्पोर्ट एक्सपो (CIIE), चाइना-साउथ एशिया एक्सपो, और चाइना इंटरनेशनल कंज्यूमर प्रोडक्ट्स एक्सपो जैसे मंचों का उपयोग करके चीनी उपभोक्ताओं तक पहुंच सकती हैं।

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इसके अलावा, चीन ने भारतीय यात्रियों के लिए वीजा प्रक्रिया को सरल किया है, जिसमें 2025 में 85,000 से अधिक वीजा जारी किए गए, और बायोमेट्रिक डेटा की आवश्यकता को हटा दिया गया।

हालांकि, भारत और चीन के बीच व्यापार घाटा 99.2 बिलियन डॉलर के करीब है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है। चीन ने इस घाटे को कम करने की इच्छा जताई है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह कितना व्यावहारिक होगा।

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार, भारत की चीन पर औद्योगिक आयात में निर्भरता और कम निर्यात के कारण व्यापार असंतुलन को दूर करने के लिए दीर्घकालिक नीतियों की आवश्यकता होगी। tarrif | donald trump | america | china | Make in India |

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ट्रंप के टैरिफ से तड़फ रहे चीनी व्यापारी

ट्रंप प्रशासन ने चीनी आयात पर 245% तक टैरिफ लगाया है, जिसमें 125% पारस्परिक टैरिफ और फेंटानाइल संकट से जुड़ा 20% अतिरिक्त शुल्क शामिल है। जवाब में, चीन ने अमेरिकी उत्पादों पर 125% तक टैरिफ लगाया और कुछ सामग्रियों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए।

इस व्यापार युद्ध ने चीन की अर्थव्यवस्था को दबाव में ला दिया है, क्योंकि निर्यात इसकी जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा है। मूडीज रेटिंग्स ने चेतावनी दी है कि यह सुस्ती एशियाई क्षेत्र की वृद्धि के लिए नकारात्मक जोखिम पैदा कर सकती है।

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इस दबाव ने चीन को भारत जैसे वैकल्पिक व्यापारिक साझेदारों की ओर धकेल दिया है। चीनी दूतावास के प्रवक्ता यू जिंग ने कहा कि भारत और चीन को अमेरिकी टैरिफ के "दुरुपयोग" के खिलाफ एकजुट होना चाहिए, क्योंकि दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध पारस्परिक लाभ पर आधारित हैं।

भारत के लिए अवसर और चुनौतियां

कैसे बनेगा अवसर...

निर्यात में वृद्धि: चीन का विशाल उपभोक्ता बाजार भारतीय प्रीमियम उत्पादों, जैसे कृषि उत्पाद, वस्त्र, और खनिज, के लिए नए अवसर खोल सकता है।

मैन्युफैक्चरिंग हब: भारत अमेरिकी ब्रांड्स के लिए मैन्युफैक्चरिंग हब बन सकता है, जो चीन से बाहर निकलना चाहते हैं।

कूटनीतिक लाभ: बेहतर भारत-चीन संबंध क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा दे सकते हैं, खासकर लद्दाख में हाल के गश्त समझौतों के बाद।

कैसे बनेंगी चुनौतियां...

व्यापार घाटा: भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 2023-24 में 101.74 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। बिना ठोस नीतियों के, यह और बढ़ सकता है।

चीन की मंशा: 2020 के गलवान संघर्ष के बाद भारत ने चीनी निवेश और ऐप्स पर प्रतिबंध लगाए। चीन की वर्तमान दोस्ती रणनीतिक हो सकती है, न कि दीर्घकालिक।

अमेरिका के साथ तनाव: यदि भारत चीन के साथ बहुत करीब जाता है, तो यह अमेरिका-भारत संबंधों, विशेष रूप से क्वाड जैसे गठबंधनों को प्रभावित कर सकता है।

चालबाज ड्रैगन या वास्तविक अवसर ?

चीन का यह नया रुख ट्रंप के टैरिफ दबाव का प्रत्यक्ष परिणाम है। उसकी अर्थव्यवस्था को अमेरिकी बाजार पर निर्भरता कम करने के लिए नए साझेदारों की जरूरत है, और भारत, अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था और विशाल बाजार के साथ, एक आकर्षक विकल्प है।

हालांकि, 2020 के सीमा विवाद और चीनी निवेश पर भारत की सख्ती को देखते हुए, यह सवाल उठता है कि क्या यह ड्रैगन की चाल है। चीन पहले भी भारत के साथ व्यापारिक असंतुलन को अनदेखा कर चुका है और उसकी कूटनीति अक्सर स्वहित पर केंद्रित रही है। फिर भी, वैश्विक व्यापार की मौजूदा उथल-पुथल में भारत के लिए यह एक रणनीतिक अवसर हो सकता है।

भारत सरकार को क्या करना चाहिए?

निर्यात बढ़ाने की रणनीति: भारत को प्रीमियम उत्पादों, जैसे जैविक खाद्य पदार्थ, हस्तशिल्प, और उच्च-गुणवत्ता वाले वस्त्र, के निर्यात को बढ़ावा देना चाहिए। CIIE जैसे मंचों में भारतीय कंपनियों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी दी जा सकती है।

व्यापार घाटे पर नजर: चीन के साथ व्यापार समझौतों में पारदर्शिता और पारस्परिक लाभ सुनिश्चित करना होगा। आयात पर निर्भरता कम करने के लिए भारत को घरेलू विनिर्माण को मजबूत करना चाहिए।

अमेरिका के साथ संतुलन: भारत को अमेरिका के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखते हुए चीन के साथ व्यापार बढ़ाना चाहिए। क्वाड और अन्य गठबंधनों में भारत की भूमिका को प्राथमिकता देनी होगी।

सावधानीपूर्वक कूटनीति: चीन के निवेश प्रस्तावों की गहन जांच की जानी चाहिए। राष्ट्रीय सुरक्षा और डेटा गोपनीयता को प्राथमिकता देनी होगी।

फायदा तो है, लेकिन सावधानी बहुत जरूरी

चीन की यह पेशकश भारत के लिए एक आर्थिक अवसर हो सकती है, खासकर निर्यात और मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में। यह भारत को वैश्विक व्यापार में एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में स्थापित कर सकता है। हालांकि, चीन की ऐतिहासिक चालबाजियों और व्यापार घाटे की समस्या को देखते हुए, भारत को सावधानी बरतनी होगी।

एक संतुलित दृष्टिकोण, जिसमें निर्यात को बढ़ावा देना, घरेलू उद्योगों को मजबूत करना, और अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखना शामिल है, भारत को इस अवसर का अधिकतम लाभ उठाने में मदद करेगा। ड्रैगन के साथ नाचने का समय है, लेकिन अपने कदमों को सावधानी से रखना होगा।

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