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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क । भारत की अंतरिक्ष यात्रा एक बार फिर सुर्खियों में है, क्योंकि भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला जल्द ही अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) के लिए उड़ान भरने वाले हैं।
यह ऐतिहासिक मिशन, जिसे एक्सियॉम मिशन-4 (एएक्स-4) के नाम से जाना जाता है, न केवल भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा, बल्कि एक अनोखे सूक्ष्मजीव, जिसे वॉटर बियर या टार्डिग्रेड कहा जाता है, को भी अंतरिक्ष में ले जाएगा। यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), नासा, और निजी कंपनी एक्सियॉम स्पेस के बीच एक महत्वपूर्ण सहयोग का प्रतीक है।
शुभांशु शुक्ला: भारत के नए अंतरिक्ष नायक
शुभांशु शुक्ला, जो भारतीय वायुसेना के एक अनुभवी टेस्ट पायलट हैं, इस मिशन के लिए चुने गए पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री हैं। 2006 में वायुसेना में शामिल होने के बाद, शुक्ला ने सुखोई-30, मिग-21, और मिग-29 जैसे लड़ाकू विमानों को 2000 घंटे से अधिक उड़ाया है। उनकी विशेषज्ञता और समर्पण ने उन्हें इसरो के मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम (एचएसपी) के लिए प्रमुख उम्मीदवार बनाया। शुक्ला न केवल एक्सियॉम मिशन-4 के पायलट होंगे, बल्कि वे भारत की पहली मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान, गगनयान मिशन, के लिए भी प्रशिक्षण ले रहे हैं, जो 2026 में होने की उम्मीद है।
शुक्ला का यह मिशन भारत के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यह 1984 में राकेश शर्मा के सोवियत सोयुज अंतरिक्ष यान से अंतरिक्ष यात्रा के बाद पहली बार होगा, जब कोई भारतीय अंतरिक्ष यात्री अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर जाएगा। शुक्ला के साथ इस मिशन में अमेरिका, हंगरी, और पोलैंड के अंतरिक्ष यात्री भी शामिल होंगे, जो इसे एक वैश्विक सहयोग का शानदार उदाहरण बनाता है।
वॉटर बियर्स: अंतरिक्ष के छोटे सुपरहीरो
इस मिशन का एक और आकर्षण है वॉटर बियर्स, जिन्हें वैज्ञानिक भाषा में टार्डिग्रेड्स कहा जाता है। ये सूक्ष्मजीव, जो आकार में आधा मिलीमीटर से भी छोटे होते हैं, अपनी अविश्वसनीय जीवटता के लिए प्रसिद्ध हैं। ये जीव अत्यधिक तापमान, रेडिएशन, और अंतरिक्ष के वैक्यूम जैसे कठोर हालातों में भी जीवित रह सकते हैं। इसरो का ‘वॉयेजर टार्डिग्रेड्स’ प्रयोग इन जीवों की अंतरिक्ष में जीवित रहने, प्रजनन करने, और जीन अभिव्यक्ति की क्षमता का अध्ययन करेगा।
यह प्रयोग इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि टार्डिग्रेड्स के डीएनए की मरम्मत और सुरक्षा की प्रक्रिया को समझने से अंतरिक्ष यात्रियों को लंबी अंतरिक्ष यात्राओं के दौरान रेडिएशन से बचाने के नए तरीके विकसित किए जा सकते हैं। इसके अलावा, यह प्रयोग जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है, जिसका लाभ पृथ्वी पर भी मिलेगा। इसरो का यह कदम भारत की वैज्ञानिक क्षमताओं को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित करता है।
मिशन का वैज्ञानिक महत्व
एक्सियॉम मिशन-4 के दौरान शुक्ला और उनकी टीम 14 दिनों तक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर रहकर विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे। इसरो द्वारा संचालित सात प्रयोगों में से कुछ प्रमुख हैं:
वॉयेजर डिस्प्लेज: इस प्रयोग में शून्य गुरुत्वाकर्षण में कंप्यूटर स्क्रीन के उपयोग से मानव मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाएगा। यह भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों में उपयोगकर्ता इंटरफेस को बेहतर बनाने में मदद करेगा।
स्पेस माइक्रोएल्गी: इसरो, नासा, और रेडवायर के सहयोग से किया जाने वाला यह प्रयोग माइक्रोएल्गी की वृद्धि, चयापचय, और आनुवंशिक गतिविधियों पर शून्य गुरुत्वाकर्षण के प्रभावों का अध्ययन करेगा। यह प्रयोग अंतरिक्ष में भोजन उत्पादन की संभावनाओं को तलाशेगा।
मानव-कंप्यूटर इंटरैक्शन: यह अध्ययन शून्य गुरुत्वाकर्षण में मानव-कंप्यूटर इंटरैक्शन को बेहतर बनाने पर केंद्रित है, ताकि अंतरिक्ष यात्रियों के लिए सुरक्षित और कुशल संचालन सुनिश्चित किया जा सके।
इनके अलावा, शुक्ला अंतरिक्ष में योग करने की योजना भी बना रहे हैं, जो न केवल उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए फायदेमंद होगा, बल्कि भारतीय संस्कृति को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित करेगा। वे अपने साथ भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली कुछ वस्तुएं भी ले जाएंगे, जो इस मिशन को और भी खास बनाएंगी।
भारत की अंतरिक्ष यात्रा में मील का पत्थर
यह मिशन भारत की अंतरिक्ष यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। 1975 में भारत के पहले उपग्रह आर्यभट्ट के प्रक्षेपण से शुरू हुई यह यात्रा अब मानव अंतरिक्ष उड़ान तक पहुंच चुकी है। इसरो का यह कदम न केवल भारत की वैज्ञानिक प्रगति को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान में भारत की बढ़ती भूमिका को भी रेखांकित करता है।
शुक्ला का यह मिशन गगनयान मिशन के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम है। गगनयान, जो भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन होगा, 2026 में लॉन्च होने की उम्मीद है। इस मिशन के लिए शुक्ला का अनुभव, विशेष रूप से प्रक्षेपण प्रोटोकॉल, शून्य गुरुत्वाकर्षण में अनुकूलन, और आपातकालीन तैयारियों में, अमूल्य होगा।
वैश्विक सहयोग और भविष्य की संभावनाएं
एक्सियॉम मिशन-4 नासा, इसरो, और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के बीच एक मजबूत साझेदारी का परिणाम है। इस मिशन का नेतृत्व नासा की पूर्व अंतरिक्ष यात्री पैगी व्हिटसन करेंगी, जबकि शुक्ला मिशन पायलट की भूमिका निभाएंगे। मिशन में पोलैंड के स्लावोस उज़नांस्की-विस्निव्स्की और हंगरी के टिबोर कपु भी शामिल होंगे। यह विविधता अंतरिक्ष अनुसंधान में वैश्विक एकता का प्रतीक है।
यह मिशन भारत के लिए कई अवसर खोलेगा। यह न केवल भारतीय वैज्ञानिकों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी क्षमताओं को प्रदर्शित करने का मौका देगा, बल्कि अगली पीढ़ी के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को भी प्रेरित करेगा। इसके अलावा, इसरो की यह उपलब्धि भारत को अंतरिक्ष पर्यटन और निजी अंतरिक्ष मिशनों के क्षेत्र में एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में स्थापित कर सकती है।
शुभांशु शुक्ला और वॉटर बियर्स की यह अंतरिक्ष यात्रा भारत के लिए गर्व का क्षण है। यह मिशन न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देगा, बल्कि भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं को भी नई दिशा देगा। शुक्ला का यह कदम न केवल उनके व्यक्तिगत समर्पण और कड़ी मेहनत का परिणाम है, बल्कि इसरो और भारत की सामूहिक उपलब्धि का भी प्रतीक है। जैसे-जैसे यह मिशन नजदीक आ रहा है, पूरी दुनिया की नजरें भारत पर टिकी हैं, जो एक बार फिर अंतरिक्ष में अपनी छाप छोड़ने के लिए तैयार है। space launch | space | Shubhanshu Shukla |