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Holi Vulgar Songs : अश्लील गानों का "रंग उतारने" को चाहिए और कड़े कानून

अश्लील गानों को बनाने का श्रेय सिर्फ भोजपुरी कलाकारों को ही नहीं बल्कि देश की लगभग सभी क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों के गीतकार, गायक को दिया जा सकता है। अश्लील गानों का चलन मौसमी नहीं है, बारहमासी है

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Jyoti Yadav
HOLI SONG
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डेस्क, वाईबीएन नेटवर्क 

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कानों को सुकुन देने वाले गाने आजकल शरीर में रोमांच और उत्तेजना पैदा कर के लिए बन रहे हैं। रोमांच पैदा करने, स्ट्रिमिंग और सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर करोड़ो व्यूज पाने की होड़ में कलाकार अश्लीलता को कब अपना लेते हैं इसकी भनक तक नहीं लगती। अश्लील गानों को बनाने का श्रेय सिर्फ भोजपुरी कलाकारों को ही नहीं बल्कि देश की लगभग सभी क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों के गीतकार, गायक को दिया जा सकता है।

अश्लील गानों का चलन मौसमी नहीं है, बारहमासी है, लेकिन होली में ऐसे गानों को गाने, उनपर ठुमके लगाने वालों की संख्या जरूर बढ़ जाती है। होली के भोजपुरी गीतों की बात करें तो उनके शीर्षक आपको आवा ना चोली में रंग डलवालो, पलंग तोड़ लागे देवरा जैसे मिल जाएंगे। वहीं हिंदी में होली के काफी प्रसिद्ध गानों में एक अंग से अंग लगाना सजन की एक लाइन है -"ऊपर -ऊपर रंग लगइओ ना करियो कुछ नीचे"। 

गानों में बढ़ती अश्लीलता को देखते हुए बिहार में यह आदेश जारी हुआ है कि सार्वजनिक रूप से अश्लील गीतों के प्रदर्शन के खिलाफ पूरी सख्ती बरती जाए। यूपी-बिहार से अक्सर ऐसे कई वीडियो सामने आते हैं जिससे प्रदेश का शर्मसार होना पड़ता है। अब सवाल पैदा होता है कि क्या यह सख्ती कारगर होगी? अभी अश्लीलता विरोधी कानून क्या है किस स्थित्ति में हैं, बेहतर स्थिति के लिए क्या प्रयास होने चाहिए? इन्हीं तमाम मुद्दों पर पूर्व न्यायधीश शैलेंद्र टंडन ने एक न्यूज चैनल को दिए अपने साक्षात्कार में अपनी राय दी है।

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अश्लील गानों पर क्या बोले शैलेंद्र टंडन पूर्व न्यायधीश 

शैलेंद्र टंडन ने इस पूरे मामले पर कहा, बिहार में अश्लील गीतों के सार्वजनिक प्रदर्शन  को रोकने की कोशिश सबका ध्यान खींच रही है, लेकिन ये कोई आश्चर्य वाली बात नहीं है। समाज का एक बड़ा तबका है, जो इसका विरोध करता है।  बिहार पुलिस अधिकारियों को भेजा गया आदेश कानून के अनुरूप है। शैलेंद्र टंडन  ने भी कहा कि कानूनी रूप से व्याख्या करते हुए यह विवाद हमेशा उठता है कि कोई शब्द किसी के लिए अश्लील हो सकता है और दूसरों को ठीक भी लग सकता है। 

अश्लीलता संबंधी मामलों मेंअदालतें उस समय के समाज में नैतिकता के पैमानों को ध्यान में रखकर किसी फैसले तक पहुंचती हैं। कई बार समाज और परिवेश के हिसाब से शब्दों के अर्थ और भाव बदल जाते हैं। ऐसे में, कानून की दृष्टि में यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि क्या अश्लील है। मिसाल के लिए, छतिया या छाती शब्द किसी के लिए अश्लील हो सकता है, लेकिन दूसरों को अश्लील नहीं लग सकता। फिर भी समग्रता में जो अश्लील सामग्री समाज को नुकसान पहुंचा सकती है या बच्चियों या महिलाओं की सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है, उस पर नकेल डालना अब बहुत जरूरी है। गौरतलब है कि फूहड़ गीतों से होने वाली अश्लीलता अब दिन पर दिन बढ़ रही है, जिससे पूरे समाज पर बुरा असर पड़ रहा है। इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव नई पीढ़ी के बच्चों और बच्चियों पर पड़ रहा है। समस्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। इसको रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने जरूरी है। 

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क्या है अश्लील गानों पर लगाम कसने वाला कानून

बता दें, पहले इंडियन पेनल कोड (आईपीसी) में अश्लीलता विरोधी धारा 294 थी, वह अब भारतीय न्याय संहिता में धारा 296 हो गई है। दोनों में कोई मौलिक परिवर्तन नहीं है। दोनों में "अश्लील" शब्द का इस्तेमाल हुआ है। इस धाराओं में अश्लील हरकत और गीत शब्द की प्रयोग किया गया है। देश में अश्लीलता कई कानूनों के तहत अपराध है।  भारतीय दंड संहिता की धारा 292 और धारा 294 में अश्लील किताबें प्रकाशित करना, अश्लील गीत गाना और सार्वजनिक स्थान पर या उसके आस-पास अश्लील हरकतें करना अपराध है। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम भी यौन रूप से स्पष्ट कृत्यों के ऑनलाइन प्रसारण या प्रकाशन को दंडित करता है। जाहिर है, बिहार पुलिस मुख्यालय के आदेश में अश्लील हरकत या गीत के सार्वजनिक प्रदर्शन को रोकने का इरादा दिखता है। 

कब- कब बनें कानून

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  1. 1895 में पहली बार सार्वजनिक स्थान पर अश्लील कृत्य-गीत के विरूद्ध धारा 294 कानून में शामिल है। 
  2. 1925 में अंग्रेजों ने इस धारा में अनैतिक और गंदी सामग्री के प्रचार-प्रसार को रोकने का प्रावधान जोड़ा। 
  3. 1964 में पहली बार आजाद भारत में उपन्यास लेडी चैटरलीज लवर संबंधित मामले की खूब चर्चा हुई। 
  4. 2024 में आईपीसी की धारा 294 को भारतीय न्याय संहिता में धारा 296 के रूप में जोड़ा गया। 

अश्लीलता को बढ़ाने में सोशल मीडिया की भूमिका

सोशल मीडिया आज के डिजिटल युग का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। हालांकि, यह सूचना, मनोरंजन और संचार के लिए एक प्रभावी मंच है, लेकिन इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी देखे गए हैं, जिनमें अश्लीलता और अनैतिक सामग्री का प्रसार शामिल है।  सोशल मीडिया प्लेटफार्म जैसे Instagram, Twitter (X), Facebook, Reddit, TikTok, और Telegram पर अश्लील सामग्री तेजी से फैलती है। एल्गोरिदम अक्सर संवेदनशील या उत्तेजक सामग्री को ज्यादा प्रमोट करते हैं, जिससे इसे व्यापक दर्शक मिलते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के एल्गोरिदम 'एंगेजमेंट बेस्ड कंटेंट प्रमोशन' पर काम करते हैं, जिसका मतलब है कि जो चीजें ज्यादा देखी जाती हैं, वे और ज्यादा लोगों को दिखाई जाती हैं। यह अश्लील सामग्री को तेजी से वायरल होने में मदद करता है। इसपर नियंत्रण के लिए जरूरी है कि  सोशल मीडिया प्लेटफार्मों द्वारा कंटेंट मॉडरेशन और स्ट्रिक्ट पॉलिसी लागू हो। सरकार और टेक कंपनियों को कानूनी प्रतिबंध और रिपोर्टिंग सिस्टम को मजबूत करना चाहिए।  

अश्लीलता के आरापों में फंसे कलाकार

 उर्दू के उर्दू के बड़े लेखक सआदत हसन मंटो बेबाक व्यक्ति थे। अपने बेबाक लेखनी के लिए उन्हें परेशानी भी झेली पड़ी। उदाहरण के लिए, मंटो को साल 1944 की प्रसिद्ध लघु कहानी बू (गंध) के लिए अदालत में घसीटा गया। अश्लील कहानियां लिखने का आरोप लगा। एक गवाह ने दावा किया कि मंटो ने एक महिला के स्तनों का वर्णन करने के लिए 'छाती' शब्द का इस्तेमाल किया है। जवाब में मंटो ने पूछा था, 'और क्या उम्मीद थी कि मैं स्तनों को मूंगफली कहूं?'इसके बाद मंटो सजा से बच गए थे। आज भी अनेक कलाकारों पर अश्लीलता के आरोप लगते हैं, पर ज्यादातर कलाकार बच निकलते हैं। मंटो कम से कम छह बार अश्लीलता के आरोपों से घिरे थे। मंटो समेत ऐसे कई लेखक हुए जो अश्लीलता के आरोपों में घिर चुके हैं। इनमें रांगेय राघव, इस्मत चुगताई, कृष्णा सोबती, राजेंद्र यादव, अली सरदार जाफरी, मनोहर श्याम जोशी जैसे कई नाम शामिल हैं। 

हनी सिंह पर सबसे ज्यादा आरोप

अपने कमबैक को लेकर दिए कई इंटरव्यू में हनी सिंह ने भले ही गानों में शराब, सेक्स जैसे शब्दों के इस्तेमाल करने से इंकार किया हो मगर उनके नए गाने मैनीयॉक के आते ही वह फिर विवादों में घिर गए। इसी के साथ हनी सिंह ऐसे कलाकार हैं, जिनपर अश्लील गीत बनाने का सबसे ज्यादा आरोप है। हनी सिंह पर साल 2013 में पहली बार अश्लीलता फैलाने का मामला दर्ज हुआ था। 

महिलाओं की भागीदारी चिंताजनक

यह भी चिंता की बात है कि अश्लील गायन या प्रदर्शन में अब भारतीय महिलाओं व लड़कियों की भागीदारी भी बढ़ती जा रही है। इसका कारण है, अब शिक्षा का प्रसार होने के साथ-साथ भारतीय महिलाएं व लड़कियां विदेशी चाल-ढाल से ज्यादा प्रभावित हो रही हैं और शीघ्र ही नाम-दाम कमा लेने की चाह रखती हैं। सामज का एक तबका फिल्मों और गानों में महिलाओं के अश्लील चित्रण से परेशान और आहत है वहीं कुछ महिलाएं खुद अपनी मर्जी से इस माया जाल में फंस रही है।

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