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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः राष्ट्रपति के 14 सवालों पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में एक अनूठा सीन देखने को मिला। दरअसल सीजेआई बीआर गवई की बेंच के सामने अपनी दलीलों पेश कर रहे सालिसिटर जनरल को लगा कि जजों की मान मुनौव्वल जरूरी है। वो मंगलवार से दलील दे रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट अपने उस फैसले को बदले जिसमें राज्यपाल और राष्ट्रपति पर बंदिशें लगाई गई थीं।
एसजी तुषार मेहता ने सीजेआई से कहा कि आप मुस्कुरा रहे हैं।
CJI ने तपाक से जवाब दिया- मैं हमेशा मुस्कुराता हूँ। मैंने कुछ नहीं कहा। हम कुछ नहीं कह सकते।
उनकी बात पर मेहता बोले- आपकी मुस्कान एक संकेत है।
CJI ने कहा कि अगर भगवान ने मुझे मुस्कान दी है तो मैं क्या करूं?
फैसला बदलने पर जोर दे रहे हैं एसजी
गवई के जवाब के बाद मेहता को एहसास हो गया कि दाल नहीं गलने वाली। दरअसल तुषार मेहता मंगलवार से दलीलें दे रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के साथ गवर्नरों को जिस तरह से समयबद्ध कर दिया है वो गलत है। उनकी दलील थी कि कोर्ट को फैसला बदलना चाहिए। लेकिन सीजेआई ने उनसे दो टूक कह दिया कि फैसला नहीं बदलेगा। उनका कहना था कि राष्ट्रपति के सवालों से उन्हें कोई गुरेज नहीं है।
राष्ट्रपति के 14 सवालों के बाद बनी थी संविधान बेंच
सीजेआई बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पीएस नरसिम्हा और अतुल एस चंदुरकर की एक संविधान बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। यह बेंच राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत दिए गए रेफरेंस पर निर्णय लेने के लिए गठित की गई थी। राष्ट्रपति संदर्भ शीर्ष अदालत के अप्रैल के उस फैसले को चुनौती देता है जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए विधेयकों पर निर्णय लेने की समय-सीमा निर्धारित की गई थी। यह भी कहा गया था कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की निष्क्रियता न्यायिक समीक्षा के अधीन है। यह संदर्भ तमिलनाडु राज्य द्वारा राज्यपाल के विरुद्ध दायर एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के फैसले के बाद आया है।
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की बेंच ने कहा कि राज्यपाल को उचित समय-सीमा के भीतर कार्य करना चाहिए। लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित करने के लिए संवैधानिक मौन का उपयोग नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 200 में कोई समय-सीमा तय नहीं है, फिर भी राज्यपाल अनिश्चितकाल तक विधानसभा में पारित बिल को नहीं लटका सकते।
अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति की शक्तियों के संबंध में अदालत ने कहा कि उनका निर्णय लेना न्यायिक जांच से परे नहीं है। यह तीन महीने के भीतर होना चाहिए। अगर इससे ज्यादा देरी होती है तो उचित कारण दर्ज करके संबंधित राज्य को सूचित करना होगा।
इस फैसले के बाद राष्ट्रपति मुर्मू ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चौदह प्रश्न रखे। जिनमें अनुच्छेद 200 और 201 की न्यायालय की व्याख्या के बारे में संवैधानिक चिंताएं जताई गईं। उनका तर्क था कि सुप्रीम कोर्ट इस तरह का फैसला नहीं ले सकता, क्योंकि संविधान इस पर मौन है। जबकि टाप कोर्ट का कहना था कि अगर गवर्नर या प्रेजीडेंट लंबे समय तक सरकारों के पारित बिल को लटकाएंगे तो काम नहीं चल पाएगा।
Supreme Court, CJI, CJI BR Gavai, 14 questions to President, SG Tushar Mehta