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जिस गोबर की बदबू से हम नाक सिकोड़ते हैं वही China से लेकर US-कुवैत तक के लिए बना 'काला सोना' | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।यह कहानी सिर्फ गोवर्धन पूजा में पर्वत बनाने वाले गोबर की नहीं है। यह कहानी है भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था से निकलकर ग्लोबल मार्केट में धूम मचाने वाले एक ऐसे 'प्रोडक्ट' की, जिसे हम सदियों से सिर्फ 'कचरा' मानते आए हैं। जिस गोबर को कभी सिर्फ उपले और खाद तक सीमित समझा जाता था, आज वही चीन, अमेरिका, सिंगापुर, कुवैत और सऊदी अरब जैसे शक्तिशाली देशों की पहली पसंद बन गया है।
चौंकाने वाली बात यह है कि कुवैत जैसा धनी देश भी भारत से 192 मीट्रिक टन गोबर का ऑर्डर देता है। आप सोच रहे होंगे, आखिर क्यों? क्यों ये देश लाखों रुपये खर्च कर भारत से गोबर आयात कर रहे हैं? इसकी वजह सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि विज्ञान, स्वास्थ्य और भविष्य की खेती से जुड़ी हुई है।
यही वो 5 बड़ी वजहें हैं जो गोबर को 'काला सोना' बना रही हैं और दुनिया की कृषि को बदल रही हैं।
कारण 1: जैविक खेती की वैश्विक लहर - रसायनों से मुक्ति का मिशन
गोबर की बढ़ती मांग के पीछे सबसे बड़ा कारण है दुनियाभर में 'जैविक खेती' Organic Farming का बढ़ता क्रेज।
एक दौर था जब ज्यादा पैदावार के लिए हर देश ने रासायनिक उर्वरकों Chemical Fertilizers का अंधाधुंध इस्तेमाल किया। पर इसका नतीजा क्या हुआ? मिट्टी की गुणवत्ता खत्म हो गई। पानी जहरीला होने लगा। सबसे खतरनाक, फसलों के जरिए ये रसायन हमारे शरीर में पहुंचे और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां पैदा करने लगे।
अमेरिका और यूरोप समेत कई विकसित देशों ने अब समझ लिया है कि रसायनों वाला खाना भविष्य के लिए खतरा है। इसलिए वे तेजी से रासायनिक उर्वरकों को छोड़कर जैविक विकल्पों Organic Alternatives की ओर बढ़ रहे हैं। और इस विकल्प में सबसे मजबूत दावेदार बनकर उभरा है - भारतीय गाय का गोबर।
सोचिए, जिस देसी खाद को हमारे दादा-परदादा इस्तेमाल करते थे, आज वही आधुनिक खेती का सबसे बड़ा टूल बन गया है। यह वाकई एक रिवर्स इंजीनियरिंग है।
कारण 2: मिट्टी का 'जादू' बढ़ाने की क्षमता - खजूर की उपज में चमत्कार
गोबर सिर्फ खाद नहीं है, यह मिट्टी के लिए एक 'जादू की छड़ी' जैसा है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि गोबर का इस्तेमाल सिर्फ पैदावार बढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मिट्टी की आंतरिक संरचना Soil Structure को सुधारता है।
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गोबर मिट्टी को कैसे बदलता है?
जल धारण क्षमता Water Retention गोबर, मिट्टी को ढीला और भुरभुरा बनाता है, जिससे मिट्टी अधिक समय तक पानी को सोख कर रख पाती है। यह उन देशों के लिए वरदान है, जहां पानी के संसाधन सीमित हैं, जैसे कुवैत और संयुक्त अरब अमीरात UAE।
सूक्ष्म जीव Microbes का घर: यह मिट्टी में ऐसे छोटे-छोटे जीवों अर्थवर्म, बैक्टीरिया को पनपने में मदद करता है जो प्राकृतिक रूप से मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं।
कुवैत का प्रयोग: कुवैत के कृषि वैज्ञानिकों ने भारतीय गोबर पाउडर का इस्तेमाल खजूर के पेड़ों पर किया। नतीजे चौंकाने वाले थे न केवल खजूर की उपज बढ़ी, बल्कि उनका आकार और मिठास भी पहले से बेहतर हो गई।
एक पल के लिए सोचिए, भारत का गोबर कुवैत के खजूरों को बड़ा कर रहा है। यह भारत की कृषि शक्ति की एक नई परिभाषा है।
कारण 3: 'बायोफ्यूल क्रांति' और ग्रीन एनर्जी की चाहत
भारत से गोबर खरीदने का एक और बड़ा कारण 'हरित ऊर्जा' Green Energy और बायोफ्यूल Biofuel बनाना भी है। दुनियाभर में तेल और कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन Fossil Fuels को कम करने पर जोर दिया जा रहा है।
गोबर कैसे ऊर्जा का स्रोत बनता है?
बायोगैस Biogas गोबर से बायोगैस बनाई जाती है, जिसका उपयोग खाना पकाने, बिजली बनाने और यहां तक कि वाहनों को चलाने में भी हो सकता है।
चीन और ब्रिटेन जैसे देश बड़े पैमाने पर इस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं।
बिजली उत्पादन: खास प्रक्रिया के तहत गोबर को सूखाकर और कंप्रेस्ड करके बिजली संयंत्रों में जलाया जाता है, जो प्रदूषण कम करने का एक बेहतर विकल्प है।
जलवायु परिवर्तन Climate Change से लड़ाई: गोबर का सही इस्तेमाल मीथेन उत्सर्जन Methane Emission को भी कम करने में मदद करता है, जो ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए कार्बन डाइऑक्साइड से भी ज्यादा खतरनाक गैस है।
जी हां, जिस गोबर की बदबू से हम नाक सिकोड़ते हैं, वह आज दूसरे देशों के घरों को रोशन कर रहा है और उनकी सड़कों पर गाड़ियां दौड़ा रहा है।
कारण 4: भारत में अभूतपूर्व उपलब्धता - 3 करोड़ टन रोज़ाना का उत्पादन
गोबर की मांग तो है, लेकिन सवाल है कि इतना गोबर आएगा कहां से? इसका जवाब है 'भारत'। भारत के पास मवेशियों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 30 करोड़ से अधिक मवेशी हैं, जो रोजाना औसतन 3 करोड़ टन से भी ज्यादा गोबर का उत्पादन करते हैं। यह उपलब्धता भारत को ग्लोबल लीडर बनाती है।
जबरदस्त सप्लाई चेन: भारत के पास इतना विशाल भंडार है कि वह किसी भी देश की मांग को पूरा कर सकता है।
सस्ता और टिकाऊ: अन्य जैविक उर्वरकों की तुलना में भारतीय गोबर पाउडर और खाद अक्सर सस्ते और गुणवत्ता में बेहतर होते हैं।
निर्यात की क्षमता: भारत ने अब गोबर के पाउडर, वर्मीकम्पोस्ट केंचुआ खाद और उच्च गुणवत्ता वाले उपलों के निर्यात के लिए एक मजबूत इकोसिस्टम तैयार कर लिया है।
जब बात 'गाय के गोबर' की आती है, तो भारत की क्षमता अप्रतिबंधित है। यह एक ऐसा प्राकृतिक संसाधन है जिसकी कमी कभी नहीं हो सकती।
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कारण 5: धार्मिक-सांस्कृतिक उत्पादों की बढ़ती चाहत
गोबर का महत्व सिर्फ खेती और ऊर्जा तक सीमित नहीं है। इसका एक बड़ा हिस्सा धार्मिक और सांस्कृतिक उत्पादों से भी जुड़ा है।
गोबर पेंट: गाय के गोबर से बना प्राकृतिक पेंट, जिसे 'वैदिक पेंट' भी कहा जाता है, अपनी एंटी-बैक्टीरियल और थर्मल इन्सुलेशन गर्मी को रोकने गुणों के कारण विदेशों में लोकप्रिय हो रहा है।
पूजा सामग्री: गोवर्धन पूजा, दिवाली और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के लिए गोबर से बने छोटे-छोटे उत्पाद जैसे दीपक, मूर्तियां और शुभ चिह्न, भारतीय डायस्पोरा प्रवासी भारतीय समुदाय वाले देशों में बहुत मांग में हैं।
आयुर्वेद और स्वास्थ्य: कुछ शोधों में गोबर के औषधीय और एंटी-रेडिएशन गुणों पर भी अध्ययन हो रहे हैं, जिसके कारण भी इसकी मांग बढ़ रही है। संक्षेप में कहें तो गोबर अब सिर्फ एक कृषि उत्पाद नहीं है, बल्कि यह एक बहुआयामी ग्लोबल कमोडिटी बन चुका है, जिसका कारोबार करोड़ों रुपये में हो रहा है।
टर्नओवर Turnover की जानकारी
साल 2023 में लगभग 386 करोड़ रूपए का गोबर और इससे बने उत्पादों का निर्यात हुआ।
साल 2024 में लगभग 400 करोड़ रूपए का गोबर और इससे बने उत्पादों का निर्यात हुआ।
गोबर आयात करने वाले प्रमुख देश
मालदीव, अमेरिका USA, सिंगापुर, चीन, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात UAE, नेपाल, ब्राजील, सऊदी अरब विशेष रूप से खाड़ी देशों जैसे कुवैत और यूएई में खजूर की खेती में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए भारतीय गाय के गोबर की भारी मांग है।
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गोबर का ग्लोबल कारोबार कीमत और भविष्य
अंतराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत से निर्यात किए जाने वाले गोबर की कीमत 30/- रुपये से 50/- रुपये प्रति किलो तक हो सकती है। यह कीमत गोबर के प्रकार पर निर्भर करती है हाई-ग्रेड पाउडर इसकी कीमत सबसे ज्यादा होती है, क्योंकि यह सीधे जैविक खाद या मिट्टी सुधार के लिए उपयोग होता है।
कंपोस्ट/वर्मीकम्पोस्ट: इसकी कीमत भी अच्छी होती है, क्योंकि यह सीधे खेत में इस्तेमाल के लिए तैयार होता है।
उपले: ऊर्जा के लिए खरीदे जाने वाले उपलों की कीमत तुलनात्मक रूप से कम होती है। जैसे-जैसे दुनिया रसायनों को छोड़ेगी और जैविक विकल्पों को अपनाएगी, भारतीय गोबर की मांग और कीमत दोनों बढ़ती जाएंगी।
भारत के लिए यह एक बड़ा आर्थिक अवसर है, जो न केवल किसानों और पशुपालकों की आय बढ़ाएगा, बल्कि देश को एक नया 'ग्लोबल सप्लायर' भी बनाएगा।
गोबर का यह वैश्विक उदय, भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक नई सुबह लेकर आया है। गोबर का अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में उतरना महज एक बिज़नेस डील नहीं, बल्कि दुनिया की बदलती सोच का प्रतीक है।
यह साबित करता है कि प्रकृति और परंपरा में जो ताकत है, उसे आधुनिक विज्ञान भी नकार नहीं सकता।
भारत के इस 'देसी खजाने' पर आज दुनिया की बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं निर्भर हो रही हैं। यह गोवर्धन पूजा के बाद का वह सबसे बड़ा संदेश है, जिसे पूरी दुनिया अब ध्यान से सुन रही है।
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